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'पाकिस्तान में 100 किमी अंदर घुसकर आतंकियों को मारा, एक्शन से दुनिया हैरान'; ऑपरेशन सिंदूर पर बोले अमित शाह

Dainik Jagran - National - May 17, 2025 - 8:31pm

एएनआई, गांधीनगर। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह आज गुजरात के दौरे पर रहे। गांधीनगर में अमित शाह ने 708 करोड़ रुपये लागत के विभिन्न विकास कार्यों के उद्घाटन व शिलान्यास किया। इस दौरान उन्होंने एक जनसभा को संबोधित किया।

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने ऑपरेशन सिंदूर पर भी अपनी बातों को रखा और भारतीय सेना की सराहना की। गृहमंत्री ने यहां पर कहा कि भारतीय सेना ने पहली बार पाकिस्तान में 100 किलोमीटर भीतर आतंकियों के शिविरों को नष्ट किया। उन्होंने कहा कि हमने 9 ऐसे स्थलों को नष्ट कर दिया जहां आतंकियों को प्रशिक्षित किया जाता था और उनके ठिकाने थे।

आतंकियों को ठिकानों को भारतीय सेना ने किया नष्ट

गांधीनगर में जनसभा को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि आजादी के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि हमारी सेना ने पाकिस्तान में 100 किलोमीटर अंदर घुसकर हमला किया और आतंकी शिविरों को नष्ट कर दिया।

उन्होंने कहा कि जो लोग हमें धमकाते थे कि उनके पास परमाणु बम हैं, उन्हें लगता था कि हम डर जाएंगे। लेकिन, हमारी सेना, नौसेना और वायु सेना ने उन्हें ऐसा करारा जवाब दिया है कि पूरी दुनिया हमारी सेना के धैर्य और पीएम मोदी के दृढ़ नेतृत्व की प्रशंसा कर रही है। मैं हमारे सशस्त्र बलों की वीरता को सलाम करता हूं।

पाकिस्तान के 15 हवाई ठिकानों पर सटीक हमला

गृहमंत्री शाह ने कहा यहां लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि जब पाकिस्तान ने पूरी पश्चिमी सीमा पर हमला करने का दुस्साहस किया, लेकिन पीएम मोदी के नेतृत्व में हमारी वायु रक्षा प्रणाली इतनी उत्तम हो गई है कि कोई भी मिसाइल या ड्रोन भारत की भूमि तक नहीं पहुंच पाया।

उन्होंने कहा कि 100 से अधिक दुर्दांत आतंकवादियों को मारने के बाद भी पाकिस्तान सोच में ही था और हमने उनके 15 हवाई ठिकानों पर हमला किया, लेकिन हमने उनके लोगों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया हमने उनकी हवाई हमले की क्षमता को नष्ट कर दिया।

भारतीय सेना ने दिया मुंहतोड़ जवाब: शाह

इस कार्यक्रम में बोलते हुए अमित शाह ने कहा कि हमारी सेना ने पाकिस्तान में 100 किलोमीटर अंदर घुसकर आतंकवादियों को मुंहतोड़ जवाब दिया। जो लोग सियालकोट और अन्य आतंकवादी शिविरों में छिपे हुए थे, जिन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी गतिविधियों की योजना बनाई थी; 'उन सबको हमारे बम के धमाकों की गूंज ने एक स्पष्ट संदेश भेजा है' अगर भारत के लोगों के साथ कोई आतंकवादी गतिविधि होती है, तो जवाब दोगुनी ताकत से दिया जाएगा।

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टीचरों की छुट्टी को लेकर नई गाइडलाइन तैयार, ACS S Siddharth बोले- कोचिंग में पढ़ते मिले सरकारी स्कूल के बच्चे तो...

Dainik Jagran - May 17, 2025 - 8:22pm

राज्य ब्यूरो, पटना। राज्य के तकरीबन 81 हजार सरकारी विद्यालयों की जमीन संबंधी भू-राजस्व रिकॉर्ड (दस्तावेज) तैयार होगा। इसमें हर विद्यालय के पास कितनी जमीन है, उसका ब्योरा दर्ज होगा।

अगर किसी विद्यालय की जमीन अतिक्रमित है, तो उसे भी रिकार्ड में शामिल किया जाएगा और उसे अतिक्रमण मुक्त कराने की कार्रवाई की जाएगी।

सभी विद्यालयों की जमीन और उसके संपत्तियों के रखरखाव, सुरक्षा और निगरानी के लिए शिक्षा विभाग द्वारा जल्द ही एक अलग इंफ्रास्ट्रक्चर विंग तैयार किया जाएगा।

शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ. एस. सिद्धार्थ ने शनिवार को इसकी जानकारी दी। वे शिक्षा की बात : हर शनिवार कार्यक्रम में लाइव थे।

उन्होंने बताया कि शिक्षा विभाग की ओर से तैयार किए जा रहे इंफ्रास्ट्रक्चर विंग में भू-संपदा अधिकारी और सहायक भू-संपदा अधिकारी की नियुक्ति जल्द की जाएगी।

इन पदाधिकारियों की यह जिम्मेदारी होगी कि राज्य के सभी विद्यालयों की जमीन और अतिक्रमित जमीन के बारे में पूरा रिकार्ड तैयार करना और जिलेवार व प्रखंडवार उसका रजिस्टर बनाना।

