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बिहारः शिक्षक की चिट्टी पढ़ भावुक हुए ACS, अब टीचर को 'तुम' कहना पड़ेगा भारी, सैलरी पर भी अहम फैसला
राज्य ब्यूरो, पटना। जिला शिक्षा कार्यालयों और क्षेत्रीय शिक्षा उप निदेशक कार्यालयों में शिक्षकों से चढ़ावा मांगने और अमर्यादित व्यवहार (जैसे तुम से संबोधन कर अपमानित करना) की शिकायतों पर शिक्षा विभाग ने कड़ा रुख दिखाया है। विभाग के अपर मुख्य सचिव डा. एस. सिद्धार्थ ने गंभीरता से लेते हुए आदेश दिया है कि ऐसे व्यवहार करने वाले पदाधिकारियों पर दंडात्मक कार्रवाई किया जाएगा।
ग्रुप डी के कर्मचारियों को रखा गया मुक्तशिक्षा विभाग के आदेश के मुताबिक अब शिक्षकों के वेतन भुगतान के बाद ही जिला शिक्षा पदाधिकारियों, जिला कार्यक्रम पदाधिकारियों एवं उनके कार्यालयों के अधीनस्थ अधिकारी-कर्मचारियों को वेतन मिलेगा। इस आदेश से सिर्फ ग्रुप डी के कर्मचारियों को मुक्त रखा गया है।
एस सिद्धार्थ को डाक से मिला पत्रदरअसल, बिहार लोक सेवा आयोग की पहली अध्यापक नियुक्ति परीक्षा (टीआरई-वन) से नियुक्त होकर कार्य कर रहे एक शिक्षक ने शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव डा. एस. सिद्धार्थ को पत्र लिखा है। यह पत्र उन्हें शुक्रवार की डाक में मिला। पत्र लिखने वाले शिक्षक ने अपना नाम तो नहीं लिखा है, लेकिन उसे पढ़ कर शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव भावुक होकर उसमें उठाए गए सवालों पर सोचने के लिए विवश हो गए।
अधीनस्थ क्लर्क उन्हें ''तुम'' कहते हैंशिक्षक ने अपने पत्र में अपर मुख्य सचिव से कहा है कि आप शिक्षकों को ''आप'' कह कर संबोधित करते हैं, उन्हें पूरा सम्मान देते हैं, लेकिन डीईओ (जिला शिक्षा पदाधिकारी), डीपीओ (जिला कार्यक्रम पदाधिकारी) और उनके कार्यालयों के अधीनस्थ क्लर्क उन्हें ''तुम'' कहते हैं, अपमानित करते हैं। चढ़ावा चढ़ाने के लिए विवश करते हैं।
कार्यालय में जाना शिक्षकों की विवशताडीईओ और डीपीओ के कार्यालय में जाना शिक्षकों की विवशता है। उन्हें वेतन, बकायों और सेवा संबंधी दूसरे कार्यों के लिए उन कार्यालयों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। ऐसी व्यवस्था की जाए कि शिक्षकों को डीईओ और डीपीओ के कार्यालय का चक्कर नहीं लगाना पड़े।
रिश्वतखोरी जैसे गंभीर मुद्दे उठायेअध्यापक की भावना एवं उनके द्वारा पत्र में उठाए गए सवालों से अपर मुख्य सचिव उसे शिक्षा की बातः हर शनिवार कार्यक्रम में रखने के लिए विवश हो गए। इस कार्यक्रम में पत्र को भी पढ़ा गया, ताकि शिक्षा विभाग के क्षेत्रीय अधिकारी और उनके अधीनस्थ कर्मचारी अपनी छवि उस आईने में देख सकें। पत्र में वेतन में देरी, डीईओ-डीपीओ का दुव्यर्वहार, रिश्वतखोरी जैसे गंभीर मुद्दे उठाये गए हैं।
एसीएस ने समझी शिक्षकों की वेदनाअपर मुख्य सचिव ने कहा कि मैंने इस पत्र को कई बार पढ़ा है और शिक्षकों की वेदना को पूरी तरह समझा है। उन्होंने ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिया कि जब तक शिक्षकों को वेतन नहीं मिलेगा, तब तक शिक्षा विभाग के क्षेत्रीय कार्यालयों में कार्यरत अधिकारियों और कर्मचारियों (ग्रुप-डी को छोड़कर) को वेतन नहीं दिया जाएगा। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि शिक्षकों को तंग करने या वेतन रोकने की शिकायत आयी, तो सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी।
