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जानवरों से इंसानों तक: भारत में जूनोटिक संक्रमणों की खामोश दस्तक
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी।
आईसीएमआर के अध्ययन की रिपोर्ट में सामने आया कि 2018 से 2023 के बीच आठ प्रतिशत संक्रामक रोग पशुओं से मनुष्यों में फैले है। यह रिपोर्ट ज़ूनोटिक बीमारियों पर आधारित है। अध्ययन में यह भी सामने आया है कि इन जूनोटिक बीमारियों में जापानी इंसेफेलाइटिस सबसे आम था, जो कुल जूनोटिक प्रकोपों का 29.5 फीसदी था। इसके बाद लेप्टोस्पायरोसिस (18.7 फीसदी) और स्क्रब टायफस (13.9 फीसदी) का स्थान रहा।
वहीं भारत में क्षेत्रीय आधार पर देखें तो देश के पूर्वोत्तर हिस्से में सबसे ज्यादा 35.8 फीसदी प्रकोप सामने आए हैं। वहीं इसके बाद दक्षिण भारत (31.7 फीसदी) और पश्चिम भारत (15.4 फीसदी) में इनका सबसे ज्यादा प्रकोप देखा गया।
स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स फॉरेस्ट 2022 की रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत और चीन नए जूनोटिक वायरल बीमारी के सबसे बड़े हॉटस्पॉट बन सकते हैं। स्टडी में कहा गया कि कम से कम 10 हजार वायरस प्रजातियों में मनुष्यों को संक्रमित करने की क्षमता है।
आईसीएमआरके पूर्व वैज्ञानिक रमेश धीमान कहते हैं कि जानवरों से होने वाली बीमारियां भारत में तेजी से बढ़ रही हैं। इसका मुख्य कारण जानवरों के परिवेश में इंसानों का बढ़ता दखल है। तराई इलाकों में भी आबादी तेजी से बढ़ी है।
पिछले कुछ अध्ययनों में पाया गया कि चिकनगुनिया, स्क्रब टायफस और त्वचीय लीशमैनियासिस जैसे जूनोटिक रोग पश्चिमी राजस्थान से हिमाचल प्रदेश, केरल और हरियाणा में बढ़ते हुए देखे गए हैं। असम में वेस्ट नाइल वायरस, और जापानी एन्सेफलाइटिस (जेई) के गैर-स्थानिक क्षेत्रों जैसे महाराष्ट्र और दिल्ली में जेई के मरीज पाए जाने लगे हैं। इस पर और अध्ययन किए जाने और तत्काल कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।
ऑर्गनाइज्ड मेडिसिन एकेडमिक गिल्ड के सेक्रेटरी जनरल डॉक्टर इश्वर गिलाडा कहते हैं कि इंसानों ने अपने लालच के चलते जानवरों का परिवेश तबाह कर दिया है। बड़े पैमाने पर जंगली जानवरों को खाने का चलन भी आया है। ऐसे में बड़ी संख्या में जानवरों से होने वाली बीमारियां बढ़ी हैं। एक अनुमान के मुताबिक पिछले 40 सालों में जो भी नई बीमारियां आई हैं उनमें से 70 फीसदी जानवरों से आई हैं। इसमें नीपा वायरस, सार्स, एचआईवी, मैड काऊ, इबोला और एच वन एन वन जैसी बीमारियां शामिल हैं। हमें इस बात को समझना होगा कि अगर हम जानवरों के परिवेश में घुसेंगे तो हमें कई तरह की चुनौतियां का सामना करना होगा। हमें अभी खाद्य आदतों पर भी ध्यान देना होगा।
अध्ययन में कहा गया है कि दुनियाभर में महामारी और प्रकोपों का बड़ा कारण नई या दोबारा से उभरती बीमारियां हैं, जिनमें से करीब दो-तिहाई रोग जानवरों से इंसानों में फैलते हैं। देखा जाए तो इसके लिए कहीं न कहीं हम इंसान ही जिम्मेवार हैं।
जूनोटिक बीमारी बन सकती है बड़ा खतरा
केजीएमसी के डॉक्टर (जूनोटिक पर शोध पत्र प्रकाशित कर चुके) डॉक्टर विभोर अग्रवाल कहते हैं कि वर्तमान में, बड़ी संख्या में ऐसे वायरस, बैक्टीरिया या फंगस हैं जो महामारी का कारण बन सकते हैं। इनमें से बड़ी संख्या में जानवरों से आए हैं। डब्लूएचओ ने इनकी एक संभावित सूची भी तैयार की है। लेकिन अगली महामारी का कारण क्या होगा इसकी अभी कोई जानकारी नहीं है। आने वाले समय में जूनोटिक बीमारियां एक बड़ा खतरा बन सकती हैं। हमें अभी इस इस तरह के प्रयास करने होंगे कि इन बीमारियों के संक्रमण के खतरे को रोका जा सके और अगर संक्रमण होता है तो हमें इससे कैसे लड़ना है इसकी तैयारी करनी होगी।