जिन विद्यालयों की जमीन अतिक्रमित है, उसके विरुद्ध स्थानीय पुलिस-प्रशासन की मदद से कार्रवाई कर मुक्त कराया जाएगा।

विद्यालयों की जमीन व अन्य संपदा का रखरखाव, प्रबंधन और निगरानी की कमान भू-संपदा पदाधिकारियों के जिम्मे होगी।

अगर सरकारी विद्यालय के बच्चे कोचिंग में पढ़ते पाए गए तो उसे बंद किया जाएगा

शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ. एस. सिद्धार्थ ने कहा कि वैसे सरकार का पहले से यह आदेश है कि विद्यालय अवधि में कोई भी कोचिंग संस्थान नहीं संचालित हाेंगे।

अगर विद्यालय अवधि में कोई कोचिंग संस्थान खुला है और उसमें सरकारी विद्यालय के बच्चे पढ़ाई करते पाए जाते हैं उस पर कार्रवाई होगी और उसे बंद करेंगे। इस संबंध में स्पष्ट रूप से सभी जिलाधिकारियों को भी निर्देश है।

उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई बच्चा ट्यूशन के बहाने विद्यालय से लापता रहत है तो प्रधानाध्यापक एक बार लिखित में नोटिस देकर संबंधित अभिभावक को बताएंगे कि बच्चे को विद्यालय भेंजे, नहीं तो उसका नाम विद्यालय से काट दिया जाएगा।

इसी तरह पैरेंट मीटिंग में अभिभावक विद्यालय में नहीं आते हैं तो उन्हें भी चेतावनी दें। अभिभावकों से भी अपील है कि बच्चों को नियमित रूप से विद्यालय भेंजे ताकि शिक्षक उन्हें पढ़ा सकें।

अगर सरकारी विद्यालय में केवल बच्चे का नामांकन कराते हैं और कोचिंग में पढ़ाते हैं तो उस नामांकन से क्या फायदा होगा?

शिक्षकों को अवकाश के लिए गाइडलाइन तैयार

अपर मुख्य सचिव डॉ. एस. सिद्धार्थ ने शिक्षकों के अवकाश स्वीकृति को लेकर तैयार गाइडलाइन के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि गाइडलाइन जल्द ही जारी किया जाएगा।

इसके मुताबिक किस संवर्ग के शिक्षक के लिए कितनी छुट्टियां स्वीकृत होंगी, इसका प्रविधान गाइडलाइन में किया गया है। वैसे शिक्षकों को अवकाश लेने हेतु ऑनलाइन आवेदन करना है।

यह जिला शिक्षा अधिकारी की जवाबदेही होगी कि शिक्षकों के प्राप्त आनलाइन आवेदन पर अवकाश की स्वीकृति सात दिनों के अंदर दें। अगर आवेदन पर सात दिनों में कोई निर्णय नहीं लिया जाता है तो अवकाश स्वीकृत माना जाएगा।

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कमजोरी-बेहोशी से परेशान थी महिला, पटना में ऑपरेशन के बाद बोले डॉक्टर, 10 लाख में चार को ये बीमारी

Dainik Jagran - May 17, 2025 - 8:20pm

जागरण संवाददाता, पटना। इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस (आइजीआइएमएस) में दुर्लभ “इंसुलिनोमा” ट्यूमर का सफल लैप्रोस्कोपिक ऑपरेशन कर एक मरीज को नया जीवन मिला। मुजफ्फरपुर निवासी 27 वर्षीय निशा कुमारी पिछले एक साल से कमजोरी और बार-बार बेहोशी की समस्या से जूझ रही थीं।

आजीआइएमएस किया गया था रेफर 

बेहतर इलाज के लिए उन्हें आजीआइएमएस रेफर किया गया, जहां एंडोक्राइन रोग विशेषज्ञ डा. आनंद कुमार की देखरेख में जांच के बाद उनके अग्नाशय (पैंक्रियास) में दो सेंटीमीटर का इंसुलिनोमा ट्यूमर पाया गया। इसकी पहचान सीटी स्कैन, एमआरआई एवं एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड के माध्यम से की गई।

इंसुलिनोमा एक न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर

डा. आनंद कुमार ने बताया कि इंसुलिनोमा एक न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर होता है जो अत्यधिक मात्रा में इंसुलिन स्रावित करता है। इससे शरीर में ग्लूकोज की मात्रा खतरनाक रूप से घट जाती है, जिससे मरीज को कमजोरी, पसीना और बेहोशी की स्थिति का सामना करना पड़ता है।

मरीज चलने-फिरने और खाने-पीने में सक्षम

ट्यूमर की पुष्टि के बाद गैस्ट्रोसर्जरी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. साकेत कुमार ने लैप्रोस्कोपिक तकनीक से महज चार छोटे छिद्रों के माध्यम से ट्यूमर का सफल आपरेशन किया। चीराफाड़ न होने के कारण मरीज आपरेशन के दो दिन बाद ही सामान्य रूप से चलने-फिरने और खाने-पीने में सक्षम हो गईं। अगले एक-दो दिनों में उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी जाएगी।