घबराहट में भारतीय अधिकारियों के खिलाफ प्रोपेगेंडा फैला रहा पाकिस्तान, भारत ने यूं दिया जवाब
एएनआई, नई दिल्ली। पहलगाम में नृशंस आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के मद्देनजर सीमा पार मीडिया चैनलों और आईएसआई से जुड़े कुछ 'ट्रोल नेटवर्क' ने भारतीय सशस्त्र बलों के शीर्ष अधिकारियों को निशाना बनाते हुए फेक न्यूज प्रोपेगेंडा शुरू किया है।
उन्होंने यह झूठा नैरेटिव गढ़ने का कुत्सित प्रयास किया है कि पहलगाम हमले में कथित चूक के लिए शीर्ष भारतीय अधिकारियों को दंडित किया गया है। हालांकि इसके बाद, भारत की ओर से इस आरोप का जोरदार खंडन किया गया है।
दुष्प्रचार कर रहा पाकिस्तानएक भारतीय सरकारी अधिकारी ने कहा कि पाकिस्तान का हालिया फेक न्यूज प्रोपेगेंडा सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ भारत के संयमित, लेकिन दृढ़ रुख के सामने उसकी हताशा का प्रमाण है। पारदर्शिता, पेशेवर ईमानदारी और संवैधानिक निगरानी में दृढ़ भारतीय सशस्त्र बल इस कुत्सित प्रयास से विचलित नहीं होंगे।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के दुष्प्रचार का मुकाबला करने के लिए भारतीय साइबर निगरानीकर्ताओं और प्रतिष्ठानों ने त्वरित तथ्य-जांच का सहारा लिया है, ताकि शीघ्र खंडन जारी किया जा सके, पाकिस्तान-आधारित पोस्ट, चैनल एवं अकाउंट्स को ब्लाक किया जा सके और सशस्त्र बलों की मिशन-तैयारी के बारे में अफवाहों को खारिज किया जा सके।
झूठ फैलाने की कोशिश विफलकुछ पाकिस्तानी चैनलों और ट्रोल नेटवर्क ने आरोप लगाया कि रक्षा खुफिया एजेंसी के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल डीएस राणा को कथित चूक के बाद बर्खास्त कर दिया गया और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के काला पानी में निर्वासित कर दिया गया। जबकि, लेफ्टिनेंट जनरल राणा को अंडमान और निकोबार कमान के कमांडर-इन-चीफ के रूप में पदोन्नत किया गया था।
इसी तरह, पाकिस्तान स्थित कुछ इंटरनेट मीडिया हैंडल ने आरोप लगाया कि लेफ्टिनेंट जनरल एमवी सुचिंद्र कुमार को पहलगाम हमले से जुड़ी विफलताओं के कारण सेना की उत्तरी कमान से बाहर कर दिया गया। जबकि, लेफ्टिनेंट जनरल कुमार चार दशकों की विशिष्ट सेवा के बाद 30 अप्रैल, 2025 को सम्मानपूर्वक सेवानिवृत्त हो चुके थे।कमान में बदलाव की सूचना काफी पहले ही दे दी गई थी।
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रूस की विक्टरी डे परेड में शामिल नहीं होंगे राजनाथ सिंह, पहले पीएम मोदी को जाना था मॉस्को; जानिए क्या है वजह
पीटीआई, नई दिल्ली। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह रूस द्वारा नौ मई को मॉस्को में आयोजित विक्टरी डे परेड में शामिल नहीं होंगे और उनके स्थान पर रक्षा राज्यमंत्री संजय सेठ वहां भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। आधिकारिक सूत्रों ने शनिवार को यह जानकारी दी।
मॉस्को में नौ मई को आयोजित होने वाले समारोह में रक्षा राज्य मंत्री सेठ को भेजने का कदम पहलगाम आतंकवादी हमले को लेकर भारत व पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के मद्देनजर उठाया गया है।