इबोला, कोरोना से लाखों लोगों की हर साल जान जा रही
अगर इंसानों ने पर्यावरण और जंगली जीवों को नहीं बचाया तो उसे कोरोना जैसी और खतरनाक बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। इतना ही नहीं जूनोटिक बीमारियां जैसे जीका वायरस, इबोला और कोरोना से लाखों लोगों की हर साल जान जा रही है।
कोविड महामारी के बाद पूरी दुनिया में इस बात को लेकर बहस छिड़ी है की भविष्य में इस तरह की महामारियों से भविष्य में कैसे निपटा जाए। ऐसे में वैज्ञानिकों के एक समूह ने सुझाव दिया है कि महामारियों के आने पर उनसे जूझने की बजाए उन्हें रोकने के लिए पर्याप्त इंतजाम किया जाना काफी किफायती और फायदेमंद कदम होगा। www.science.org में छपी एक रिपोर्ट के वैज्ञानिकों ने तीन ऐसे कदम बताए हैं जिनसे आने वाले समय में महामारियों को रोकने में मदद मिल सकती है।
बढ़ा आर्थिक बोझवैज्ञानिकों के मुताबिक पिछली सदी में वायरल प्राणीजन्य महामारियों के चलते करोड़ों लोगों की जान चली गई और इन महामारियों से लड़ने में सरकारों पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ में भी लगातार वृद्धि हुई है। शोधकर्ताओं के मुताबिक बड़ी संख्या में वायरस को आश्रय देने के लिए जाने जाने वाले वन्यजीवों के साथ मनुष्य कई तरह से संपर्क में आते हैं। इन वायरसों में से कई अभी तक मनुष्यों में नहीं फैले हैं। ऐसे में शोधकर्ताओं ने उभरते हुए वायरस जिसने खतरनाक महामारी फैल सकती है उनसे संभावित वार्षिक नुकसान की गणना की। शोधकर्ताओं ने पाया कि भविष्य की महामारियों के प्रभाव को कम करने के लिए कुछ व्यावहारिक कदम तुरंत उठाए जाने की जरूरत है। इनमें रोगजनक स्पिलओवर की बेहतर निगरानी, वायरस जीनोमिक्स और सीरोलॉजी के वैश्विक डेटाबेस का विकास, वन्यजीव व्यापार का बेहतर प्रबंधन और वनों की कटाई में पर्याप्त कमी शामिल है।
शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि महामारियों की रोकथाम के लिए उठाए जाने वाले प्राथमिक कदमों की लागत हर साल उभरते वायरल ज़ूनोज के लिए खोए गए जीवन के मूल्य के 1/20 वें हिस्से से भी कम है, साथ ही इसके कई फायदे भी हैं।
इतने लोगों की गई जानइस बीमारी के चलते 1918 में 5 करोड़ से ज्यादा लोगों की जान गई थी। इसी तरह एच2एन2 इन्फ्लुएंजा 11 लाख, लासा बुखार 2.5 लाख, एड्स 1.07 करोड़, एच1एन1 2.8 लाख और कोरोनावायरस 40 लाख से ज्यादा लोगों की जान अब तक ले चुका है। पिछलों कुछ वर्षों में इंसानों में जानवरों से होने वाली बीमारियों यानी 'जूनोटिक डिजीज' में इजाफा हुआ है। इबोला, बर्ड फ्लू और सार्स जैसी बामारियां इसी श्रेणी में आती हैं। पहले ये बीमारियां जानवरों और पक्षियों में होती हैं और फिर उनके जरिए इंसानों को अपना शिकार बना लेती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि जूनोटिक बीमारियों के बढ़ने की एक बड़ी वजह खुद इंसान और उसके फैसले हैं।
भारत को इन बीमारियों से आगाह रहना होगावेस्ट बंगाल यूनिवर्सिटी ऑफ एनीमल एंड फिशरी साइंसेज के प्रोफेसर सिद्धार्थ एन जोरदार कहते हैं कि कांगो फीवर का प्रभाव अब गुजरात और महाराष्ट्र में हो रहा है। पहले यह अफ्रीका के देशों में होता था। जोनोसेस निपाह, हेंड्रा वायरस, सेरेमन कांगो फीवर, कायसनूर फॉरेस्ट डिजीज आदि से भारत को बेहद सावधान रहने की आवश्यकता है।