10 लाख में एक से चार लोगों को होती है परेशानी

इंसुलिनोमा के लक्षणों की जानकारी देते हुए डा. साकेत कुमार ने बताया कि इस बीमारी में शरीर में इंसुलिन की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाती है। इससे ग्लूकोज का स्तर 50 एमएल से भी नीचे चला जाता है। यह स्थिति मरीज़ के मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकती है।

पांच वर्षों में तीन केस मिले 

इसका एकमात्र स्थायी इलाज आपरेशन के द्वारा ट्यूमर को निकालना है। उन्होंने बताया बीते पांच वर्षों में तीन केस ही मिले हैं, देश के आंकड़ों के अनुसार 10 लाख में एक से चार केस मिलता है। उन्होंने बताया कि इसमें मरीजों को इतना अधिक इंसुलिन का स्त्राव होता है कि शुगर कम हो जाता है। धड़कन, सरदर्द, चक्कर आना, मिर्गी आने जैसे लक्षण आने लगते है।

गंभीर बीमारी का यहीं होगा इलाज

चिकित्सा अधीक्षक सह गैस्ट्रो सर्जरी विभागाध्यक्ष डा. मनीष मंडल ने बताया कि राज्य के लोगों को अब गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए बाहर जाने की आवश्यकता नहीं है। संस्थान में सभी आधुनिक तकनीकों को समय-समय पर जोड़ा जा रहा है। मरीज के सफल इलाज पर संस्थान के निदेशक डा. बिंदे कुमार ने चिकित्सा टीम को बधाई दी है।

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प्रभावी सिंचाई और बाढ़ जोखिम प्रबंधन से बदलेगी बिहार की तस्वीर, विश्व बैंक के साथ 4415 करोड़ की परियोजना को मंजूरी

Dainik Jagran - May 17, 2025 - 7:45pm

डिजिटल डेस्क, पटना। बाढ़ की समस्या और सिंचाई के आधुनिक प्रबंधन के लिए बिहार सरकार ने बड़ी पहल की है। इसमें अंतर्गत विश्व बैंक के साथ कुल 4 हजार 415 करोड़ रुपये की परियोजना को राज्य मंत्रिमंडल से स्वीकृति मिलने के बाद बिहार जल सुरक्षा एवं सिंचाई आधुनिकीकरण को एक नई गति मिलेगी।

प्रस्तावित परियोजना का मुख्य उद्देश्य संस्थागत क्षमता निर्माण के स्तर से प्रभावी सिंचाई प्रबंधन एवं कुशल सिंचाई प्रणाली का निर्माण करना है। इस परियोजना से राज्य में प्रभावी बाढ़ जोखिम प्रबंधन के स्तर से आपदा एवं आपातकालीन स्थिति में की जाने वाली तैयारियों और प्रक्रिया की क्षमता में वृद्धि होगी।

इसके अलावा इस परियोजना से परिणामी आर्थिक और सामाजिक कल्याण के लिए हितधारकों के बीच समन्वय को अधिक बढ़ावा मिल सकेगा। यह एक व्यापक पहल है, जिसमें आवश्यक संस्थागत सुदृढीकरण, हितधारकों की क्षमता का निर्माण, कुशल सिंचाई व्यवस्था, बाढ़ जोखिम न्यूनीकरण एवं सूखा निवारण आदि शामिल हैं। उक्त परियोजना से बिहार के विभिन्न जिले लाभान्वित होंगे।

जिससे बाढ़, जलजमाव और सूखे से प्रभावित जिलों पर अधिक ध्यान केन्द्रित किया जा सकेगा। बाढ़ के खतरे को कम करने के लिए प्रमुख नदियों के अतिरिक्त जलप्रवाह को नियंत्रित करने, जलप्रवाह की क्षमता को बढ़ाने में मदद मिल सकेगी। इससे बांधों की सुरक्षा के लिए अद्यतन तकनीक का प्रयोग कर उसे और अधिक सुदृढ़ बनाने और सुखाग्रस्त जिलों के लिए सिंचाई स्रोत से ह्रासित सिंचाई क्षमता को पुनर्स्थापित किया जा सकेगा।

प्रस्तावित परियोजना एक वाह्य संपोषित परियोजना है, जिसकी कुल प्राक्कलित राशि 4415 करोड़ रुपये है। इसका 30 प्रतिशत अर्थात् 1324 करोड़ 50 लाख रुपये बिहार सरकार द्वारा वहन किया जाएगा एवं शेष 70 प्रतिशत अर्थात् 3090 करोड़ 50 लाख रुपये की राशि विश्व बैंक (आईबीआरडी) से ऋण के रूप में ली जाएगी। इस परियोजना के मुख्य चार अवयव हैं। जिसके अन्तर्गत निम्नलिखित राशि का प्रावधान किया गया है।

इसमें जलवायु के अनुकुल सिंचाई के लिए 2487 करोड़ रुपये, बाढ़ जोखिम न्यूनीकरण के लिए 1525 करोड रुपये, जल शासन के लिए 243 करोड़ रुपये और परियोजना प्रबंधन के लिए 160 करोड़ रुपये के प्रावधान किए गए हैं। परियोजना के विभिन्न अवयवों के अन्तर्गत कराये जाने वाले कार्यों का क्रियान्वयन जल संसाधन विभाग (नोडल विभाग) के अतिरिक्त ग्रामीण विकास विभाग एवं कृषि विभाग, बिहार सरकार द्वारा किया जाएगा। परियोजना के कार्यान्वयन की समय-सीमा वित्तीय वर्ष 2025-26 से प्रारंभ कर अगले सात वर्षों में इसे पूर्ण करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

