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'पापा आपकी यादें...', राहुल गांधी, खरगे समेत कई नेताओं ने राजीव गांधी को दी श्रद्धांजलि; बताया भारत का महान बेटा
एएनआई, नई दिल्ली। आज राजीव गांधी की 34वीं पुण्यतिथि हैं। साल 1991 में उनकी एक हमले में मौत हो गई थी। इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी समेत कई नेता उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिखा है, राहुल गांधी अपने पोस्ट में राजीव गांधी को श्रद्धांजलि दे रहे हैं, उनका ये पोस्ट काफी इमोशनल है।
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अपने दिवंगत पिता और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 34वीं पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके तरफ से छोड़े गए सपनों को पूरा करने का संकल्प लिया। दिल्ली में वीर भूमि पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्होंने कहा कि उनके पिता की स्मृति हर कदम पर उनका मार्गदर्शन करती है।
पापा, आपकी यादें हर कदम पर मेरा मार्गदर्शन करती हैं।
आपके अधूरे सपनों को साकार करना ही मेरा संकल्प है - और मैं इन्हें पूरा करके रहूंगा। pic.twitter.com/jwptCSo1TN
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) May 21, 2025पापा आपकी यादें- राहुल गांधीराहुल गांधी ने लिखा- 'पापा, आपकी यादें हर कदम पर मेरा मार्गदर्शन करती हैं। आपके अधूरे सपनों को साकार करना ही मेरा संकल्प है और मैं इन्हें पूरा करके रहूंगा।' राहुल गांधी ने अपने पोस्ट में पिता राजीव गांधी के साथ अपने बचपन की फोटो भी पोस्ट की है। मल्लिकार्जुन खरगे और कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने भी दिवंगत नेता को श्रद्धांजलि अर्पित की।
'भारत के महान सपूत हैं राजीव गांधी'पूर्व प्रधानमंत्री को याद करते हुए खरगे ने एक्स पर पोस्ट किया कि राजीव गांधी भारत के एक महान सपूत थे, जिनकी दूरदर्शी सोच ने देश को 21वीं सदी में ले जाने में अहम रोल प्ले किया।
उन्होंने लाखों भारतीयों में आशा की किरण जगाई। उनके दूरदर्शी और साहसी हस्तक्षेप ने भारत को 21वीं सदी की चुनौतियों और अवसरों के लिए तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
क्या बोले सचिन पायलट?सचिन पायलट ने राजीव गांधी को एक दूरदर्शी नेता बताया जिन्होंने अपने नेतृत्व के माध्यम से भारत को एक बेहतरीन दिशा दी।
भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी जी के ‘बलिदान दिवस’ पर मैं उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
राजीव गांधी जी एक दूरदर्शी नेता थे जिन्होंने अपने नेतृत्व और आधुनिक सोच से देश को प्रगतिशील दृष्टिकोण प्रदान कर दिशा दी। उनके निर्णयों ने भारत को एक नई ऊंचाई तक… pic.twitter.com/K6KQmAZBkc
— Sachin Pilot (@SachinPilot) May 21, 2025उन्होंने कहा, 'मैं पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी को उनके 'बलिदान दिवस' पर श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
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Live: वक्फ कानून पर SC में सुनवाई जारी, सरकार बोली- 97 लाख लोगों से लिए गए सुझाव
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में 21 मई को एक बार फिर से केंद्र सरकार की ओर से लाए गए वक्फ कानून पर सुनवाई शुरू हो गई है। वक्फ संशोधन कानून 2025 की संवैधानिकता की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है।
आज की सुनवाई में केंद्र सरकार द्वारा अपना पक्ष रखा जा रहा है और केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह ऐसा मामला नहीं जहां मंत्रालय ने एक बिल बनाया और बिना सोचे समझे वोटिंग कर दी।
'पुरानी समस्या को खत्म करने का कर रहे काम'उन्होंने कहा, "हम एक बहुत पुरानी समस्या को खत्म करने का काम कर रहे हैं, जिसकी शुरुआत 1923 में हुई थी।" सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि कुछ याचिकाकर्ता पूरे मुस्लिम समुदाय की ओर से नहीं बोल सकते। कोर्ट के पास जो याचिकाएं आई हैं वो ऐसे लोगों ने दायर की है, जो सीधे इस कानून से प्रभावित नहीं हैं।