ये उठाने होंगे कदम
इंडियन वेटेनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर डा. यशपाल सिंह मलिक कहते हैं कि हमें हर जानवर से फैलने वाली संभावित बीमारी का पता होना चाहिए। भारत मे भी जूनोटिक बीमारियों का खतरा काफी अधिक है। भारत मे बंदरो से भी इंसान में बीमारी फैल चुकी है। ऐसे में हमे इस विषय को गंभीरता से लेते हुए काम करना होगा।
प्रोफेसर सिद्धार्थ कहते हैं कि इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी और सर्विलांस की वजह से यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है। प्रयोगशालाएं सीमित है। वैज्ञानिक और सरकारें अभी इसे लेकर व्यापक स्तर पर कोई प्रोजेक्ट नहीं चला रही है। हम बड़े पैमाने पर इसके बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाना होगा।
दुनिया में सख्त वन्यजीव व्यापार प्रतिबंधों की जरूरतवैज्ञानिकों के मुताबिक जंगली जानवरों को पकड़ने और उनके व्यापार से वायरस फैलने के जोखिम को कम करने के लिए पूरी दुनिया में सख्त वन्यजीव व्यापार प्रतिबंधों की जरूरत है। वहीं उष्णकटिबंधीय वनों की कटाई को धीमा करना वायरसों को फैलने से रोकने के लिए आवश्यक है। वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया कि वायरस की प्राथमिक रोकथाम पर खर्च बीमारी के इलाज पर खर्च की तुलना में बेहद मामूली होता है।
विश्व बैंक और विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से एक ग्लोबल प्रिपेयरनेस मॉनिटरिंग बोर्ड बनाया गया है जो इस बात की निगरानी कर रहा है कि हम आने वाली महामारियों के लिए कितने तैयार हैं। इस बोर्ड को लक्ष्य दिया गया है कि वो ग्लोबल हेल्थ क्राइसिस को मैनेज करने के लिए पहले से ही तैयारियां करके रखे। 100 वर्षों में इंसान नए वायरस की वजह से होने वाले छह तरह के खतरनाक संक्रमण का सामना कर चुका है।
यूएन एनवायरमेंट प्रोग्राम की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर इंगर एंडरसन ने कहा कि पिछले 100 वर्षों में इंसान नए वायरस की वजह से होने वाले कम से कम छह तरह के खतरनाक संक्रमण का सामना कर चुका है। मध्यम और निम्न आय वर्ग वाले देशों में हर साल कई लाख लोगों की मौत गिल्टी रोग, चौपायों से होने वाली टीबी और रेबीज जैसी जूनोटिक बीमारियों के कारण हो जाती है। इतना ही नहीं, इन बीमारियों से न जाने कितना आर्थिक नुकसान भी होता है।
जूनोटिक बीमारियांवह रोग जो पशुओं के माध्यम से मनुष्य में और मनुष्य से फिर पशुओं में फैलते हैं, उन्हें जूनोसिस या जूनोटिक रोग कहा जाता है। ये रोग 2300 ईसा पूर्व से चले आ रहे हैं। जूनोटिक संक्रमण प्रकृति या मनुष्यों में जानवरों के अलावा बैक्टीरिया, वायरस या परजीवी के माध्यम से फैलता है। जूनोटिक रोगों में मलेरिया, एचआइवी एडस, इबोला, कोरोना वायरस रोग, रेबीज आदि शामिल हैं। इन बीमारियों में खास यह है कि यह समय के हिसाब से खुद को म्यूटेट करते रहते हैं। ऐसे में एक वायरस पर प्रभावी वैक्सीन आ भी जाए तो वह जरूरी नहीं कि दूसरे पर भी असर करेगी।
जूनोटिक रोग बैक्टीरिया, वायरस, फफूंद अथवा परजीवी किसी भी रोगकारक से हो सकते हैं। भारत में होने वाले जूनोटिक रोगों में रेबीज, ब्रूसेलोसिस, स्वाइन फ्लू, बर्ड फ्लू, इबोला, निपाह, ग्लैंडर्स, सालमोनेलोसिस इत्यादि शामिल हैं। दुनिया में लगभग 150 जूनोटिक रोग हैं।
गुरुद्वारे की जमीन को वक्फ बोर्ड ने बताई अपनी संपत्ति, सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला; अदालत ने की ये टिप्पणी
