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सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाई कोर्ट से तीन महीने से ज्यादा समय से सुरक्षित फैसलों का ब्योरा मांगा, चार सप्ताह में देनी होगी रिपोर्ट
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाई कोर्ट द्वारा सुनवाई पूरी होने के बाद लंबे समय तक फैसले सुरक्षित रखने और आदेश न सुनाए जाने पर नाराजगी व्यक्त की है। शीर्ष अदालत ने झारखंड सहित देश के सभी हाई कोर्ट से उन मामलों का ब्योरा मांगा है जिनमें 31 जनवरी 2025 से पहले के जजमेंट सुरक्षित हैं और जिनका फैसला नहीं दिया गया है।
सभी हाई कोर्ट को चार सप्ताह के भीतर इस संबंध में जानकारी प्रस्तुत करनी होगी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट 21 जुलाई को फिर सुनवाई करेगा।
झारखंड के चार दोषियों की याचिका पर सुनवाईजस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने झारखंड के चार सजायाफ्ता दोषियों की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश जारी किया। दोषियों ने झारखंड हाई कोर्ट में दो से तीन साल तक अपील पर फैसला सुरक्षित रहने और आदेश न सुनाए जाने का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग की है। चारों याचिकाकर्ताओं की अपीलों पर झारखंड हाई कोर्ट ने 27 अप्रैल 2022, पांच मई 2022, सात जून 2022 और पांच जनवरी 2022 को सुनवाई पूरी करके फैसला सुरक्षित रख लिया था।
हाई कोर्ट को स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का आदेशइस मामले में शीर्ष अदालत ने 23 अप्रैल 2025 को झारखंड हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को आदेश दिया था कि वह स्टेटस रिपोर्ट दाखिल कर उन सभी मामलों का ब्योरा भेजे जिनमें दो महीने से ज्यादा समय से फैसला सुरक्षित है और आदेश नहीं सुनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अमल करते हुए झारखंड हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने सील बंद लिफाफे में स्टेटस रिपोर्ट भेजी थी।
56 मामलों में फैसला सुरक्षित, अब तक आदेश नहींस्टेटस रिपोर्ट में सामने आया कि हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने कुछ आपराधिक अपीलों सहित कुल 56 मामलों में सुनवाई करके फैसला सुरक्षित रखा हुआ है। खंडपीठ ने ये फैसले चार जनवरी 2022 से लेकर 16 दिसंबर 2024 तक विभिन्न तारीखों पर सुरक्षित रखे थे और अभी तक फैसला नहीं दिया है। इसके अलावा एकलपीठ के समक्ष 11 ऐसे मामले लंबित हैं जिनमें सुनवाई पूरी करके फैसला सुरक्षित रखा गया है। ये मामले 25 जुलाई 2024 से लेकर 27 सितंबर 2024 के बीच के हैं।
75 मामलों का त्वरित निपटारा और नई जानकारी की मांगसुप्रीम कोर्ट ने आदेश में दर्ज किया है कि खंडपीठ के समक्ष फैसले के लिए लंबित 56 मामलों की सूची में चारों याचिकाकर्ताओं की अपीलों के केस शामिल नहीं हैं। शीर्ष कोर्ट ने आदेश में एक अंग्रेजी दैनिक में छपी खबर का भी संज्ञान लिया है जिसमें कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट की फटकार और ब्योरा मांगे जाने के बाद झारखंड हाई कोर्ट ने एक सप्ताह में 75 क्रिमिनल अपीलों का निपटारा किया।
75 मामलों की सूची, तारीख और फैसले की कॉपी मांगी गईरजिस्ट्रार जनरल की रिपोर्ट और अंग्रेजी दैनिक में छपी खबर को देखते हुए शीर्ष अदालत ने झारखंड के रजिस्ट्रार जनरल को फिर आदेश दिया है कि वह उन 75 मामलों की सूची पेश करे जिनमें फैसले सुनाए गए हैं। सूची में यह बताया जाए कि कब फैसला सुरक्षित रखा गया और किस तारीख को सुनाया गया। साथ ही सुनाए गए फैसले की साफ्ट कॉपी भी भेजनी होगी। साथ ही याचिकाकर्ताओं के केस का भी ब्योरा सुप्रीम कोर्ट ने मांगा है।
देशभर के हाई कोर्टों से भी स्टेटस रिपोर्ट तलबसुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाई कोर्ट के अलावा देशभर के हाई कोर्टों के रजिस्ट्रार जनरलों को उन मामलों की स्टेटस रिपोर्ट भेजने का आदेश दिया है जिनमें 31 जनवरी 2025 से पहले से फैसले सुरक्षित हैं। रिपोर्ट में आपराधिक और दीवानी मामलों का अलग-अलग ब्योरा देना होगा और यह भी बताना होगा कि फैसला खंडपीठ ने सुरक्षित रखा हुआ है या एकलपीठ ने। इतना ही नहीं फैसला सुरक्षित रखने वाली पीठ के न्यायाधीश भी बताने होंगे।
याचिकाकर्ताओं की जमानत पर 13 मई को सुनवाईइस बीच सुप्रीम कोर्ट याचिकाकर्ताओं की जमानत की मांग पर 13 मई को सुनवाई करेगा। कोर्ट ने झारखंड लीगल सर्विस अथॉरिटी से कहा है कि वह इस आदेश को देखते हुए लोगों को कानूनी सहायता देने के लिए कदम उठाए ताकि सुनिश्चित हो कि याचिकाकर्ताओं की तरह और लोग उपचारहीन न रह जाएं। लीगल सर्विस अथॉरिटी सभी दस ऐसे मामलों में उचित कार्रवाई करे और उन लोगों की अपील लंबित रहने तक सजा निलंबन और जमानत के उद्देश्य से ब्योरा सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी को भेजे।