सिंचाई प्रणालियों का होगा उन्नयन एवं आधुनिकीकरण

इस परियोजना के तहत चिन्हित सिंचाई प्रणालियों का उन्नयन एवं आधुनिकीकरण प्रस्तावित है। ताकि राज्य में सिंचाई व्यवस्था वर्षा पर निर्भर न रहे और प्रतिकूल स्थितियों में भी सिंचाई की सुविधा कृषकों को उपलब्ध करायी जा सके। इसके अंतर्गत प्रमुख योजनाओं में सोन, गंडक एवं कोसी बैराजों का पुनर्स्थापन, सोन पश्चिमी मुख्य नहर का आधुनिकीकरण, पश्चिमी कोसी सिंचाई योजनाओं का पुनर्स्थापन एवं आधुनिकीकरण, झंझारपुर शाखा नहर का पुनर्स्थापन एवं आधुनिकीकरण, सारण मुख्य नहर (17 से 35 किमी तक) का नवीकरण एवं लाईनिंग शामिल हैं।

परियोजना के तहत बाढ़ जोखिम को किया जाएगा न्यूनतम

परियोजना के तहत बाढ़ जोखिम न्यूनीकरण के लिए चिन्हित तटबंधो व स्परों का पुनर्स्थापन एवं सुदृढ़ीकरण प्रस्तावित है। पुनर्स्थापन एवं सुदृढ़ीकरण हेतु विश्व बैंक के सम्बन्धित परामर्शियों के सहयोग से अद्यतन रूपांकण तकनीक का उपयोग किया गया है। इसके अंतर्गत प्रमुख योजनाओं में बागमती के बाएं तटबंध की उच्चीकरण, सुदृढ़ीकरण और पक्कीकरण, कुरसेला ब्लॉक जिला कटिहार में गांव पत्थरटोला से कमलाकनी तक कटाव रोधी कार्य, विस्तारित सिकरहट्टा मंझारी बांध का सुदृढ़ीकरण एवं पक्कीकरण के साथ इसके 11 स्पर का जीर्णोद्धार और पूर्वी कोसी तटबंध के 25 स्परों का जीर्णोद्धार शामिल हैं।

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होटल के डिस्प्ले बोर्ड पर कन्नड़ लोगों के खिलाफ टिप्पणी, सोशल मीडिया पर वायरल हुआ वीडियो; पुलिस ने दर्ज की FIR

Dainik Jagran - National - May 17, 2025 - 7:31pm

पीटीआई, बेंगलुरु। बेंगलुरु के एक होटल में कन्नड़ लोगों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी प्रदर्शित होने का मामले सामने आया है। मादिवाला थाना पुलिस ने होटल मालिक के खिलाफ मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।

पुलिस ने बताया कि जीएस सूट नामक होटल के वैरिएबल मैसेज डिस्प्ले बोर्ड पर कन्नड़ लोगों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी दिखाई दे रही थी। शुक्रवार रात घटना का वीडियो इंटरनेट मीडिया पर प्रसारित हो गया। शनिवार को मामले का पता चलने पर पुलिस ने होटल पहुंचकर डिस्प्ले बोर्ड को हटा दिया। मादिवाला थाने पर होटल मालिक के खिलाफ केस दर्ज किया गया है।

स्वत: संज्ञान के आधार पर मामला दर्ज

पुलिस उपायुक्त सारा फातिमा ने बताया कि यह होटल मादिवाला थाने के अंतर्गत आता है। इंटरनेट मीडिया पर नजर रखने वाले सब इंस्पेक्टर ने स्वत: संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज किया। उन्होंने कहा, होटल में काम करने वाले पांच लोगों को पूछताछ के लिए उठाया गया है। मालिक विदेश में बताया जा रहा है। इससे जुड़े सभी लोगों को नोटिस जारी कर पूछताछ की जाएगी।

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राहुल गांधी ने शेयर किया जयशंकर का फर्जी वीडियो? PIB ने बताई सच्चाई

Dainik Jagran - National - May 17, 2025 - 6:45pm

पीटीआई, नई दिल्ली। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शनिवार को कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के बारे में पाकिस्तान को सूचित करना अपराध था। विदेश मंत्री एस. जयशंकर के यह स्वीकार करने पर राहुल गांधी ने सवाल उठाया कि भारत सरकार ने पाकिस्तान को इस कार्रवाई के बारे में सूचित किया था। उन्होंने पूछा कि इसकी अनुमति किसने दी।

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल ने कहा, हमले की शुरुआत में पाकिस्तान को सूचित करना अपराध था। विदेश मंत्री ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि भारत सरकार ने ऐसा किया। इसके परिणामस्वरूप हमारी वायुसेना ने कितने विमान खो दिए?

PIB ने बयान को लेकर क्या कहा?