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दिल्ली के शाहदरा स्थित एक गुरुद्वारे की जमीन को वक्फ भूमि बताते हुए एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई। दिल्ली वक्फ बोर्ड का दावा था कि शाहदरा में जिस जमीन पर गुरुद्वारा बना हुआ है, वह वक्फ की जमीन है और आजादी से पहले वहां एक मस्जिद थी।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ बोर्ड की याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि गुरुद्वारा कई दशकों से वहां पर है, इसलिए वक्फ बोर्ड को पीछे हट जाना चाहिए। इसके पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने भी वक्फ बोर्ड की याचिका को खारिज कर दिया था।
शाहदरा इलाके में स्थित है गुरुद्वाराये पूरा मामला शाहदरा स्थित गुरुद्वारे की जमीन से जुड़ा है। इसे वक्फ की संपत्ति बताते हुए दिल्ली वक्फ बोर्ड ने वहां मस्जिद होने का दावा किया था। बोर्ड की तरफ से पेश हुए वकील संजय घोष ने कहा कि निचली अदालतों में मस्जिद होने के दावे को स्वीकार किया था।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मांग को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि जब गुरुद्वारा वहां अच्छी तरह संचालित हो रहा है, तो उसे रहने दें। एक धार्मिक संरचना पहले से चल रही है, इसलिए वक्फ बोर्ड को खुद पीछे हट जाना चाहिए। जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि आपको खुद ही दावे को छोड़ देना चाहिए।
2010 में वक्फ बोर्ड की याचिका को दिल्ली हाई कोर्ट ने भी खारिज कर दिया था, जिसके बाद बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। याचिका में कहा गया था कि वहां मस्जिद तकिया बब्बर शाह स्थित थी और जमीन वक्फ को दी गई थी। हालांकि प्रतिवादी का तर्क था कि संपत्ति वक्फ की नहीं रह गई, क्योंकि उसके तत्कालीन मालिक मोहम्मद अहसान ने इसे 1953 में बेच दिया था।
यह भी पढ़ें: मुस्लिमों की ‘उम्मीद’ बनेगा वक्फ, सरकार 6 जून को लॉन्च करेगी पोर्टल
Caste Census Data 2027: 1 मार्च 2027 से शुरू होगी जनगणना, जातिगत आंकड़े भी होंगे शामिल
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश में 17 साल बाद फिर राष्ट्रीय जनगणना होने जा रहा है। सूत्रों के अनुसार जनगणना 1 मार्च 2027 से शुरू होगी। जनगणना, जाति जनगणना (National Population Census In India) के साथ ही की जाएगी। राष्ट्रीय जनगणना दो चरणों में की जाएगी। उत्तर के पहाड़ी क्षेत्रों में सबसे पहले। सूत्रों ने बताया कि लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में जनगणना 1 अक्टूबर 2026 से शुरू होगी।
खबर अपडेट की जा रही है।
Bengaluru Stampede चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर मची भगदड़, सात लोगों की मौत और कई घायल;
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। Bengaluru Stampede। आरसीबी विक्ट्री परेड (RCB Victory Parade) से पहले बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर भगदड़ मच गई। समाचार एजेंसी रॉयटर ने टीवी चैनलों के हवाले से जानकारी दी है कि भगदड़ में अब तक सात लोगों की मौत हुई है।
बता दें कि आईपीएल फे फानल मुकाबले में आरसीबी ने पंजाब को 6 रन से हरा दिया। आरसीबी पहली बार आईपीएल चैंपियन बनी है। थोड़ी देर में कर्नाटक विधानसभा से चिन्नास्वामी स्टेडियम आरसीबी परेड निकलने वाली है।