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देश भर में कल होगा सिविल डिफेंस मॉक ड्रिल, राज्यों से मांगी गई रिपोर्ट; आखिर क्यों जरूरी है ये अभ्यास?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत सरकार 7 मई 2025 को देशभर के 244 चिन्हित सिविल डिफेंस जिलों में एक विशाल मॉक ड्रिल आयोजित करने जा रही है। इसका मकसद यह जांचना है कि जंग जैसे हालात, जैसे कि मिसाइल हमले या हवाई हमलों के दौरान आम जनता कितनी जल्दी और असरदार तरीके से प्रतिक्रिया दे सकती है।
इस मॉक ड्रिल में असल हालात जैसे दृश्य पेश किए जाएंगे, मसलन हवाई हमले के सायरन बजेंगे, शहरों की बिजली बंद की जाएंगी, आम लोग शरण लेने का अभ्यास करेंगे और आपातकालीन सेवाएं तुरंत हरकत में आएंगी।
इस अभ्यास का मकसद है अफरा-तफरी से बचाव, घबराहट को कम करना और जानें बचाना।
शीत युद्ध की याद ताजाहालांकि इस तरह की तैयारियां शीत युद्ध (Cold War) के दौर की याद दिलाती हैं, लेकिन मौजूदा वैश्विक तनावों ने एक बार फिर इन्हें अहम बना दिया है। 7 मई को होने वाले इस राष्ट्रीय स्तर के रिहर्सल के लिए गृह मंत्रालय ने 2 मई 2025 को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश जारी किया। यह अभ्यास सिविल डिफेंस रूल्स, 1968 के तहत आता है।
इस मॉक ड्रिल में स्थानीय प्रशासन, सिविल डिफेंस वार्डन, होम गार्ड्स, नेशनल कैडेट कोर (NCC), नेशनल सर्विस स्कीम (NSS), नेहरू युवा केंद्र संगठन (NYKS) और स्कूल-कॉलेजों के छात्र-छात्राएं हिस्सा लेंगे।
इस तरह की तैयारी यह संकेत देती है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सिर्फ सैनिकों की जिम्मेदारी नहीं है। जब आम नागरिक यह जानते हैं कि क्या करना है, कब करना है और कैसे संयम बनाए रखना है, तो पूरे देश की मजबूती बढ़ जाती है। यह केवल हमले के बाद की प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि हमले से पहले की जागरूकता का हिस्सा है।
ड्रिल की मुख्य गतिविधियांसंवेदनशील इलाकों और संस्थानों में सायरनों का परीक्षण किया जाएगा ताकि आम लोगों को हमले की स्थिति में सतर्क किया जा सके। स्कूलों, दफ़्तरों और समुदाय केंद्रों में वर्कशॉप्स आयोजित होंगी जिनमें लोगों को गिरकर छिपने (drop-and-cover), नजदीकी शरण स्थलों का पता लगाना, प्राथमिक उपचार और मानसिक स्थिति को संभालना सिखाया जाएगा।
इसके अलावा अचानक बिजली बंद कर दी जाएगी ताकि रात के समय हवाई हमले की स्थिति में शहर को दुश्मन की नजर से छिपाया जा सके। यह तकनीक आखिरी बार 1971 की बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के समय इस्तेमाल हुई थी। सामरिक इमारतों जैसे मिलिट्री बेस, संचार टावर, और पावर प्लांट को छिपाने के लिए नकाबपोशी की जाएगी ताकि सैटेलाइट या हवाई निगरानी से बचा जा सके। हाई-रिस्क इलाकों से लोगों को सुरक्षित क्षेत्रों में ले जाने का अभ्यास किया जाएगा, जिससे वास्तविक स्थिति में आने वाली रुकावटों को पहचाना जा सके।
पहलगाम घटना से जुड़े से तारयह अभ्यास किसी खास घटना से जुड़ा हुआ नहीं है, बल्कि 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद सरकार की सुरक्षा तैयारियों का हिस्सा है। इस हमले में 26 भारतीय सैलानियों की मौत हुई थी, और इसके पीछे पाकिस्तान-आधारित आतंकी संगठनों का हाथ बताया जा रहा है।
इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई उच्च-स्तरीय सुरक्षा बैठकें कीं और कहा कि, "हम साज़िश करने वालों को ऐसी सजा देंगे जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी।" इससे पहले भी अक्टूबर 2022 में हुए 'चिंतन शिविर' में प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री ने सिविल डिफेंस को मजबूत करने की जरूरत पर जोर दिया था।
हर राज्य से रिपोर्ट मांगी जाएगीजनवरी 2023 में गृह सचिव द्वारा भेजे गए पत्र में भी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से सीमावर्ती और तटीय इलाकों में सिविल डिफेंस क्षमताओं को बढ़ाने की अपील की गई थी।
भारत-पाकिस्तान सीमा के पास फिरोजपुर छावनी में 7 मई से पहले ही एक 30 मिनट की ब्लैकआउट ड्रिल आयोजित कर इसकी झलक दिखा दी है। गृह मंत्रालय ने हर भाग लेने वाले राज्य और केंद्र शासित प्रदेश को ड्रिल के बाद "एक्शन टेकन रिपोर्ट" सौंपने का निर्देश दिया है, जिसमें कार्यान्वयन, सीख और सुधार के बिंदु शामिल होंगे।
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Bihar Police School: सैनिक स्कूल की तर्ज पर पटना में बनेगा बिहार पुलिस विद्यालय, जमीन भी हो गई फाइनल!
