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Interview: 'भारत की जरूरत है कि पाकिस्तान में गृह युद्ध न हो', खास बातचीत में बोले एअर मार्शल जयंत आपटे

Dainik Jagran - National - May 17, 2025 - 6:16pm

रुमनी घोष, दिल्ली। पहलगाम हमले के प्रतिकार के साथ ही भारत ने सात से 10 मई के बीच दुनिया को अपनी आधुनिक युद्ध कला की एक झलक दिखलाई है। पश्चिमी दुनिया को इसे समझने और स्वीकारने में थोड़ा समय लगा, लेकिन पाकिस्तान के सीने में उभर आए घाव नजर आने के बाद सब हैरान हैं।

यह संयोग ही है कि जब भारतीय सेना इस स्ट्राइक को अंजाम दे रही थी, उस वक्त एअर मार्शल (रिटा.) जयंत आपटे (पीवीएसएम, एवीएसएम ) उत्तरी अमेरिका से इस अभियान को परख रहे थे। महाभारत के संजय की तरह युद्ध मैदान से दूर बैठकर वह उस सैन्य दल को लड़ते देख रहे थे, जिसे उनके जैसे सैन्य अधिकारियों ने मिलकर तीन दशक पहले इसी दिन के लिए तैयार करना शुरू किया था।

वर्ष 1971 में बांग्लादेश के लिए लड़ा गया भारत-पाक युद्ध के गवाह रहे एअर मार्शल आपटे वायु सेना के उन अधिकारियों में भी शामिल हैं, जिन्होंने भारतीय सेना को आधुनिक और तकनीक से युक्त बनाने में अपना पूरा कार्यकाल दिया है।

भारतीय वायुसेना में अपने 34 साल के कार्यकाल में पश्चिमी- पूर्वी वायु कमान और रखरखाव कमान में चीफ इंजीनियरिंग आफिसर, कमांड सिग्नल ऑफिसर और डिप्टी सीनियर मेंटेनेंस स्टाफ ऑफिसर जैसे अहम पदों की कमान संभाली। तीन त्रिशूल अभ्यास के साथ उन्होंने परिचालन उपलब्धता बढ़ाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक एक्सचेंज और संचार प्रणालियों की स्थापना को मानकीकृत किया।

वायुसेना स्टेशन, कानपुर में पदस्थ रहते हुए उन्होंने विमानों और एअरोइंजनों के उत्पादन में वृद्धि की और एएन-32 एअरफ्रेम और वाइपर एअरोइंजनों के लिए लाइफ टीमों के संशोधन का नेतृत्व किया था। दैनिक जागरण की समाचार संपादक रुमनी घोष ने उनसे आनलाइन चर्चा की तो उन्होंने रोमांचक व गर्वभरे पलों के साथ 'संघर्ष' से 'विराम' तक लिए गए निर्णयों के पीछे छिपे अर्थ की व्याख्या की। उनका कहना है कि सही समय पर संघर्ष विराम कर भारत ने शक्ति और संयम का प्रदर्शन किया है। यदि यह संघर्ष आगे बढ़ता तो पाकिस्तान में गृह युद्ध की स्थिति बन सकती थी...और भारत के लिए जरूरी है कि एेसा न हो। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंशः

25 मिनट में 24 मिसाइलों से नौ ठिकानों पर हमला...भारत ने जिस गति, सटीकता, गहराई और व्यापकता के साथ पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक किया है, क्या यह भारतीय सैन्य इतिहास में पहली बार है?