जर्मनी पर सोवियत विजय की याद में कार्यक्रमरूस ने द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी पर सोवियत विजय की 80वीं वर्षगांठ के अवसर पर होने वाली विक्टरी-डे परेड के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आमंत्रित किया था, लेकिन यह निर्णय लिया गया कि रक्षा मंत्री राजनाथ इसमें शिरकत करेंगे।
सूत्रों ने बताया कि अब रक्षा राज्यमंत्री संजय सेठ परेड में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। रूस ने इस वर्ष विक्टरी डे परेड में भाग लेने के लिए कई मित्र देशों के नेताओं को आमंत्रित किया है।
प्रधानमंत्री मोदी पिछले वर्ष राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ वार्षिक शिखर सम्मेलन और कजान में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए दो बार रूस गए थे। इस वर्ष रूसी राष्ट्रपति के वार्षिक शिखर सम्मेलन में शिरकत के लिए भारत आने की उम्मीद है।
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'हां, आतंकवाद का होता है धर्म', VHP अध्यक्ष आलोक कुमार बोले- गुलाम कश्मीर को आजाद कराने का समय
अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। पहलगाम हमले में जिस तरह से धर्म पूछकर पर्यटकों को निशाना बनाया, उसने हिंदूवादी संगठनों के इस सोच पर एक तरह से मुहर लगा दी है कि आतंकवाद का धर्म होता है... विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार इसके पक्ष में दलील पेश करते हुए इसे वैचारिक चुनौती मानते हैं और एकजुट होने की सलाह देते हैं।
पहलगाम घटना से लेकर जातिवार गणना और काशी-मथुरा की लड़ाई के संदर्भों को हिंदूवादी संगठनों की सोच व तैयारियों पर दैनिक जागरण में उप मुख्य संवाददाता अनूप कुमार सिंह ने उनसे विस्तृत बातचीत की।
उप्र के बदायूं जिले के रहने वाले आलोक कुमार वर्ष 1973-74 में डीयू छात्र संघ के अध्यक्ष रहे। पेशे से वकील होने के नाते आक्रामक बयानबाजी के बजाय तथ्यात्मक तरीके से अपनी बात रखना व जमीनी पकड़ उनकी खूबी है। तभी तो एक ओर कहते हैं कि काशी-मथुरा का मामला जब तक न्यायालय में है, तब तक सड़क पर संघर्ष की आवश्यकता नहीं। वहीं, दावा करते हैं कि यह शताब्दी ‘हिंदुओं की शताब्दी कहलाएगी। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंशः
क्या आतंकवाद का धर्म होता है?
– हां, आतंकवाद का धर्म होता है, बिलकुल होता है। यह भ्रम है कि आतंकवाद का धर्म नहीं होता, इस भ्रम को फैलाया गया है और फैलाया जा रहा है। दुनिया की आधी से अधिक लड़ाइयां धर्म के नाम पर लड़ी गईं, लड़ी जा रही हैं। खुद इस्लाम में इतने अंतरविरोध हैं कि उनके आपसी संघर्षों ने दुनिया की शांति के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी कर रखी है। पहलगाम की घटना में भी आतंकियों ने धर्म पूछकर कत्लेआम किया। जब एक वर्ग यह विश्वास करे कि यह उनके लिए, उनके धर्म की आज्ञा है कि जो लोग उनका धर्म नहीं मानते, उन पर हमला करो, मारो, लूटो, अपहरण करो, दुष्कर्म करो और यह लूट और दुष्कर्म उनको ऊपर से मिली नियामत है। फिर तो यह नहीं कहा जा सका कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। यह एक विचारधारा है, उस पर उस धर्म के कुछ लोग विश्वास करते हैं। उस कारण दुनिया भर की शांति को, प्रेम को और व्यवस्था को चुनौती मिलती रहती है। यह केवल कानून और व्यवस्था की समस्या नहीं है। यह विकृत धार्मिक मान्यताओं की भी समस्या है, इसलिए इसे वैचारिक चुनौती मानकर भी लड़ना होगा।
