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सामाजिक सुरक्षा कवच कमजोर होने के विकसित देशों की धौंस को जल्द बंद करेगा भारत, मोदी सरकार ने बनाया मास्टर प्लान
संजय मिश्र, नई दिल्ली। सामाजिक सुरक्षा के वैश्विक मानकों पर भारत के खरा न उतरने की दलील देकर विदेश में नौकरी करने वाले भारतीयों के भविष्य निधि फंड न देने से लेकर मुक्त व्यापार समझौते में सामाजिक सुरक्षा का प्रविधान हटा देने की विकसित देशों की धौंसगिरी अब ज्यादा लंबी नहीं चल पाएगी। भारत का सामाजिक सुरक्षा कवरेज बीते कुछ वर्षों में दोगुनी बढ़त के साथ 48.8 प्रतिशत हो गया है।
इसके बाद केंद्र सरकार ने देशभर में जारी सामाजिक सुरक्षा की तमाम योजनाओं का डाटा अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) के मानकों के अनुरूप एकत्र करने का अभियान शुरू किया है।
केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने आइएलओ के साथ मिलकर सामाजिक सुरक्षा के आंकड़े जुटाने के इस अभियान में अब तमाम राज्यों में लागू सामाजिक सुरक्षा तथा कल्याण योजनाओं के डाटा को भी इसमें शामिल करने की पहल शुरू करने का फैसला किया है।
संगठित आंकड़ों के अभाव का फायदा उठे रहे अमेरिका जैसे देशसरकार का मानना है कि भारत की सामाजिक सुरक्षा का कवरेज वर्तमान में 65 प्रतिशत है लेकिन संगठित आंकड़ों के अभाव में अमेरिका तथा अन्य विकसित देश इसका फायदा उठाने का प्रयास करते हैं। केंद्र सरकार की स्कीमों के अलावा राज्यों में महिलाओं, वृद्धों, विधवाओं को पेंशन जैसी सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं का लाभ मिल रहा है। लेकिन राज्यों की ऐसी पहल देश के सामाजिक सुरक्षा कवरेज के आंकड़ों का हिस्सा नहीं है।
इसके मद्देनजर ही श्रम मंत्राल ने आइएलओ के साथ मिलकर एक व्यापक डाटा-पुलिंग-एक्सरसाइज शुरू किया है। इसमें आधार को 34 प्रमुख केंद्रीय योजनाओं जैसे मनरेगा, ईपीएफओ, ईएसआइसी, अटल पेंशन योजना और पीएम-पोषण आदि में लाभार्थियों की पहचान के लिए इस्तेमाल किया गया। कुल 200 करोड़ रिकार्ड का विश्लेषण कर इसके विशिष्ट लाभार्थियों की पहचान की गई। श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि इस अध्ययन के अनुसार भारत की 65 प्रतिशत जनसंख्या कम से कम एक सामाजिक सुरक्षा योजना के दायरे में है। इनमें से 48.8 प्रतिशत लोगों को नकद लाभ मिल रहे हैं।
आइएलओ के मानक आंकड़ों के हिसाब से 2021 के 24.4 प्रतिशत के मुकाबले भारत का सामाजिक सुरक्षा कवच 2024 में 48.8 प्रतिशत हो गया। यह वृद्धि इसलिए हुई क्योंकि अब उन सभी केंद्रीय योजनाओं को भी शामिल किया गया है, जिन्हें पहले नहीं गिना गया था। सुरक्षा मानकों की कसौटी पर खरा न उतरने को आधार बनाकर मुक्त व्यापार समझौते से सामाजिक सुरक्षा कवच के प्रविधान हटाए जाने के संबंध में पूछे जाने पर मंडाविया ने कहा कि अमेरिका जैसे देशों में भी वहां नौकरी करने वाले भारतीयों के भविष्य निधि के फंड यहां आने के बाद नहीं दिए जाते।
इसलिए मंत्रालय ने राज्यों में चलाई जा रही सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं का आंकड़ा आइएलओ के मानकों के अनुरूप जुटाने को लेकर चर्चा शुरू कर दी है।
उन्होंने कहा कि कई राज्यों में महिलाओं, विधवाओं, वृद्धों को नकद राशि हर महीने देने की योजनाएं चल रही हैं। केंद्र सरकार की आयुष्मान योजना से इतर 16 राज्यों में संपूर्ण स्वास्थ्य सुरक्षा योजना लागू है। 12 करोड़ लोगों को आवास दिया जा चुका है और 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन मिल रहा है। खाद्य सुरक्षा जैसी योजनाओं के लाभ भी इसमें शामिल नहीं किए गए हैं।
राज्यों के साथ आंकड़े जुटाने को लेकर हुई बैठकमंडाविया ने कहा कि यदि इन पहलुओं को जोड़ा जाए तो भारत की वास्तविक सामाजिक सुरक्षा कवरेज 65 प्रतिशत से अधिक होगी। जबकि, विकसित देशों में सामाजिक सुरक्षा 60 से लेकर 90 प्रतिशत तक है।
राज्यों के साथ आंकड़े जुटाने की इस पहल के तहत पहले चरण में 19 मार्च को एक हाइब्रिड बैठक हुई, जिसमें उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और गुजरात जैसे राज्यों का चयन किया गया है।
इन राज्यों से केंद्र स्तर पर डाटा एकत्र कर सत्यापन और मिलान किया जाएगा। श्रम मंत्री ने कहा कि जेनेवा में आइएलओ की अगली बैठक में सामाजिक सुरक्षा के भारत के आंकड़ों को शामिल करने का मुद्दा वे स्वयं उठाएंगे।
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Bihar Politics: बिहार चुनाव को लेकर दिल्ली में हुई कांग्रेस की बैठक, RJD के साथ गठबंधन पर हो गया फाइनल फैसला