देखिए, आधुनिक युग में जिस स्पीड (गति) की बात होती है और इसके पहले जितने ऑपरेशन हुए थे, उनकी तुलना नहीं हो सकती है। इसके तीन मुख्य कारण हैं। पहला, सूचनाओं का संकलन पहले मैनुअली होता था, लेकिन अब सब सैटेलाइट के जरिये यह ऑनलाइन उपलब्ध है। दूसरा इंटेलीजेंस इनफार्मेशन इकट्ठा कर ऊपर से लेकर नीचे जवानों तक पहुंचाने में बहुत समय लगता था।

आजकल यह सूचनाएं सबके पास तुरंत पहुंच जाती हैं। तीसरा, तैनाती (डिप्लायमेंट), टीम की भागीदारी (पार्टिसिपेशन) और हथियारों की उपलब्धता। आज से 20-25 साल पहले इनमें बहुत समय लगता था। एअरक्राफ्ट और हथियारों के परिणामों की सटीकता भी कमतर होती थी। आज हमारे पास स्ट्रैटेजिक ट्रांसपोर्ट एअरक्राफ्ट हैं। जवानों से लेकर हथियारों की तैनाती में अब इतना समय नहीं लगता है।

लड़ाकू विमानों के ऑपरेटिव रेंज (परिचालन सीमा) और हथियारों की मारक क्षमता अचूक है। जब यह सारे इनपुट पहले की तुलना में बदल गए तो परिणाम निश्चित रूप से बेहतर होंगे। बेशक, इन सभी का कितना बेहतर ढंग से उपयोग किया जाए, यह किसी भी देश के सैन्य कमान के हाथों में होता है। हालांकि यह भी याद रखने की जरूरत है कि आपके दुश्मन के पास भी यह सभी चीजें उपलब्ध हैं। ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने इन सभी का बेहतरीन उपयोग किया, इसलिए यह परिणाम सामने आया है।

क्या कारगिल युद्ध की तरह ही हमने ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय सेना ने जरूरत के हिसाब से हथियारों को अपग्रेड किया?

कारगिल युद्ध के दौरान हमने लेजर गाइडेड बॉम्ब का मॉडिफिकेशन (परिवर्तन) किया गया था। मेरे पास जो सूचना है, उसके मुताबिक इस आपरेशन में ऐसा प्रयोग नहीं हुआ है। इस सफलता में स्वदेशी हथियारों का बड़ा रोल रहा।

इस ऑपरेशन में उपयोग हुए कई स्वदेशी हथियार, तकनीक व युद्ध रणनीति आपके समय कमीशन हुए होंगे। यह अनुभव कैसा है?

1990 का दौर था... यानी लगभग 30 साल पहले भारतीय सेना में स्वदेशी हथियारों व तकनीक विकसित करने का प्रोग्राम शुरू हुआ था। हालांकि तब भी हम सिर्फ यही सोचते थे कि हथियारों के स्पेयर पार्ट्स बनाने और हथियारों के स्वदेशीकरण के बारे में थोड़ा बहुत सोचते थे। हमारा ज्यादा से ज्यादा जोर विदेशी हथियारों के मोडिफिकेशन पर था। मगर बीते 20 साल में भारतीय सेना में बहुत बड़ा बदलाव आया। हमने तेजी से स्वदेशी हथियार बनाने की क्षमता विकसित कर ली है।

यही नहीं, उसे आर्मी, एअरफोर्स और नेवी में एकीकृत प्रणाली (इंटिग्रेड) लागू कर दिया है। समन्वय देखिए, कि एक स्वदेशी हथियार हमारी तीनों सेना अपने-अपने ढंग से इसका उपयोग कर सकती है। और बीते दस सालों में तो डीआरडीओ, इसरो, भारत इल्केट्रिकल (बेल), हिंदुस्तान एरोनाटिकल लिमिटेड (एचएएल) ने जो काम किया है, उससे स्वदेशीकरण के जरिये भारत की सैन्य क्षमता तो बढ़ी है और जो स्वदेशी हथियार बने हैं।

उसकी गुणवत्ता व मारक क्षमता बेहतर हुई है। पहले हथियारों की गुणवत्ता व क्षमता पर लेकर हमेशा आशंका बनी रहती थी, वह भी खत्म हो गई है। अब तो अंतरराष्ट्रीय मीडिया भी हमारे हथियारों को सराह रही है।

तो क्या सेना ने जितना सोचा था, उससे कहीं ज्यादा बेहतर परिणाम मिला?