आपके (विहिप) अनुसार कश्मीर मामले के हल का अब क्या तरीका है?– गुलाम कश्मीर की आजादी। गुलाम कश्मीर को भी अब आजाद करा दें।
क्या इस घटना के बाद ध्रुवीकरण और बढ़ेगा या बढ़ा है?– कश्मीर में ध्रुवीकरण बढ़ेगा या बढ़ा है, ऐसा मुझको अंदाजा अभी नहीं हो रहा है, क्योंकि अब तक पर्यटकों पर हमला नहीं होता था। कश्मीर पर्यटकों पर जीता है। आम कश्मीरी चार महीने की कमाई से साल भर खाना खाते हैं। इस बार पर्यटन उद्योग की भी कमर तोड़ने की कोशिश की गई है। यह हमला तो सब पर है। सबको मिलकर लड़ना पड़ेगा।
पहलगाम हमले के बाद कश्मीर में विरोध प्रदर्शन हुए, मस्जिदों से हमले के विरोध में घोषणाएं की गईं। पहली बार ऐसा देखने को मिला। आप क्या सोचते हैं?– मैं नहीं कह सकता, पर मुझे इतना तो संतोष है कि कह तो रहे हैं, कर तो रहे हैं। मैं नहीं जानता कि हृदय परिवर्तन हुआ है, एक घटना से होता भी नहीं है। संभवतः इस बात का डर होगा कि पर्यटक बंद हो गए तो हमारा क्या है। सरकार बाकी स्थिति तो संभाल लेगी, लेकिन पर्यटकों को कैसे लेकर आएगी, इस बारे में कह पाना थोड़ा मुश्किल है।
अमरनाथ यात्रा के आरंभ होने से ठीक पहले पहलगाम में आतंकी हमला कहीं श्रद्धालुओं को भयभीत करने का प्रयास तो नहीं...ताकि श्रद्धालु यात्रा पर न आएं?– हमले के कारण लोग अमरनाथ यात्रा पर न आएं, ऐसा मुझे नहीं लगता। प्रयागराज कुंभ में एक दुर्घटना हो जाने के बाद भीड़ कम हो जाएगी, ऐसा कहा गया था, पर हुआ क्या, पहले से अधिक श्रद्धालु आए। कुंभ के दौरान ही नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मचने से कुछ यात्री मर गए पर, इससे दिल्ली से कुंभ जाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में कहीं कोई कमी नहीं आई। जहां श्रद्धा से जाते हैं, सैर-सपाटे के लिए नहीं जाते हैं, उनकी सोच और विश्वास अलग होता है। उनका अलग माइंडसेट होता है। अमरनाथ यात्रा सैर-सपाटा नहीं है।
सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले का कुछ दिन पहले एक बयान आया कि यदि संघ के स्वयं सेवक काशी-मथुरा से संबंधित आंदोलनों में भाग लेना चाहते हैं, तो संगठन (संघ) को कोई आपत्ति नहीं होगी। इस बयान को विहिप कैसे देखता है?– काशी और मथुरा, यह दोनों मामले न्यायालयों में चल रहे हैं। एक वकील होने के नाते उसकी थोड़ी जानकारी-देखभाल मैं भी करता हूं। पूरी प्रमाणिकता के साथ तथ्यों और तर्कों को रखा जा रहा है। मामला न्यायालय में विचाराधीन है, प्रमाणिक तथ्यों को वहां रखा जा रहा है, इसलिए उनका यहां उल्लेख उचित नहीं। मेरी समझ यह है कि हमारे मुकदमे बहुत अच्छे हैं और मैं आशा करता हूं कि इन मुकदमों में हमें विजय मिलेगी। हिंदू समाज को काशी-मथुरा के मंदिर वापस प्राप्त होंगे। 1984 की धर्मसंसद में संतों ने निर्णय लिया था कि अयोध्या, काशी और मथुरा तीनों प्राप्त करेंगे।