तुषार मेहता ने कहा, "जेपीसी की 96 बैठकें हुईं और हमें 97 लाख लोगों से सुझाव मिले हैं, जिस पर बहुत सोच-समझकर काम किया गया है। किसी ने यह नहीं कहा कि संसद को ये कानून बनाने का अधिकार नहीं था।"
कल की सुनवाई में क्या हुआ?कल कोर्ट की सुनवाई के याचिकाकर्ताओं की तमाम दलीलें सुनी गई और याचिकाकर्ताओं के वकीलों से तमाम तरह के सवाल भी किए गए। हालांकि, कोर्ट इस नतीजे पर नहीं पहुंच पाई की याचिकाकर्ताओं को कोई अंतरिम राहत दी जाए या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा था कि हर कानून के पक्ष में संवैधानिकता की धारणा होती है, इसलिए राहत के लिए बहुत ठोस और स्पष्ट कारण पेश करते होते हैं। कोर्ट ने कहा कि अदालतें तब तक हस्तक्षेप नहीं करती है, जब तक मामला स्पष्ट न हो।
सिब्बल ने काननू पर अंतरिम रोक लगाने की मांग कीइस दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने वक्फ कानून को मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन और वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने वाला बताया। उन्होंने कोर्ट से इस पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की।
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'पांच बड़े जज छुट्टियों में भी काम कर रहे, फिर भी दोष हम पर...'; सुनवाई के दौरान किस पर भड़के CJI गवई?
पीटीआई, नई दिल्ली। भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने बुधवार को नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि वकील छुट्टियों के दौरान काम नहीं करना चाहते हैं। उन्होंन कहा कि जो भी मामले अदालत में लंबित हैं उसके लिए सिर्फ न्यायपालिकों को दोषी ठहराया जाता है।
CJI क्यों हुए नाराज?दरअसल, एक वकील ने ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद याचिका को सूचिबद्ध करने के लिए आग्रह किया था। इस पर सीजेआई बीआर गवई और न्यायमूर्ति जॉर्ज मसीह की पीठ ने नाराजगी जताई।
'छुट्टियों के दौरान वकील काम के लिए नहीं हैं तैयार'सीजेआई ने कहा, छुट्टियों के दौरान पांच जज बैठे हैं और काम करना जारी रखे हुए हैं, फिर भी हमें लंबित मामलों के लिए दोषी ठहराया जाता है। हकीकत में, वकील ही हैं जो छुट्टियों के दौरान काम करने के लिए तैयार नहीं हैं।
'आंशिक अदालत कार्य दिवस'हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने उन पीठों पर एक अधिसूचना जारी की है जो आगामी ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान काम करेंगी, जिसे 26 मई से 13 जुलाई तक 'आंशिक अदालत कार्य दिवस' के रूप में नामित किया गया है।
आंशिक अदालत कार्य दिवस के दौरान दो से पांच अवकाश पीठ बैठेंगी और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया सहित शीर्ष पांच न्यायाधीश भी इस अवधि के दौरान आदालतें चलाएंगे। पहले की प्रथा के अनुसार, गर्मी की छुट्टियों के दौरान केवल दो अवकाश पीठ हुआ करती थीं।
किस-किस दिन रजिस्ट्री रहेगी बंद?अधिसूचना में पीठों में न्यायाधीशों के साप्ताहिक आवंटन की रूपरेखा दी गई है। 26 मई से 1 जून तक सीजेआई बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ जेके माहेश्वरी और बीवी नागरत्ना क्रमश: पांच पीठों का नेतृत्व करेंगे।
इस अवधि के दौरान सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री सभी अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक खुली रहेगी। रजिस्ट्री सभी शनिवार (12 जुलाई को छोड़कर), रविवार और सार्वजनिक छुट्टियों पर बंद रहेगी।
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पाकिस्तान को बिगाड़ रहा है आईएमएफ, जवाबदेही नहीं, रियायतें ही रियायतें
आईएमएफ से पाकिस्तान को कर्ज मिलने के बाद बार-बार यह सवाल उठता है कि क्या आतंक को पोषित करने वाले मुल्क को यह फंड मिलना जायज है? लगातार मिल रहे फंड के बाद भी पाकिस्तान की इकोनॉमी पटरी पर क्यों नहीं आ रही ? वह इन पैसों को दुरुपयोग कर आतंक को बढ़ावा देने में करता है। इस बारे में अनुराग मिश्र ने इंफॉर्मेटिक्स रेटिंग्स के चीफ इकोनॉमिस्ट डा. मनोरंजन शर्मा से बात की।
बार-बार IMF से कर्ज लेने के बावजूद पाकिस्तान आर्थिक स्थिरता हासिल क्यों नहीं कर सका? क्या इसकी जड़ राजनीतिक अस्थिरता है या फिर दोषपूर्ण आर्थिक नीतियां?