बिलकुल। हम तो सिर्फ थोड़ा बहुत स्वदेशीकरण करने के बारे में सोच रहे थे, लेकिन अब तो हम इन्हें बना रहे हैं। हम बहुत आगे निकल चुके हैं।

क्या इस बहाने स्वदेशी हथियारों का परीक्षण हो गया?

हथियारों का परीक्षण दो तरह से होता है। पहला, हम हथियारों को प्रूव (साबित) करते हैं, यानी मारक क्षमता और जिस उद्देश्य से बनाई गई है, वह पूरी हुई है या नहीं, यह देखते हैं। दूसरा, उसका परफार्मेंशन (परिणाम), ...लेकिन हथियार तो युद्ध व युद्ध जैसी परिस्थितियों में ही उपयोग होता है। यदि परिणाम उत्साहजनक आते हैं तो इससे ज्यादा खुशी की बात नहीं है। और यह हो रहा है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी सब जगह तारीफ हो रही है। सभी एक ही नाम ले रहे हैं- ब्रम्होस। 1990 में इस तरह के स्वदेशी हथियार बनाने के बारे में पहली बार सोचा गया था। इस तरह के हथियारों व तकनीक को बनने में लंबा समय लगता है। इस दौर में 'इंटिग्रेशन ऑफ आर्म फोर्सेस' का पाठ्यक्रम शुरू किया गया। उसका भी बेहतरीन असर देखा गया।

पाकिस्तान पर स्ट्राइक कर भारत ने चीन के हथियारों को भी एक्सपोज कर दिया?

भारत ने पाकिस्तान और चीन के एअर डिफेंस सिस्टम को चकमा देकर पाकिस्तान के 11 एयरबेस तबाह किए, उससे पाकिस्तान के साथ चीन के हथियारों की गुणवत्ता व मारक क्षमता पर सवालिया निशान लग गए हैं। और भारत के हथियारों की मार्केटिंग भी हो गई।

1971 के भारत-पाक युद्ध में आप वायुसेना का हिस्सा थे। उस समय फील्ड मार्शल सैम बहादुर मानेक शा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लगभग छह महीने का समय मांगा था? पहलगाम हमले के 16वें दिन में हमला कर दिया गया। अंतर को कैसे देखते हैं?

वर्ष 1971 का युद्ध हम अपने लिए नहीं लड़ रहे थे, लेकिन बांग्लादेश के शरणार्थियों का असर भारत पर पड़ रहा था। उस समय पाकिस्तान आर्मी के पास हथियार थे, लेकिन पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के पास बहुत सीमित संसाधन थे। सेना का आकलन था कि बांग्लादेश में बारिश के दौरान आपरेशन उचित नहीं था।

मोबिलिटी कम थी और सरकार के पास संसाधन भी कम थे। मुझे आज भी याद है कि उस समय जब तैयारियां शुरू हुई थीं, तो बहुत लंबा समय लगा था। विदेश से हथियार बुलवाने और एकत्रित कर मौके पर पहुंचाने में बहुत समय लगा था। आज स्थितियां बदल गई हैं। हम विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। हमारे पास न संसाधन और न ही हथियारों की कमी है।

जब हम इतने सक्षम हैं तो फिर यह संघर्ष विराम क्यों?

मेरा निजी तौर पर मानना है कि संघर्ष विराम का निर्णय बिलकुल सही है। हर देश को युद्ध शुरू करने से पहले इसे खत्म कब करना है, यह हर देश और उसकी सेना को पता होना चाहिए। यदि हमारे पास शक्ति है, तो उसका कितना उपयोग करना है, यह तय होना चाहिए। और हमने दुनिया को बताया कि हमारे पास शक्ति और संयम दोनों हैं।