प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) ने यह दावा खारिज कर दिया है कि जयशंकर ने कहा था कि भारत ने ऑपरेशन सिंदूर से पहले पाकिस्तान को सूचित किया था। एक्स पर पोस्ट में पीआइबी की फैक्ट चेक यूनिट ने कहा कि मंत्री ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया है। उनकी बात को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है।

राहुल गांधी ने जयशंकर का एक बिना तारीख वाला वीडियो भी साझा किया जिसमें वह कह रहे हैं कि भारत ने पाकिस्तान को आतंकी बुनियादी ढांचे के खिलाफ कार्रवाई के बारे में सूचित किया है।

ऑपरेशन की शुरुआत में, हमने पाकिस्तान को मैसेज भेजा, जिसमें कहा गया, हम सेना पर नहीं, आतंकी ढांचे पर हमला कर रहे हैं। पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू कश्मीर (पीओजेके) में आतंकी ठिकानों को ध्वस्त किया था।

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Interview: 'भारत की जरूरत है कि पाकिस्तान में गृह युद्ध न हो', खास बातचीत में बोले एअर मार्शल जयंत आपटे

Dainik Jagran - National - May 17, 2025 - 6:16pm

रुमनी घोष, दिल्ली। पहलगाम हमले के प्रतिकार के साथ ही भारत ने सात से 10 मई के बीच दुनिया को अपनी आधुनिक युद्ध कला की एक झलक दिखलाई है। पश्चिमी दुनिया को इसे समझने और स्वीकारने में थोड़ा समय लगा, लेकिन पाकिस्तान के सीने में उभर आए घाव नजर आने के बाद सब हैरान हैं।

यह संयोग ही है कि जब भारतीय सेना इस स्ट्राइक को अंजाम दे रही थी, उस वक्त एअर मार्शल (रिटा.) जयंत आपटे (पीवीएसएम, एवीएसएम ) उत्तरी अमेरिका से इस अभियान को परख रहे थे। महाभारत के संजय की तरह युद्ध मैदान से दूर बैठकर वह उस सैन्य दल को लड़ते देख रहे थे, जिसे उनके जैसे सैन्य अधिकारियों ने मिलकर तीन दशक पहले इसी दिन के लिए तैयार करना शुरू किया था।

वर्ष 1971 में बांग्लादेश के लिए लड़ा गया भारत-पाक युद्ध के गवाह रहे एअर मार्शल आपटे वायु सेना के उन अधिकारियों में भी शामिल हैं, जिन्होंने भारतीय सेना को आधुनिक और तकनीक से युक्त बनाने में अपना पूरा कार्यकाल दिया है।

भारतीय वायुसेना में अपने 34 साल के कार्यकाल में पश्चिमी- पूर्वी वायु कमान और रखरखाव कमान में चीफ इंजीनियरिंग आफिसर, कमांड सिग्नल ऑफिसर और डिप्टी सीनियर मेंटेनेंस स्टाफ ऑफिसर जैसे अहम पदों की कमान संभाली। तीन त्रिशूल अभ्यास के साथ उन्होंने परिचालन उपलब्धता बढ़ाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक एक्सचेंज और संचार प्रणालियों की स्थापना को मानकीकृत किया।

वायुसेना स्टेशन, कानपुर में पदस्थ रहते हुए उन्होंने विमानों और एअरोइंजनों के उत्पादन में वृद्धि की और एएन-32 एअरफ्रेम और वाइपर एअरोइंजनों के लिए लाइफ टीमों के संशोधन का नेतृत्व किया था। दैनिक जागरण की समाचार संपादक रुमनी घोष ने उनसे आनलाइन चर्चा की तो उन्होंने रोमांचक व गर्वभरे पलों के साथ 'संघर्ष' से 'विराम' तक लिए गए निर्णयों के पीछे छिपे अर्थ की व्याख्या की। उनका कहना है कि सही समय पर संघर्ष विराम कर भारत ने शक्ति और संयम का प्रदर्शन किया है। यदि यह संघर्ष आगे बढ़ता तो पाकिस्तान में गृह युद्ध की स्थिति बन सकती थी...और भारत के लिए जरूरी है कि एेसा न हो। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंशः

25 मिनट में 24 मिसाइलों से नौ ठिकानों पर हमला...भारत ने जिस गति, सटीकता, गहराई और व्यापकता के साथ पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक किया है, क्या यह भारतीय सैन्य इतिहास में पहली बार है?

देखिए, आधुनिक युग में जिस स्पीड (गति) की बात होती है और इसके पहले जितने ऑपरेशन हुए थे, उनकी तुलना नहीं हो सकती है। इसके तीन मुख्य कारण हैं। पहला, सूचनाओं का संकलन पहले मैनुअली होता था, लेकिन अब सब सैटेलाइट के जरिये यह ऑनलाइन उपलब्ध है। दूसरा इंटेलीजेंस इनफार्मेशन इकट्ठा कर ऊपर से लेकर नीचे जवानों तक पहुंचाने में बहुत समय लगता था।

आजकल यह सूचनाएं सबके पास तुरंत पहुंच जाती हैं। तीसरा, तैनाती (डिप्लायमेंट), टीम की भागीदारी (पार्टिसिपेशन) और हथियारों की उपलब्धता। आज से 20-25 साल पहले इनमें बहुत समय लगता था। एअरक्राफ्ट और हथियारों के परिणामों की सटीकता भी कमतर होती थी। आज हमारे पास स्ट्रैटेजिक ट्रांसपोर्ट एअरक्राफ्ट हैं। जवानों से लेकर हथियारों की तैनाती में अब इतना समय नहीं लगता है।