पाकिस्तान दशकों से आर्थिक संकटों में डूबा रहा है क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था संरचनात्मक रूप से कमजोर रही है। लोकतंत्र के नाम पर वहां सिर्फ नाटक होता रहा है। असली सत्ता कभी सेना के पास रही, तो कभी कठपुतली सरकारों के पास। 1958 से अब तक पाकिस्तान ने IMF से 24 बार बेलआउट पैकेज लिए हैं। हाल ही में IMF ने उसे 2.4 अरब डॉलर का बेलआउट दिया है, जिसमें 1 अरब डॉलर का एक्सटेंडेड फंड है और बाकी क्लाइमेट लिंक्ड रेज़िलिएंस ट्रस्ट के तहत।
पाकिस्तान की आर्थिक दुर्गति के पीछे मुख्य कारण हैं, राजनीतिक अस्थिरता, बार-बार की सैन्य तख्तापलट, घरेलू संसाधनों पर ध्यान न देना, बिना सोच-समझ के सब्सिडी बांटना और सऊदी अरब व चीन जैसे देशों पर अत्यधिक निर्भरता। यह एक अव्यवहारिक मॉडल था, जिसे अंततः ढहना ही था।
IMF की रिपोर्ट में पाकिस्तान के सुधार प्रयासों की सराहना की गई है, लेकिन साथ ही उसकी संरचनात्मक कमजोरियों की भी बात की गई है। क्या यह विरोधाभास IMF की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है?रिपोर्ट में कुछ सकारात्मक संकेतों जैसे महंगाई में कमी और उपभोक्ता विश्वास में वृद्धि का ज़िक्र है, लेकिन समग्र आर्थिक गति उम्मीद से कमज़ोर रही। असली समस्या ये है कि संरचनात्मक सुधार आज भी अधूरे हैं। कर प्रणाली बेहद सीमित है, नुकसान उठाने वाले सरकारी उपक्रम भारी बोझ बन चुके हैं और ऊर्जा व शासन क्षेत्र में भी बड़े बदलाव अब तक टाले जाते रहे हैं।
सख्त आर्थिक उपाय सामाजिक अशांति और असमानता को बढ़ाते हैं। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि IMF बार-बार "अच्छे पैसे को बुरे में झोंक" रहा है। यानी सुधार के बिना फंड देना एक अंतहीन खाई में पैसा फेंकने जैसा है।
क्या IMF को सहायता मंज़ूर करने से पहले यह जांचना चाहिए कि कहीं ये धन आतंकवाद या सैन्य गतिविधियों में तो नहीं जा रहा?बिलकुल। IMF कर्ज़ कुछ शर्तों के साथ ही देता है, जैसे सब्सिडी में कटौती, टैक्स वसूली में सुधार, मुद्रा की स्थिरता और सैन्य टकराव को रोकना।
लेकिन दिक्कत ये है कि इन शर्तों की निगरानी उतनी सख्त नहीं होती, जितनी होनी चाहिए। पाकिस्तान अक्सर शर्तों की अनदेखी कर देता है और फिर भी अगली किश्त मिल जाती है। यह एक कमजोर निगरानी तंत्र को दर्शाता है।
क्या IMF फंड के आतंकवाद में दुरुपयोग को लेकर भारत की चिंता जायज़ है? क्या ऐसा कोई वैश्विक तंत्र है जो इस पर नज़र रख सके?पाकिस्तान की पिछली गतिविधियों को देखते हुए भारत की चिंता पूरी तरह वाजिब है। देश जब खुद दिवालिया होने की कगार पर हो और फिर भी आतंकी गतिविधियों से बाज़ न आए, तो सवाल उठना स्वाभाविक है। IMF को चाहिए था कि वह पाकिस्तान को धन देने से पहले और अधिक सख्त शर्तें लागू करता और सुनिश्चित करता कि पैसों का इस्तेमाल विकास के लिए हो, न कि सैन्य या आतंकी उद्देश्यों के लिए।