यदि यह संघर्ष दो-चार दिन और चलता तो पाकिस्तान में अंतकर्लह शुरू हो जाता है। वैसे ही पाकिस्तान एक विफल देश बनता जा रहा है और वहां परिस्थितियां और ज्यादा बिगड़ती तो इसके दूरगामी परिणाम भारत को भी झेलना पड़ता। बांग्लादेश में यह स्थिति हम देख चुके हैं। आप नजर रखिए, अगले दो-तीन महीने में ही आप पाएंगे कि पाकिस्तान में गृहयुद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हो रही है। और भारत की जरूरत है कि पाकिस्तान में गृह युद्ध न हो।

आम भारतीयों और बहुत से सैन्य अधिकारियों की धारणा है कि हम मैदान में तो जीत जाते हैं लेकिन टेबल पर जंग हार जाते हैं?

(हंसते हुए...) यह सही है कि आम भारतीयों की तरह यहां (नार्थ अमेरिका) भी भारतीय मूल के लोग संघर्ष विराम को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। मैंने यहां कुछ समूहों को समझाने की कोशिश की, लेकिन बड़ा वर्ग अभी भी सहजता से मानने को तैयार नहीं है। मैं उनसे यही कह सकता हूं कि वह एक बाक्सिंग रिंग की कल्पना करें।

जिसमें एक पक्ष ने दूसरे पक्ष पर मुक्कों की बौछार कर उसे पूरी तरह से चित कर दिया। अब उस हारे पर चाहे और जितने भी वार करें, कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वैसे भी संघर्ष विराम की गुहार पाकिस्तान की ओर से लगाई गई और भारत ने बड़प्पन दिखाते हुए यह किया। इससे पूरी दुनिया में हमारा कद ही बड़ा है।

टाम कूपर, जॉन स्पेंसर जैसे वार स्ट्रैटेजिक एनालिस्ट भारत की सैन्य क्षमता को सराह रहे हैं। क्या भारत राजनीतिक और रणनीतिक दोनों स्तर पर विश्वभर में संदेश देने में कामयाब रहा?

इसमें कोई दो मत नहीं है कि ऑपरेशन सिंदूर काबिल-ए-तारीफ है। भारतीय सेना ने जब पाकिस्तान के एअर डिफेंस सिस्टम को निष्क्रिय कर एयरबेस को तबाह कर यह दिखा दिया कि भारत अपनी मर्जी से, अपने समय से जब और जहां तक चाहेगा, कार्रवाई कर सकता है। खास बात यह है कि दुनिया को यकीन नहीं था कि हम इतनी बड़ी कार्रवाई इतनी सटीकता के साथ कर सकते हैं।

दुनिया को यह लग रहा था हमने हमला किया है तो पाकिस्तान भी उसी तरह से जवाबी कार्रवाई में इन्हीं हथियारों का उपयोग करेगा, लेकिन इस मोर्चे पर पाकिस्तान पूरी तरह से विफल हो गया। आम तौर अंतरराष्ट्रीय मीडिया भारत के शक्ति प्रदर्शन को बहुत ज्यादा सराहता नहीं है, लेकिन इस बार अंतरराष्ट्रीय मीडिया को भी सराहना करना पड़ी।

तो क्या माना जाए कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत को लेकर पश्चिम की धारणा पूरी तरह बदल गई है?

नहीं, धारणा अभी भी पूरी तरह तो नहीं बदली है। स्ट्राइक्स की इतनी सारी जानकारियां दुनिया के सामने आने के बाद भी बहुत से मीडिया रिपोर्ट्स में यह बताया जा रहा है कि पाकिस्तान ही नहीं बल्कि भारत भी बहुत लंबे समय तक संघर्ष जारी नहीं रख सकता था, इसलिए संघर्ष विराम किया गया।

बहुत स्वाभाविक है कि जब आप आगे बढ़ते हैं, तो आपके प्रतिद्वंदी आपकी तारीफ नहीं करेंगे। इसलिए उनकी तारीफ का इंतजार किए बगैर भारत को लगातार अपनी सैन्य क्षमता को और विकसित करते रहना चाहिए।

सामरिक विशेषज्ञों का आकलन है कि सरगोधा पर अटैक कर भारत ने ऐसी स्थिति बना दी है कि अब अपने परमाणु हथियार को बाहर निकालने की स्थिति में नहीं है?