हजारों की तादाद में चिन्नास्वामी पहुंचे RCB फैंसघायलों को नजदीकी अस्पताल ले जाया गया। हादसे के पीछे की वजह आयोजकों की लापरवाही बताई जा रही है। हजारों की तादाद में आरसीबी फैंस जीत का जश्न मनाने के लिए चिन्नास्वामी स्टेडियम पहुंचे हैं। वहीं, बड़ी संख्या में लोग स्टेडियम के बाहर मौजूद हैं। मंगलवार रात से ही आरसीबी फैंस जीत का जश्न मना रहे हैं।
हम लोगों पर लाठी चार्ज नहीं कर सकते: डीके शिवकुमारकर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने भगदड़ को लेकर चिंता जाहिर की है। उन्होंने कहा,"मौत को लेकर कुछ भी पुष्टि नहीं कर सकते। हमने 5,000 से अधिक कर्मियों की व्यवस्था की थी। यह एक युवा उत्साही भीड़ है, हम लाठी चार्ज नहीं कर सकते।"
छह लड़ाकू विमान, C-130 एयरक्राफ्ट... IAF ने पाकिस्तान में मचाई थी भारी तबाही, पढ़ें दुश्मन देश को कितना पहुंचा नुकसान
एएनआइ,नई दिल्ली। भारतीय वायुसेना के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि भारत की क्रूज एवं सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों ने पाकिस्तानी वायुसेना के छह लड़ाकू विमानों, दो अन्य अहम विमानों, 10 से अधिक अनमैन्ड काम्बैट एरियल व्हीकल (यूसीएवी), एक सी-130 परिवहन विमान के साथ कई क्रूज मिसाइलों को नष्ट कर दिया। हालांकि भारतीय वायुसेना अभी भी संघर्ष के दौरान एकत्रित भारी मात्रा में आंकड़ों का विश्लेषण कर रही है।
पाकिस्तान के विरुद्ध अभियान में शामिल रहे सूत्रों ने बताया कि मार गिराए गए दो अहम विमानों में से एक या तो काउंटर मेजर्स एयरक्राफ्ट या एयरबोर्न अर्ली वार्निंग या कंट्रोल एयरक्राफ्ट हो सकता है जिसे सुदर्शन ने 300 किलोमीटर की दूरी पर नष्ट कर दिया।
स्वीडन निर्मित एक अन्य एईडब्ल्यूसी विमान नष्ट हुआचार दिवसीय संघर्ष के दौरान भोलारी एयरबेस पर क्रूज मिसाइलों से किए गए हमले में स्वीडन निर्मित एक अन्य एईडब्ल्यूसी विमान नष्ट हो गया। हैंगर में लड़ाकू विमानों की मौजूदगी के बारे में भी जानकारी है, लेकिन पाकिस्तान वहां से मलबा नहीं निकाल रहा इसलिए जमीन पर लड़ाकू विमानों के नुकसान की गिनती नहीं की गई है।
भारतीय वायुसेना की रडार एवं वायु रक्षा मिसाइल प्रणालियों ने पाकिस्तानी विमानों को कैप्चर कर लिया था और वायु रक्षा प्रणालियों के हमले के बाद उन्हें गायब होते देखा गया था। पाकिस्तानी वायुसेना ने पाकिस्तानी पंजाब में भारतीय वायुसेना के ड्रोन हमलों में अपना एक सी-130 परिवहन विमान भी गंवा दिया।
सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तानी ठिकानों पर हमला करने में केवल हवा से लांच की जाने वाली क्रूज मिसाइलों का इस्तेमाल किया गया, इनमें सतह से सतह पर मार करने वाली ब्रह्मोस मिसाइलों का उपयोग नहीं किया गया। राफेल और एसयू-30 विमानों के एक हमले में बड़ी संख्या में लंबी दूरी तक मध्यम ऊंचाई पर उड़ान भरने में सक्षम चीन ¨वग लूंग श्रेणी के ड्रोन नष्ट हो गए। साथ ही 10 से अधिक यूसीएवी को भी नष्ट कर दिया गया।
देख लो दुनिया पाकिस्तान का असली चेहरा, सीजफायर के बाद आतंकियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है शहबाज सरकार
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के बतौर अस्थाई सदस्य पाकिस्तान जुलाई, 2025 में एक महीने के लिए दुनिया के इस सबसे बड़े पंचायत का अध्यक्ष रहेगा। इस बात की पूरी उम्मीद है कि पाकिस्तान अपने अध्यक्षीय पद का लाभ उठाते हुए कश्मीर मुद्दे को हवा देने की कोशिश करेगा। लेकिन भारत की तैयारियां भी पुख्ता दिखती हैं।
खास तौर पर ऑपरेशन सिंदूर के बाद जिस तरह से पाकिस्तान के कई शहरों में आयोजित होने वाली रैलियों में खुलेआम आतंकवादी हिस्सा ले रहे हैं और भारत पर हमला करने की धमकी दे रहे हैं, इसके बारे में सारी सूचनाएं जुटाई जा रही हैं।