क्या आप इसे अयोध्या आंदोलन की तरह देखते हैं?– मुकदमे ठीक से लड़े जाएं, इसके लिए जो कुछ भी करने की आवश्यकता है। अध्ययन की, रिसर्च की, उन सबमें हम ठीक से जुटेंगे, पर जब तक न्यायालय में विषय चल रहा है, तब तक सड़क पर संघर्ष करने की आवश्यकता नहीं है। उस समय का संघर्ष इसलिए हुआ था कि उस समय की सरकारों ने विरोध किया। अब ऐसी सरकारें हैं जो विरोध नहीं करेंगी, ऐसी हमको आशा है। उत्तर प्रदेश की भी नहीं करेगी, देश की भी नहीं करेगी। इसलिए इस संबंध में सड़क का आंदोलन इसकी अभी आवश्यकता हमें नहीं लगती। संघ सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले के कथन का समर्थन है। जिस दिन भी हमें उसकी (आंदोलन) आवश्यकता पड़ी तो संविधान के अंतर्गत रहते हुए हमारे सामने जो-जो भी मार्ग और विकल्प हैं, उन सबको अपना कर हम मंदिर को पुन: प्राप्त करेंगे। पर, अभी इसकी आवश्यकता नहीं लग रही। न्यायालय में हमारा पक्ष मजबूत है।
अयोध्या, काशी और मथुरा के बाद ऐसे कौन-कौन से हिंदू धर्मस्थल हैं, जिन पर हिंदू पक्ष अपना एकाधिकार चाहता है?– अभी हमारा सारा ध्यान काशी और मथुरा पर है और यह होने तक रहेगा। जब तक काशी-मथुरा के मंदिर हमको प्राप्त नहीं होते, उससे आगे का हम विचार नहीं करेंगे। ये होने के बाद संतों का क्या आदेश है, ये प्राप्त करेंगे, देखेंगे, अभी नहीं करेंगे। उनके दिशा-निर्देश के आधार पर ही आगे की नीति-कार्य योजना तय होगी।
आपने कहीं कहा है कि काशी-मथुरा के बाद विराम, इसका क्या आशय है?– मैंने कभी, कहीं ऐसा नहीं कहा। मेरा यह कहना है कि हमारा ध्यान अन्य किसी ओर, अन्य किसी विषय पर नहीं है, पर काशी-मथुरा के मंदिर प्राप्त करने के बाद विराम नहीं लेंगे, हम और हमारे लोग इस दिशा में काम करते रहेंगे।
आरोप लगते रहे हैं कि हेट स्पीच का मामला हिंदू पक्ष की ओर से अधिक है। कोर्ट ने भी इसमें दखल दिया था और उस पर कार्रवाई भी हुई थी। क्या कहना है?– हिंदू पक्ष की ओर से उतना नहीं है, जितना आरोप लगाया जा रहा है। हो सकता है कि कोई-कोई गैर जिम्मेदारी से बयानबाजी करता होगा। सुप्रीम कोर्ट के एक सीटिंग जज को अमेरिका के ला कालेज ने इन विषयों पर बोलने के बुलाया गया था। वह विदेश में लोगों को बोल रहे थे कि हेट स्पीच के मामले हिंदू समाज ही ज्यादा करता हैं। उसके अगले हिस्से में उन्होंने माना कि उनके पास जो मुकदमे आते हैं, उसके हिसाब से उनको लगा है, इसकी कोई ठोस जानकारी उनके पास नहीं है। बिना किसी ठोस जानकारी के सुप्रीम कोर्ट के सीटिंग जज विदेश के लोगों से बात करते हुए भारत की मेजोरिटी को अपमानित करे, आरोपित करे, मैं समझता हूं कि यह गैर जिम्मेदाराना है। मैं कानून का विद्यार्थी होने के कारण आश्वस्त हूं कि मेरी यह टिप्पणी मर्यादा के अनुकूल है। सब लोगों को इससे बचना चाहिए। और हेट स्पीच जो भी करता है, उसका निर्णय धर्म के आधार पर नहीं होना चाहिए। वह कोई भी, किसी भी धर्म का हो, अगर वह घृणा और नफरत फैलाता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