यह सूचना मीडिया की रिपोर्ट के आधार पर है। फिर भी यदि इसे सही माना जाए तो यह पाकिस्तान की उस बात का जवाब है, जिसमें उनके नेता बार-बार यह कहते थे कि हमारे परमाणु हथियार स्टोरेज में रखने के लिए नहीं हैं। हमने उनके परमाणु हथियार को स्टोरेज में रखवा दिया है।

वैसे मैं अपने अनुभव के आधार पर कहूं तो किसी भी एअर अटैक से जमीन के भीतर तरंगे उत्पन्न होती हैं। सरगोधा एयरबेस पर अटैक से आसपास की जमीन क्षतिग्रस्त हुई होगी और इससे परमाणु हथियार का इंस्टालेशन प्रभावित हो सकता है। हालांकि ऐसा हुआ है या नहीं, इसकी सटीक जानकारी कुछ लोगों के पास होगी।

सेना को अब कहां पर अपग्रेड होने की जरूरत है?

एअरो इंजन...। यह हमारे यहां अभी नहीं बन रहे हैं। अभी भी कई पार्ट्स हमें दूसरे देशों से लेना पड़ रहे हैं। कोई भी देश आपको पूरी तकनीक नहीं देता है, इसलिए जरूरी है कि इस क्षेत्र में भारतीय सेना तेजी से काम करे।

इस संघर्ष में रूस और इजराइल के अलावा कोई देश भारत के साथ खड़ा नहीं हुआ? क्यों?

यह स्थिति तो आनी ही नहीं थी कि किसी देश की जरूरत पड़े। आज के भारत में यह स्थिति नहीं है कि कुछ दिनों के संघर्ष के लिए हमें किसी से हथियार लेना पड़ा। मैं तो इसे इस तरह से देख रहा हूं कि भारत इतनी ऊंचाई पर पहुंच गया है कि उसे किसी के समर्थन की जरूरत नहीं है। वैसे भी यह एक छोटा-सा स्ट्राइक था, इसके लिए तो हमें किसी की मदद के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए। हां, वर्ष 1971 के दौर में हमें दूसरे देशों की मदद की जरूरत थी, क्योंकि उस समय हमारी तैयारी उस स्तर की नहीं थी।

सरकार भले ही बार-बार गुलाम जम्मू-कश्मीर को वापस लेने की बात कहे, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है यह लगभग असंभव है। आप क्या सोचते हैं?

गुलाम जम्मू-कश्मीर हमारा हिस्सा है। इसके बारे में हमें हर वक्त सोचना चाहिए। हाल ही में रूस ने यूक्रेन से अपनी जमीन वापस ली है, तो हम क्यों नहीं। यह जरूर है कि फिलहाल यह समय सही है या नहीं, यह बहस का विषय हो सकता है।

हर ऑपरेशन के बाद सेना 'लेसन लर्न्ड' यानी 'सबक' पर एक रिपोर्ट बनाती है? क्या स्ट्राइक में उपयोग किए गए हथियारों में कुछ ऐसे हैं, जिनका प्रदर्शन क्षमता अनुरूप नहीं रहा?

लेसन लर्निंग सेना का बहुत जरूरी हिस्सा है। जहां तक हथियारों की बात है, इस पर सिर्फ उन्हीं अफसरों व जवानों की बात मानी जानी चाहिए, जिन्होंने इसका उपयोग किया है। बाकी किसी को भी इस पर नहीं बोलना चाहिए। हर आपरेशन के बाद यह रिपोर्ट बनती है। इस बार भी बनेगी।

कहा जा रहा है पाकिस्तान तीन-चार महीने में दोबारा हमला कर सकता है? हम कितने तैयार हैं?