इन्हें भारत एफएटीएफ (फाइनेंशिएल एक्शन टास्क फोर्स-आतंकी फंडिंग पर लगाम लगाने के लिए स्थापित अंतरराष्ट्रीय एजेंसी) और दूसरे मंचों पर पर आतंकवादी संगठनों के साथ पाकिस्तान के लगातार मजबूत बने रिश्तों का पोल खोलने के लिए किया जाएगा। ये रैलियां भारत के इस आरोप को पुख्ता करते हैं कि पाकिस्तान सरकार की तरफ से सीमा पार आतंकी वारदातों को अंजाम देने वाले संगठनों को प्रश्रय देने का काम कभी नहीं रोका।
जैश ए मोहम्मद का गढ़ माना जाता है बहावलपुरभारतीय एजेंसियों को इस बात की सूचना मिली है कि ऑपरेशन सिंदूर के पहले दिन भारत ने पाकिस्तान के जिन नौ शहरों में चलने वाले आतंकवादी ठिकानों पर हमला किया था, उनको नये सिरे से शुरू करने की तैयारी की जा रही है।
बहावलपुर स्थित जैश ए मोहम्मद का गढ़ सुभान-अल्लाह मस्जिद में फिर से गतिविधियां शुरू हो गई हैं। इसका एक बड़ा हिस्सा भारतीय हमले में बुरी तरह से क्षतिग्रस्त है। वैसे वहां जबरदस्त सुरक्षा इंतजाम किये गये हैं और पाकिस्तानी मीडिया को भी जाने की इजाजत नहीं है।
इसी तरह से एक अन्य आतंकी संगठन लश्करे तैयबा के अधिकारियों को मुजफ्फराबाद व मुरीदके स्थित उसके धवस्त ठिकानों का अवलोकन करने की सूचनाएं भी आई हैं। आपरेशन सिंदूर के दौरान कार्रवाई में इन सभी आतंकी ठिकानों को काफी नुकसान पहुंचा था और यहां प्रशिक्षण हासिल करने वाले आतंकियों की मौत भी हुई थी।
आतंकियों के साथ खड़ी दिख रही पाकिस्तान सरकारइस काम में पहलगाम हमले कराने के साजिश में शामिल सैफुल्लाह कसूरी फिलहाल भारत विरोधी रैलियों में सबसे आक्रामक दिख रहा है। लाहौर में सोमवार को उसने एक रैली में खुलेआम कश्मीर में फिर से हमला करने की धमकी दी।
इस रैली में पंजाब प्रांत के विधानसभा के स्पीकर मलिक अहमद खान ने भी हिस्सा लिया था। पाकिस्तान मरकजी मुस्लिम लीग की तरफ से आयोजित इस रैली में तल्हा सईद (हाफिज सईद का बेटा) भी शामिल हुआ और उसका सार्वजनिक अभिनंदन भी किया गया।
तल्हा सईद और सैफुल्लाह कसूरी दोनों ही वैश्विक आतंकवादी सूची में शामिल हैं। इनका पाकिस्तान में इस तरह से खुलेआम सार्वजनिक सभाओं में राजनेताओं के साथ शामिल होना बताता है कि पाकिस्तान को सीमा पार आतंकवाद को लेकर अब कोई लिहाज नहीं रह गया है।
पाकिस्तान ने विदेशों में भेजा अपना डेलिगेशनयह काम तब किया जा रहा है कि जब पाकिस्तान सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर पर अपना पक्ष रखने के लिए दो-दो पूर्व विदेश मंत्रियों बिलावल भुट्टो और हिना रब्बानी की अगुवाई में एक दल विदेश भेज रखा है। यह दल विदेशी सरकारों के समक्ष यह गुहार लगा रहा है कि सीमा पार आतंकवाद पर भारत बगैर किसी सबूत के पाकिस्तान को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है।
हाल ही में भारत ने यह कहा है कि एफएटीएफ में एक बार फिर वह पाकिस्तान के आतंकी संगठनों के साथ सांठगांठ के मुद्दे पर जाएगा। वर्ष 2017-18 में भी भारत ने एफएटीएफ के समक्ष पाकिस्तान में खुलेआम घूमने वाले आतंकियों और भारत में सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देने के मुद्दे को रखा था, इसकी वजह से ही पाकिस्तान को निगरानी सूची में डाला गया था। एफएटीएफ के बताये दिशानिर्देशों पर काम करने के बाद पाकिस्तान सरकार किसी तरह से प्रतिबंधित सूची में शामिल होने से बच सका था
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