देश के विभिन्न राज्यों विशेषकर देवभूमि उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश आदि स्थानों पर जनसंख्या असंतुलन बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। इसे लेकर विहिप की क्या रणनीति है?– विहिप के लिए भी यह चिंता का विषय है। हम इस पर काम कर रहे हैं। ये जो आबादी का असंतुलन है, इसके तीन कारण हैं। पहला घुसपैठ, दूसरा धर्मांतरण और तीसरा ज्यादा बच्चे पैदा करना। ये ज्यादा बच्चे पैदा करना मुसलमानों की बात है, यह ईसाइयों के यहां नहीं होता। सरकार ने बहुत अच्छी व्यवस्था बैठाकर घुसपैठ रोक दी है। सीमाएं सुरक्षित कर दी हैं, पर बंगाल में ऐसा नहीं हो पा रहा है, क्योंकि बंगाल की सरकार तो चाहती है कि वह आएं और बसें, बार-बार आएं और बार-बार बसें। बाकी जगह से अब इस तरह की खबरें नहीं हैं। और भी कई उपाए किए जा रहे हैं, सरकारें भी कदम उठा रही हैं। इसका प्रभाव नजर आ रहा है, आगे और दिखेगा। विहिप इसे लेकर लगातार सक्रिय है।
अवैध धर्मांतरण और घर वापसी बड़ा मुद्दा है। विहिप अवैध धर्मांतरण को राष्ट्रीय अभिशाप मानता है। क्या इसे रोकने के लिए कड़े केंद्रीय कानून की आवश्यकता है?– अच्छा रहेगा अगर केंद्रीय कानून बने, पर यह कहना ठीक नहीं है कि इस पर कोई रोक नहीं लग रही है। मुझे संतोष है कि मध्य प्रदेश में और दूसरे राज्यों में अवैध धर्मांतरण कराने के आरोप में पादरियों को भी कोर्ट ने मुकदमा चलाने के बाद दंडित किया। बजरंग दल और दुर्गावाहिनी को भी इस बारे में सतर्क करेंगे। यह दूसरे की गलती है, हिंदू समाज इसका सामना करेगा। एक चुनावी ताकत थी मुसलमानों के पास सामूहिक वोट बैंक बनाकर प्रभावित करना। मैंने अपने सेकुलर मित्रों को कहा कि इसे बंद करो। पहले हिंदू जातियों में बंट कर वोट करता था, अब भी करता है, पर अगर तुम मुस्लिम वोट बैंक बनाओगे, उसका शोर करके बनाओगे, मस्जिद के लाउडस्पीकर से बनाओगे तो उसकी बहुत बड़ी प्रतिक्रिया में बहुत बड़ा हिंदू वोट बैंक बनेगा। महाराष्ट्र में बना, लोकसभा में बना, मध्य प्रदेश और हरियाणा में बना। इसी के साथ यह भी हुआ कि अब चुनाव में मुस्लिम ‘वीटो’ नहीं चलता। राष्ट्र धारा के अंदर शामिल होकर साथ चलेंगे तो साथ लेकर चलेंगे और अगर गुट बनाकर पराजित करने के इरादे से चलेंगे तो संख्याबल में हिंदू बहुत बड़ा है।
फिर यह बात क्यों कि हिंदू खतरे में है?– मैं नहीं जानता और मैं मानता भी नहीं हूं। हिंदू किसी खतरे में नहीं है। अगर हम सनातन हैं तो शाश्व भी हैं। हम थे, हम हैं और हम रहेंगे भी। और हम विश्व में इस शताब्दी को ‘हिंदुओं की शताब्दी हैं,’ कहलवा कर रहेंगे।
अवैध धर्मांतरण रोकने के लिए उपाय?– धर्मांतरण रोकने के लिए हमने लगभग 850 ब्लाक चिह्नित किए हैं, जो बेहद संवेदनशील हैं। हम प्रयत्न कर रहे हैं कि इन सबमें एक-एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता रखें। उनसे कहेंगे कि परिषद का काम बाकी लोग करेंगे, धर्मांतरण रोकने का काम तुम करो, घर वापसी का काम तुम करो। मुझे विश्वास है कि हम धारा को पलटेंगे। अगले पांच वर्षों में गांव के गांव, घर के घर सभी धर्म में लौट कर आएंगे।
कहा जा रहा है कि कुंभ मेले का उपयोग हिंदू एकता और सांस्कृतिक जागरण के लिए हो रहा है? आगे की रणनीति क्या है?– कुंभ-महाकुंभ, हिंदू समाज की एकाग्रता निर्माण के लिए शुद्ध हृदय से किया जाने वाला उत्सव आयोजन है। हम लोगों ने इस अवसर पर संत सम्मेलन किए, मार्गदर्शक मंडल की बैठक की, देश की परिस्थिति का विचार किया था, संतों से आदेश लेकर ठोस अभियान की नीति बनाई। आगे भी ऐसा ही कुछ करते रहेंगे। मैं हर चीज को रणनीति नहीं कहना चाह रहा, हर चीज मेरे लिए रण है भी नहीं। हम राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक जागरण को इस तरह के आयोजन करते रहेंगे।