मुझे नहीं लगता कि पाकिस्तान इतनी जल्दी दोबारा हमला करने की स्थिति में होगा। जहां तक तैयारी की बात है तो एक वाकया सुनाता हूं। 1980 की बात है पाकिस्तान के राष्ट्रपति का विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ। सूचना आते ही भारतीय सेना ने अपने सारे रडार सिस्टम को सक्रिय करते हुए तैनाती कर दी थी। फिर यह तो आज की सेना है।

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सावधान! अब प्लेन में भी घूम रहे 'जेबकतरे', क्या है इसका चीन से कनेक्शन?

Dainik Jagran - National - May 17, 2025 - 5:36pm

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। ट्रेन, बस के बाद अब फ्लाइट में भी जेब कतरे घूमने लगे हैं। पुलिस ने एक ऐसे शख्स को पकड़ा है जो फ्लाइट में लोगों के जेब साफ कर रहा था। पुलिस ने शनिवार को बताया कि एक चीनी नागरिक को हांगकांग से नई दिल्ली की उड़ान के दौरान साथी यात्रियों से डेबिट और क्रेडिट कार्ड चुराने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। उसपर एक संगठित वैश्विक उड़ान चोरी गिरोह का सदस्य होने का संदेह है।

पुलिस ने एक आधिकारिक बयान में कहा कि एअर इंडिया की उड़ान संख्या एआई-315 में सवार कई यात्रियों की शिकायत के बाद 30 वर्षीय आरोपी बेनलाई पैन को 14 मई को इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय (आईजीआई) हवाई अड्डे पर पहुंचने पर गिरफ्तार किया गया। अधिकारियों ने बताया कि पैन तीन अन्य चीनी नागरिकों को हिरासत में ले लिया।

51 वर्षीय मेंग गुआंगयांग, 42 वर्षीय चांग मांग, 45 वर्षीय लियू जी के साथ यात्रा कर रहा था, जिन्हें हिरासत में लिया गया और उनसे पूछताछ की गई।

अधिकारियों के अनुसार, इस समूह पर अंतरराष्ट्रीय उड़ान चोरी रैकेट के तहत एक साथ काम करने का संदेह है।

क्रेडिट कार्ड पर हाथ किया साफ

अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (आईजीआई) उषा रंगनानी ने एक आधिकारिक बयान में कहा, "एअर इंडिया की सुरक्षा टीम ने आईजीआई एअरपोर्ट पुलिस को विमान में चार चीनी नागरिकों की संदिग्ध गतिविधियों के बारे में सूचित किया। यात्रियों में से एक, प्रभात वर्मा ने बताया कि उसके बैग से क्रेडिट कार्ड गायब हो गया है।" बयान में कहा गया है, "वर्मा ने 14सी पर बैठे एक यात्री के संदिग्ध व्यवहार की ओर भी इशारा किया, जिसे सीट 23सी के लिए टिकट दिया गया था।"

उन्होंने बताया कि लापता क्रेडिट कार्ड बाद में सीट 14सी के नीचे से बरामद किया गया, जहां पान बैठी हुई थी। एक अन्य यात्री, प्राशी ने बताया कि उसकी मां का डेबिट कार्ड भी गायब हो गया था। अधिकारी ने बताया कि तीसरी यात्री, नफीज फातिमा ने एक वीडियो दिखाया जिसमें पान कथित तौर पर उड़ान के दौरान ओवरहेड डिब्बे खोलकर केबिन बैगेज में हाथ डाल रही थी।

पूछताछ में आरोपी ने कबूला जुर्म

पूछताछ के दौरान, पैन ने कबूल किया कि उन्होंने सो रहे यात्रियों को निशाना बनाने और केबिन में लावारिस सामान तक पहुंचने के लिए लंबी दूरी की अंतरराष्ट्रीय ट्रांजिट उड़ानें बुक की थीं। उन्होंने कहा कि संदेह से बचने के लिए समूह ने केबिन में खुद को फैला लिया और चोरी किए गए कार्डों का इस्तेमाल करने की कोशिश करने के बाद उन्हें फेंक दिया।