कुमार रजत, पटना। नेतरहाट और सैनिक स्कूल की तर्ज पर बिहार में पुलिस विद्यालय की स्थापना की जाएगी। झारखंड के अलग होने के बाद यह बिहार का पहला आवासीय पुलिस विद्यालय होगा।
इसके लिए पटना के नौबतपुर के पास करीब दो एकड़ जमीन भी चिह्नित की गई है। इस विद्यालय का लाभ बिहार पुलिस मद से वेतन प्राप्त सभी संवर्ग के पदाधिकारियों, कर्मियों एवं शहीद व सेवानिवृत्त पुलिसकर्मियों के बच्चों को प्राप्त होगा।
इसके लिए 50 प्रतिशत सीटें पुलिसकर्मियों के बच्चों के लिए आरक्षित होंगी। वहीं अन्य 50 प्रतिशत सीटें आमलोगों के बच्चों के लिए होंगी।
पुलिस मुख्यालय में प्राथमिक विचार-विमर्श के बाद इससे जुड़ा प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है। इसे अगले माह जून तक गृह विभाग को सैद्धांतिक सहमति के लिए भेजा जाएगा।
पुलिस मुख्यालय ने बिहार पुलिस विद्यालय की स्थापना से जुड़े प्रारंभिक प्रस्ताव को लेकर सभी पुलिस महानिदेशक (डीजी), अपर पुलिस महानिदेशक (एडीजी), क्षेत्रीय आइजी-डीआइजी आदि से सुझाव मांगे थे।
इसमें कहा गया कि अविभाजित बिहार में हजारीबाग में श्रीकृष्ण आरक्षी बाल विद्यालय संचालित था जो वर्ष 2000 में विभाजन के बाद झारखंड के हिस्से आ गया।
हाल के दिनों में बिहार पुलिस में बड़ी संख्या में महिलाओं की नियुक्ति हुई है। ऐसे में उनके बच्चों के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए भी बिहार पुलिस विद्यालय की स्थापना आवश्यक है।
पुलिस मुख्यालय के इस प्रस्ताव पर वरीय अधिकारियों ने सकारात्मक सुझाव दिए हैं, जिसके बाद फाइनल ड्राफ्ट तैयार किया जा रहा है। पूर्व डीजी अरविंद पांडेय भी इस पहल को लेकर डीजीपी को पत्र लिख चुके हैं।
उन्होंने पुलिसकर्मियों के बच्चों के लिए विद्यालय निर्माण की तीव्र गति से शुरू हुई कार्रवाई को लेकर डीजीपी विनय कुमार का आभार जताया है।
पहले चरण में आठवीं कक्षा तक शुरू होगी पढ़ाईएडीजी बजट, अपील एवं कल्याण डा. कमलकिशोर सिंह ने बताया कि बिहार पुलिस विद्यालय को दो चरणों में शुरू करने की योजना है।
पहले चरण में आठवीं कक्षा तक पढ़ाई शुरू होगी जिसके लिए बिहार शिक्षा परियोजना पर्षद से संबद्धता ली जाएगी।
वहीं अगले चरण में 12वींं कक्षा तक पढ़ाई होगी जिसके लिए केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) से संबद्धता ली जाएगी।
इसी कारण स्कूल की कक्षा, प्रयोगशाला, पुस्तकालय आदि से लेकर शिक्षकों की नियुक्ति तक सीबीएसई के मानक को ध्यान में रखकर की जाएगी।
सैनिक और नेतरहाट स्कूल की तर्ज पर बिहार में आवासीय पुलिस विद्यालय की स्थापना का प्रस्ताव है। इसके लिए नौबतपुर के पास दो एकड़ जमीन चिह्नित की गई है। इस प्रस्ताव को जल्द ही गृह विभाग को सैद्धांतिक सहमति के लिए भेजा जाएगा।-कमल किशोर सिंह, एडीजी, बजट, अपील एवं कल्याण
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