दुर्भाग्य से, ऐसी निगरानी की कोई प्रभावी वैश्विक व्यवस्था आज भी नहीं है।
क्या पाकिस्तान में उद्योगों को दी गई सब्सिडी और संरक्षण एक नकली स्थिरता का भ्रम पैदा करते हैं, जो आत्मनिर्भरता और प्रतिस्पर्धा को रोकते हैं?नहीं, अब तो पाकिस्तान की आर्थिक बदहाली इतनी स्पष्ट है कि कोई भी भ्रम बाकी नहीं बचा। ऋणदाताओं की चिंताएं भी अब साफ तौर पर सामने हैं।
पाकिस्तान आत्मनिर्भरता और प्रतिस्पर्धा की दिशा में कदम बढ़ाने के बजाय गरीबी और आर्थिक जड़ता के दुष्चक्र में फंसा हुआ है। अगर अब भी पाकिस्तान चेत नहीं पाया, तो शायद ऊपर वाला भी उसे नहीं बचा सकेगा।
IMF की 1989 से अब तक 28 बार की मदद के बावजूद पाकिस्तान पिछड़ता रहा, जबकि बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देश आगे क्यों निकल गए?जवाब साफ है राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और विकास की जगह ‘जिहाद’ को राज्य की नीति बना लेना। पाकिस्तान ने विकास की बजाय आतंक को प्राथमिकता दी, जिसकी कीमत उसे आज आर्थिक और सामाजिक दोनों मोर्चों पर चुकानी पड़ रही है।
वहीं बांग्लादेश और वियतनाम ने मानव संसाधन विकास, निर्यात, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण पर ध्यान दिया और आज नतीजे सबके सामने हैं।
क्या IMF की ढीली शर्तें और नरम रवैया पाकिस्तान को सुधारों से बचने और अनुशासनहीनता की छूट देता है?हां, पाकिस्तान को बार-बार "किड ग्लव्स" यानी बहुत ही मुलायम रवैये से ट्रीट किया गया है। यह न सिर्फ पाकिस्तान के लिए नुकसानदेह है, बल्कि वैश्विक समुदाय के लिए भी गलत संदेश भेजता है कि कुछ देशों को बार-बार छूट मिलती है और जवाबदेही नहीं होती।
इससे सुधारों की प्रक्रिया और भी ज्यादा कमजोर पड़ती है।
IMF जैसी वैश्विक संस्थाओं में भारत की भूमिका कितनी होनी चाहिए, खासकर जब क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा पर असर पड़ता हो?भारत को ज़रूर बड़ी भूमिका मिलनी चाहिए, खासकर तब जब क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा दांव पर हो। लेकिन तब तक ऐसा संभव नहीं, जब तक IMF जैसी संस्थाओं की संरचना और वोटिंग सिस्टम में आमूल-चूल परिवर्तन न हो।
आज का अंतरराष्ट्रीय वित्तीय ढांचा औपनिवेशिक दौर की मानसिकता का प्रतीक है, जिसे बदलने की ज़रूरत है ताकि भारत जैसे विकासशील और जिम्मेदार देशों को उनका वाजिब स्थान मिल सके।
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