जातिगत जनगणना से क्या हिंदू समाज और ज्यादा नहीं बंटेगा?– ऐसा कैसे होगा, घोषणा तो उस बात की हुई, जिसे सारा विपक्ष मांग रहा था। इसके पीछे कोई विवाद करने वाला खड़ा नहीं है। विपक्ष को भी लगा, सरकार को भी लगा, सारे देश को लगा कि 1931 के बाद जातिवार गणना नहीं हुई है। जब आरक्षण देना होता है किसी को तो 1931 के आंकड़ों के प्रोजेक्शन से काम चलाना होता है। यह गलत है, तो कितना आरक्षण होगा, इसका सही आंकड़ा बाद में आएगा, फिर आगे देखेंगे। मैं समझता हूं कि जब कोई बहुत कंट्रोवर्सियल बयान आता है तो वह ध्यान भटकाता ही है और जो सब लोग मांग रहे हैं, वो मिल जाता है तो बस ठीक है, धन्यवाद दो और आगे चलो।
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गोली-बम के बिना ही दुश्मन की कमर तोड़ रहा भारत, अब पाकिस्तानी शिप की एंट्री पर बैन; इंपोर्ट और डाक सेवाओं पर भी रोक
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखाने की ठान ली है। पहले भारत की तरफ से सिंधु जल समझौते को निलंबित किया गया और इसके बाद अटारी चेकपोस्ट बंद कर सभी पाकिस्तानियों को देश छोड़ने के लिए कह दिया गया।
अब भारत ने पाकिस्तानी झंडे वाले शिप की देश में एंट्री पर भी बैन लगा दिया है। पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी एक नोटिफिकेशन में कहा गया है कि पाकिस्तानी झंडे वाले किसी भी शिप को भारतीय पोर्ट पर आने की अनुमति नहीं दी जाएगी। साथ ही भारतीय शिप पाकिस्तान के पोर्ट पर डॉक नहीं करेंगे।
इंपोर्ट पर भी लगा था बैनमंत्रालय के अनुसार, यह कदम भारतीय संपत्तियों, कार्गो और जुड़े बुनियादी ढांचे की सुरक्षा के हित में और भारतीय शिपिंग के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए भी किया गया है। नौटिफिकेशन के मुताबिक, यह आदेस तत्काल प्रभाव से लागू होगा और अगली सूचना तक जारी रहेगा।
इसके पहले भारत ने पाकिस्तान के साथ होने वाले किसी भी इंपोर्ट पर रोक लगा दी थी। वाणिज्य मंत्रालय की एक अधिसूचना के अनुसार, 'पाकिस्तान से आने वाले या निर्यात किए जाने वाले सभी सामानों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष आयात या पारगमन, चाहे स्वतंत्र रूप से आयात योग्य हो या अन्यथा अनुमति प्राप्त हो, अगले आदेश तक तत्काल प्रभाव से प्रतिबंधित रहेगा।'
डाक सेवाएं भी निलंबित- भारत सरकार ने एक और बड़ा फैसला लेते हुए पाकिस्तान से आने वाले किसी भी प्रकार के डाक और पार्सल सेवाओं पर भी रोक लगा दी है। डाक विभाग के अनुसार, हवाई या जमीनी दोनों मार्गों से आने वाले किस भी श्रेणी के मेल और पार्सल के आदान-प्रदान को निलंबित कर दिया गया है।
- पहलगाम हमले के बाद भारत के कड़े रुख से पाकिस्तान में काफी खौफ है। पाकिस्तान को डर सता रहा है कि भारत कभी भी सैन्य कार्रवाई कर सकता है। भारत सरकार ने इन फैसलों से पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था की कमर टूट जाएगी।
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