पुलिस ने कहा कि आईजीआई एअरपोर्ट पुलिस स्टेशन में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है। संदिग्धों के मोबाइल फोन, पर्स और अन्य सामान फोरेंसिक जांच के लिए जब्त कर लिए गए हैं।

उन्होंने आगे कहा कि वैश्विक स्तर पर इसी तरह की घटनाओं में उनकी संभावित संलिप्तता की जांच के लिए अंतरराष्ट्रीय समन्वय चल रहा है। बेनलाई पैन को गिरफ्तार कर लिया गया है, जबकि उसके तीन सहयोगियों की भूमिका की जांच की जा रही है। पुलिस ने कहा कि देश भर के आव्रजन अधिकारियों को सतर्क कर दिया गया है और दूतावासों और वैश्विक कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ संपर्क स्थापित किया गया है।

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FIIs pump Rs 23,778 cr into Indian stocks in May. Is more buying seen ahead?

Business News - May 17, 2025 - 4:50pm
Foreign Institutional Investors (FIIs) have continued their buying spree in Indian equities, with purchases amounting to Rs 23,778 crore through May 16, 2025. This comes after a notable shift in FII strategy in April, where they reversed their selling stance and recorded net purchases of Rs 4,243 crore.The data was highlighted by Dr. VK Vijayakumar, Chief Investment Strategist at Geojit Investments Limited, who observed a marked change in FII behavior during the second quarter of 2025.Dr. VK Vijayakumar, Chief Investment Strategist at Geojit Investments, pointed out that “FIIs who were sellers in the first three months of 2025, having sold equity for Rs 116,574 crores during this period, turned buyers in April with buy figure of Rs 4,243 crores.”The buying momentum, according to him, has accelerated further in May, driven by easing geopolitical tensions and stabilizing macroeconomic conditions.“This change in FII strategy from selling to buying accelerated in May with big buying of 23,778 crores through 16th May,” he added.The recent inflows come amid improving trade relations globally, particularly following the pause in the US-China trade conflict and the resolution of the India-Pakistan border tensions.“With the global trade scenario improving after the pause in trade war between the US and China and the end of the India-Pak conflict, the investment scenario has improved,” Vijayakumar noted.Despite challenges in major economies like the US, China, Japan, and the EU, India’s growth prospects remain robust, with the country expected to clock a growth rate of above 6% in FY26.Also read: F&O Talk| Nifty eyes further gains after crossing 25k mark: Is 25,600 the next target? Sudeep Shah weighs inHighlighting the favorable domestic macro environment, Vijayakumar stated, “Importantly, with inflation in India very much under control and the MPC expected to cut rates twice or thrice more in this rate-cutting cycle, the macro construct in India looks good.”With the expectation of further rate cuts and continued buying interest from FIIs, Dr. Vijayakumar anticipates that “going forward, FIIs are likely to continue their buying in India. Therefore, large caps will be resilient.”The strong inflows signal increasing investor confidence in India’s economic stability, potentially providing further support to the ongoing market rally.(Disclaimer: Recommendations, suggestions, views and opinions given by the experts are their own. These do not represent the views of The Economic Times)
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कर्नल सोफिया कुरैशी पर टिप्पणी करने वाले मंत्री पर भड़के ओवैसी, बोले- 'यह गंदगी है, जेल भेज देना चाहिए'

Dainik Jagran - National - May 17, 2025 - 4:07pm

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कर्नल सोफिया कुरैशी पर विवादित टिप्पणी करने वाले भाजपा के मंत्री विजय शाह के खिलाफ हाईकोर्ट के आदेश के बाद एफआईआर दर्ज कर ली गई है। वहीं अब इस विवाद पर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी टिप्पणी की है।

ओवैसी ने विजय शाह के बयान को गंदगी बताया और कहा कि उन्हें कैबिनेट से निकाल देना चाहिए। ओवैसी ने कहा कि उन्हें जेल भेज कर भाजपा को मिसाल पेश करनी चाहिए। न्यूज एजेंसी पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में ओवैसी ने ये बातें कहीं।