लड़ाकू विमानों के ऑपरेटिव रेंज (परिचालन सीमा) और हथियारों की मारक क्षमता अचूक है। जब यह सारे इनपुट पहले की तुलना में बदल गए तो परिणाम निश्चित रूप से बेहतर होंगे। बेशक, इन सभी का कितना बेहतर ढंग से उपयोग किया जाए, यह किसी भी देश के सैन्य कमान के हाथों में होता है। हालांकि यह भी याद रखने की जरूरत है कि आपके दुश्मन के पास भी यह सभी चीजें उपलब्ध हैं। ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने इन सभी का बेहतरीन उपयोग किया, इसलिए यह परिणाम सामने आया है।

क्या कारगिल युद्ध की तरह ही हमने ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय सेना ने जरूरत के हिसाब से हथियारों को अपग्रेड किया?

कारगिल युद्ध के दौरान हमने लेजर गाइडेड बॉम्ब का मॉडिफिकेशन (परिवर्तन) किया गया था। मेरे पास जो सूचना है, उसके मुताबिक इस आपरेशन में ऐसा प्रयोग नहीं हुआ है। इस सफलता में स्वदेशी हथियारों का बड़ा रोल रहा।

इस ऑपरेशन में उपयोग हुए कई स्वदेशी हथियार, तकनीक व युद्ध रणनीति आपके समय कमीशन हुए होंगे। यह अनुभव कैसा है?

1990 का दौर था... यानी लगभग 30 साल पहले भारतीय सेना में स्वदेशी हथियारों व तकनीक विकसित करने का प्रोग्राम शुरू हुआ था। हालांकि तब भी हम सिर्फ यही सोचते थे कि हथियारों के स्पेयर पार्ट्स बनाने और हथियारों के स्वदेशीकरण के बारे में थोड़ा बहुत सोचते थे। हमारा ज्यादा से ज्यादा जोर विदेशी हथियारों के मोडिफिकेशन पर था। मगर बीते 20 साल में भारतीय सेना में बहुत बड़ा बदलाव आया। हमने तेजी से स्वदेशी हथियार बनाने की क्षमता विकसित कर ली है।

यही नहीं, उसे आर्मी, एअरफोर्स और नेवी में एकीकृत प्रणाली (इंटिग्रेड) लागू कर दिया है। समन्वय देखिए, कि एक स्वदेशी हथियार हमारी तीनों सेना अपने-अपने ढंग से इसका उपयोग कर सकती है। और बीते दस सालों में तो डीआरडीओ, इसरो, भारत इल्केट्रिकल (बेल), हिंदुस्तान एरोनाटिकल लिमिटेड (एचएएल) ने जो काम किया है, उससे स्वदेशीकरण के जरिये भारत की सैन्य क्षमता तो बढ़ी है और जो स्वदेशी हथियार बने हैं।

उसकी गुणवत्ता व मारक क्षमता बेहतर हुई है। पहले हथियारों की गुणवत्ता व क्षमता पर लेकर हमेशा आशंका बनी रहती थी, वह भी खत्म हो गई है। अब तो अंतरराष्ट्रीय मीडिया भी हमारे हथियारों को सराह रही है।

तो क्या सेना ने जितना सोचा था, उससे कहीं ज्यादा बेहतर परिणाम मिला?

बिलकुल। हम तो सिर्फ थोड़ा बहुत स्वदेशीकरण करने के बारे में सोच रहे थे, लेकिन अब तो हम इन्हें बना रहे हैं। हम बहुत आगे निकल चुके हैं।

क्या इस बहाने स्वदेशी हथियारों का परीक्षण हो गया?

हथियारों का परीक्षण दो तरह से होता है। पहला, हम हथियारों को प्रूव (साबित) करते हैं, यानी मारक क्षमता और जिस उद्देश्य से बनाई गई है, वह पूरी हुई है या नहीं, यह देखते हैं। दूसरा, उसका परफार्मेंशन (परिणाम), ...लेकिन हथियार तो युद्ध व युद्ध जैसी परिस्थितियों में ही उपयोग होता है। यदि परिणाम उत्साहजनक आते हैं तो इससे ज्यादा खुशी की बात नहीं है। और यह हो रहा है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी सब जगह तारीफ हो रही है। सभी एक ही नाम ले रहे हैं- ब्रम्होस। 1990 में इस तरह के स्वदेशी हथियार बनाने के बारे में पहली बार सोचा गया था। इस तरह के हथियारों व तकनीक को बनने में लंबा समय लगता है। इस दौर में 'इंटिग्रेशन ऑफ आर्म फोर्सेस' का पाठ्यक्रम शुरू किया गया। उसका भी बेहतरीन असर देखा गया।

पाकिस्तान पर स्ट्राइक कर भारत ने चीन के हथियारों को भी एक्सपोज कर दिया?