ओवैसी ने जमकर साधा निशाना

ओवैसी ने कहा, 'वो एक प्रदेश के मिनिस्टर हैं और ऐसी बातें कह रहे हैं। कर्नल सोफिया हमारे देश की बेटी है। उसमें भी आपने मजहब देख लिया। उनका बयान एक समुदाय के प्रति उनकी घृणा को दर्शाता है। उनको ये समझाने की जरूरत है कि आप घृणा कीजिए, लेकिन पाकिस्तान से आए आतंक से कीजिए।'

उन्होंने कहा कि 'भाजपा सरकार उन्हें कैबिनेट से निकाले। हाईकोर्ट के कहने पर केस दर्ज हो गया है। उन्हें अरेस्ट कर जेल में भेजा जाए। एक बेहतरीन मिसाल बने देश में कि आप इस तरह की बकवास नहीं कर सकते। एक बहादुर ऑफिसर के बारे में आप इस तरह की गंदगी और हेटफुल कमेंट नहीं कर सकते।'

ओवैसी ने कहा कि 'गंदगी है वह। आपकी नफरत है। आपको ये भी लिहाज नहीं रहा कि आप मंत्री हैं। मुझे पता चला है कि उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री की पत्नी के लिए भी अनाप-शनाप कहा था। क्यों नहीं रोक रही भाजपा उन्हें। उन्हें नहीं निकाल रहे क्योंकि वो एक जाति से आते हैं। वहां भी आपको राजनीति देखनी है।'

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'मानवता के लिए खतरा बना पाक', पड़ोसी मुल्क पर जमकर बरसे ओवैसी; अब मोदी की 'टीम इंडिया' में शामिल होकर करेंगे बेनकाब

Dainik Jagran - National - May 17, 2025 - 3:51pm

पीटीआई, नई दिल्ली। AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने एक बार फिर से पाकिस्तान को आड़ों हाथे लिया है और आतंकवाद के मुद्दे पर खरी-खरी सुनाई है। उन्होंने कहा कि आतंकवाद को प्रायोजित करने के लंबे इतिहास के साथ पाकिस्तान मानवता के लिए खतरा बन गया है।

ओवैसी उठाएंगे ये मुद्दा

ओवैसी ने कहा कि सरकार द्वारा विश्व के अलग-अलग देशो में भेजे जा रहे सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्य के रूप में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को दिए जाने वाले उनके संदेश का मूल पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद ही होगा।

हैदराबाद सांसद ने कहा कि दुनिया को पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों द्वारा निर्देष नागरिकों की हत्या करने के बारे में बताया होगा। उन्होंने कहा, "भारत पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का एक बड़ा शिकार रहा है। हम सभी ने जिया-उल-हक के समय से निर्दोष लोगों के कत्लेआम और तमाशा देखा है।"

'भारत में हैं 20 करोड़ मुसलमान'

हालांकि, ओवैसी ने बताया कि सरकार की तरफ से उन्हें कूटनीतिक अभियान के बारे में अधिक जानकारी नहीं दी गई है। उन्होंने कहा कि भारत के साथ टकराव में खुद को इस्लामिक देश के रूप में पेश करने के लिए पाकिस्तान को आड़े हाथों लेना जरूरी है। यह बकवास है, क्योंकि भारत में करीब 20 करोड़ मुसलमान रहते हैं। दुनिया को यह भी बताना जरूरी है।

पाकिस्तान पर निशाना साधते हुए उन्होने कहा कि भारत को अस्थिर करना, सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ावा देना और देश के आर्थिक विकास को रोकना पाकिस्तान की अलिखित विचारधारा का हिस्सा है।

'हमें 1947 में ही समझ जाना चाहिए था'

ओवैसी ने कहा कि भारत को पाकिस्तान की इस साजिश को काफी पहले समझ जाना चाहिए था, जब उसने 1947 में आजादी के बाद जम्मू-कश्मीर में कबायली हमलावरों को भेजा था।

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