भारत ने पाकिस्तान और चीन के एअर डिफेंस सिस्टम को चकमा देकर पाकिस्तान के 11 एयरबेस तबाह किए, उससे पाकिस्तान के साथ चीन के हथियारों की गुणवत्ता व मारक क्षमता पर सवालिया निशान लग गए हैं। और भारत के हथियारों की मार्केटिंग भी हो गई।

1971 के भारत-पाक युद्ध में आप वायुसेना का हिस्सा थे। उस समय फील्ड मार्शल सैम बहादुर मानेक शा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लगभग छह महीने का समय मांगा था? पहलगाम हमले के 16वें दिन में हमला कर दिया गया। अंतर को कैसे देखते हैं?

वर्ष 1971 का युद्ध हम अपने लिए नहीं लड़ रहे थे, लेकिन बांग्लादेश के शरणार्थियों का असर भारत पर पड़ रहा था। उस समय पाकिस्तान आर्मी के पास हथियार थे, लेकिन पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के पास बहुत सीमित संसाधन थे। सेना का आकलन था कि बांग्लादेश में बारिश के दौरान आपरेशन उचित नहीं था।

मोबिलिटी कम थी और सरकार के पास संसाधन भी कम थे। मुझे आज भी याद है कि उस समय जब तैयारियां शुरू हुई थीं, तो बहुत लंबा समय लगा था। विदेश से हथियार बुलवाने और एकत्रित कर मौके पर पहुंचाने में बहुत समय लगा था। आज स्थितियां बदल गई हैं। हम विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। हमारे पास न संसाधन और न ही हथियारों की कमी है।

जब हम इतने सक्षम हैं तो फिर यह संघर्ष विराम क्यों?

मेरा निजी तौर पर मानना है कि संघर्ष विराम का निर्णय बिलकुल सही है। हर देश को युद्ध शुरू करने से पहले इसे खत्म कब करना है, यह हर देश और उसकी सेना को पता होना चाहिए। यदि हमारे पास शक्ति है, तो उसका कितना उपयोग करना है, यह तय होना चाहिए। और हमने दुनिया को बताया कि हमारे पास शक्ति और संयम दोनों हैं।

यदि यह संघर्ष दो-चार दिन और चलता तो पाकिस्तान में अंतकर्लह शुरू हो जाता है। वैसे ही पाकिस्तान एक विफल देश बनता जा रहा है और वहां परिस्थितियां और ज्यादा बिगड़ती तो इसके दूरगामी परिणाम भारत को भी झेलना पड़ता। बांग्लादेश में यह स्थिति हम देख चुके हैं। आप नजर रखिए, अगले दो-तीन महीने में ही आप पाएंगे कि पाकिस्तान में गृहयुद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हो रही है। और भारत की जरूरत है कि पाकिस्तान में गृह युद्ध न हो।

आम भारतीयों और बहुत से सैन्य अधिकारियों की धारणा है कि हम मैदान में तो जीत जाते हैं लेकिन टेबल पर जंग हार जाते हैं?

(हंसते हुए...) यह सही है कि आम भारतीयों की तरह यहां (नार्थ अमेरिका) भी भारतीय मूल के लोग संघर्ष विराम को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। मैंने यहां कुछ समूहों को समझाने की कोशिश की, लेकिन बड़ा वर्ग अभी भी सहजता से मानने को तैयार नहीं है। मैं उनसे यही कह सकता हूं कि वह एक बाक्सिंग रिंग की कल्पना करें।

जिसमें एक पक्ष ने दूसरे पक्ष पर मुक्कों की बौछार कर उसे पूरी तरह से चित कर दिया। अब उस हारे पर चाहे और जितने भी वार करें, कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वैसे भी संघर्ष विराम की गुहार पाकिस्तान की ओर से लगाई गई और भारत ने बड़प्पन दिखाते हुए यह किया। इससे पूरी दुनिया में हमारा कद ही बड़ा है।

टाम कूपर, जॉन स्पेंसर जैसे वार स्ट्रैटेजिक एनालिस्ट भारत की सैन्य क्षमता को सराह रहे हैं। क्या भारत राजनीतिक और रणनीतिक दोनों स्तर पर विश्वभर में संदेश देने में कामयाब रहा?

इसमें कोई दो मत नहीं है कि ऑपरेशन सिंदूर काबिल-ए-तारीफ है। भारतीय सेना ने जब पाकिस्तान के एअर डिफेंस सिस्टम को निष्क्रिय कर एयरबेस को तबाह कर यह दिखा दिया कि भारत अपनी मर्जी से, अपने समय से जब और जहां तक चाहेगा, कार्रवाई कर सकता है। खास बात यह है कि दुनिया को यकीन नहीं था कि हम इतनी बड़ी कार्रवाई इतनी सटीकता के साथ कर सकते हैं।

दुनिया को यह लग रहा था हमने हमला किया है तो पाकिस्तान भी उसी तरह से जवाबी कार्रवाई में इन्हीं हथियारों का उपयोग करेगा, लेकिन इस मोर्चे पर पाकिस्तान पूरी तरह से विफल हो गया। आम तौर अंतरराष्ट्रीय मीडिया भारत के शक्ति प्रदर्शन को बहुत ज्यादा सराहता नहीं है, लेकिन इस बार अंतरराष्ट्रीय मीडिया को भी सराहना करना पड़ी।

तो क्या माना जाए कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत को लेकर पश्चिम की धारणा पूरी तरह बदल गई है?

नहीं, धारणा अभी भी पूरी तरह तो नहीं बदली है। स्ट्राइक्स की इतनी सारी जानकारियां दुनिया के सामने आने के बाद भी बहुत से मीडिया रिपोर्ट्स में यह बताया जा रहा है कि पाकिस्तान ही नहीं बल्कि भारत भी बहुत लंबे समय तक संघर्ष जारी नहीं रख सकता था, इसलिए संघर्ष विराम किया गया।

बहुत स्वाभाविक है कि जब आप आगे बढ़ते हैं, तो आपके प्रतिद्वंदी आपकी तारीफ नहीं करेंगे। इसलिए उनकी तारीफ का इंतजार किए बगैर भारत को लगातार अपनी सैन्य क्षमता को और विकसित करते रहना चाहिए।

सामरिक विशेषज्ञों का आकलन है कि सरगोधा पर अटैक कर भारत ने ऐसी स्थिति बना दी है कि अब अपने परमाणु हथियार को बाहर निकालने की स्थिति में नहीं है?

यह सूचना मीडिया की रिपोर्ट के आधार पर है। फिर भी यदि इसे सही माना जाए तो यह पाकिस्तान की उस बात का जवाब है, जिसमें उनके नेता बार-बार यह कहते थे कि हमारे परमाणु हथियार स्टोरेज में रखने के लिए नहीं हैं। हमने उनके परमाणु हथियार को स्टोरेज में रखवा दिया है।

वैसे मैं अपने अनुभव के आधार पर कहूं तो किसी भी एअर अटैक से जमीन के भीतर तरंगे उत्पन्न होती हैं। सरगोधा एयरबेस पर अटैक से आसपास की जमीन क्षतिग्रस्त हुई होगी और इससे परमाणु हथियार का इंस्टालेशन प्रभावित हो सकता है। हालांकि ऐसा हुआ है या नहीं, इसकी सटीक जानकारी कुछ लोगों के पास होगी।

सेना को अब कहां पर अपग्रेड होने की जरूरत है?

एअरो इंजन...। यह हमारे यहां अभी नहीं बन रहे हैं। अभी भी कई पार्ट्स हमें दूसरे देशों से लेना पड़ रहे हैं। कोई भी देश आपको पूरी तकनीक नहीं देता है, इसलिए जरूरी है कि इस क्षेत्र में भारतीय सेना तेजी से काम करे।

इस संघर्ष में रूस और इजराइल के अलावा कोई देश भारत के साथ खड़ा नहीं हुआ? क्यों?

यह स्थिति तो आनी ही नहीं थी कि किसी देश की जरूरत पड़े। आज के भारत में यह स्थिति नहीं है कि कुछ दिनों के संघर्ष के लिए हमें किसी से हथियार लेना पड़ा। मैं तो इसे इस तरह से देख रहा हूं कि भारत इतनी ऊंचाई पर पहुंच गया है कि उसे किसी के समर्थन की जरूरत नहीं है। वैसे भी यह एक छोटा-सा स्ट्राइक था, इसके लिए तो हमें किसी की मदद के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए। हां, वर्ष 1971 के दौर में हमें दूसरे देशों की मदद की जरूरत थी, क्योंकि उस समय हमारी तैयारी उस स्तर की नहीं थी।

सरकार भले ही बार-बार गुलाम जम्मू-कश्मीर को वापस लेने की बात कहे, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है यह लगभग असंभव है। आप क्या सोचते हैं?

गुलाम जम्मू-कश्मीर हमारा हिस्सा है। इसके बारे में हमें हर वक्त सोचना चाहिए। हाल ही में रूस ने यूक्रेन से अपनी जमीन वापस ली है, तो हम क्यों नहीं। यह जरूर है कि फिलहाल यह समय सही है या नहीं, यह बहस का विषय हो सकता है।

हर ऑपरेशन के बाद सेना 'लेसन लर्न्ड' यानी 'सबक' पर एक रिपोर्ट बनाती है? क्या स्ट्राइक में उपयोग किए गए हथियारों में कुछ ऐसे हैं, जिनका प्रदर्शन क्षमता अनुरूप नहीं रहा?

लेसन लर्निंग सेना का बहुत जरूरी हिस्सा है। जहां तक हथियारों की बात है, इस पर सिर्फ उन्हीं अफसरों व जवानों की बात मानी जानी चाहिए, जिन्होंने इसका उपयोग किया है। बाकी किसी को भी इस पर नहीं बोलना चाहिए। हर आपरेशन के बाद यह रिपोर्ट बनती है। इस बार भी बनेगी।

कहा जा रहा है पाकिस्तान तीन-चार महीने में दोबारा हमला कर सकता है? हम कितने तैयार हैं?

मुझे नहीं लगता कि पाकिस्तान इतनी जल्दी दोबारा हमला करने की स्थिति में होगा। जहां तक तैयारी की बात है तो एक वाकया सुनाता हूं। 1980 की बात है पाकिस्तान के राष्ट्रपति का विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ। सूचना आते ही भारतीय सेना ने अपने सारे रडार सिस्टम को सक्रिय करते हुए तैनाती कर दी थी। फिर यह तो आज की सेना है।

Categories: Hindi News, National News

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