राज्य ब्यूरो, पटना। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंगलवार को दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय इंदिरा भवन में बिहार कांग्रेस के नेताओं के साथ उच्च स्तरीय बैठक की।
बैठक में केसी वेणुगोपाल, मीरा कुमार, तारिक अनवर, रंजीत रंजन, कृष्णा अल्लावारू, राजेश कुमार के साथ डा. अखिलेश प्रसाद सिंह, डॉ. शकील अहमद, मदन मोहन झा समेत दूसरे नेता शामिल रहे।
बैठक में सहमति बनी है कि पार्टी बिहार में राजद व महागठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी और भाजपा-जदयू को पराजित करेगी।
बैठक में खरगे ने बिहार के नेताओं को टास्क सौंपा कि चुनावी वर्ष में पार्टी के नेता मुख्यालय से बाहर निकलें और जिले और विधानसभा क्षेत्र में समय बिताएं। जनता से संवाद करें। उन्होंने जोर दिया कि जनता के बीच जाए बगैर और उनकी समस्याओं को समझे बिना चुनाव में जीत संभव नहीं।
क्या बोले राहुल गांधी?राहुल गांधी ने कहा कि युवाओं के पलायन, रोजगार, नौकरी, अपराध, भ्रष्टाचार को लेकर पार्टी नेता मुखर हो और प्रत्येक प्लेटफार्म पर इन मुद्दों को उठाएं। बैठक के दौरान उन्होंने बिहार के राजनीतिक हालातों पर भी पार्टी नेताओं से बात की।
राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे ने नेताओं से कहा कि लोग आपसी बैर भूलकर संगठन की मजबूती के लिए कार्य करें और चुनाव जीतने के लक्ष्य के साथ अपनी तैयारियों में जुट जाएं।
बैठक में प्रो रामजतन सिन्हा, सुशील पासी, शाहनवाज आलम, देवेंद्र यादव, डॉ जावेद, मनोज कुमार, चंदन यादव, पूनम पासवान, तौकीर आलम सहित सभी विधायक और बिहार के वरिष्ठ नेतागण मौजूद रहें।
कांग्रेस बिहार में एकला चलो की राह पर है : राजेश लिलौटिया- अखिल भारतीय कांग्रेस अनुसूचित जाति (एससी) विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेश लिलौटिया पटना में आयोजित दलित युवा संवाद कार्यक्रम में शामिल होने के लिए पटना पहुंचे गए हैं।
- कार्यक्रम का आयोजन कांग्रेस के एससी विभाग ने किया है। पटना में मीडिया से बातचीत के दौरान राजेश लिलौठिया ने कहा कि कांग्रेस बिहार में एकला चलो की राह पर है।
- कांग्रेस ने बिहार में बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी में पूरे अपने कार्यकर्ताओं और पूरे विंग को लगा दिया है। एक तरफ दिल्ली में राहुल गांधी बड़े नेताओं के साथ बैठक कर रहे हैं।
- वहीं कल, कांग्रेस पटना में दलित सम्मेलन करने जा रही है। उन्होंने चिराग पासवान पर निशाना साधते हुए कहा कि ये लोग दलित की राजनीति करते हैं, लेकिन भाजपा की गोद में जाकर बैठ गए हैं।
- फिर ये दलित की राजनीति कैसे कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी हमेशा चुनाव हो या चुनाव नहीं हो दलितों के लिए खड़ी रहती है और आगे भी खड़ी रहेगी।
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ESIC कर्मचारियों को मिली बड़ी सौगात, अब आयुष्मान भारत पैनल अस्पतालों में भी होगा इलाज
संजय मिश्र, जागरण, नई दिल्ली। आयुष्मान भारत पैनल में शामिल देश भर के 24000 से अधिक अस्पतालों में कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) के लाभार्थी संगठित क्षेत्र के कामगारों तथा उनके आश्रितों को इलाज की सुविधा जल्द मिलेगी।
श्रम मंत्रालय ने ईएसआईसी के तहत स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर तथा सुलभ बनाने के लिए आयुष्मान भारत पैनल के अस्पतालों में ईएसआईसी योजना के लाभार्थियों को कैशलेस इलाज की सुविधा का रास्ता खोलने के प्रस्ताव को अंतिम रूप दे दिया है। सामाजिक सुरक्षा के साथ संगठित क्षेत्र के कामगारों तथा उनके आश्रितों के स्वास्थ्य चुनौतियों का बेहतर समाधान निकालने के लिए आयुष्मान भारत के अस्पतालों को ईएसआईसी से जोड़ने का यह निर्णय लिया जा रहा है।
अब कामगारों को मिलेगी बेहतर स्वास्थ्य सुविधाआयुष्मान भारत पैनल में शामिल अस्पतालों को ईएसआईसी से जोड़े जाने के प्रस्ताव की पुष्टि करते हुए केंद्रीय श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि दूर-दराज तथा छोटे शहरी इलाकों में संगठित क्षेत्र के कामगारों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने के लिए यह कदम उठाया जा रहा है। इस प्रस्ताव को अमलीजामा पहनाने के लिए श्रम मंत्रालय की ओर से वे जल्द ही इस पर अंतिम निर्णय करेंगे। ईएसआईसी के तहत मार्च 2024 तक 3.72 करोड़ संगठित क्षेत्र के कामगार हैं और उनके आश्रितों को मिलाकर कुल 14.44 करोड़ लाभार्थी कवर किए गए हैं।
क्या बोले केंद्रीय मंत्री?मंडाविया ने कहा कि वर्तमान आंकड़ों के अनुसार एक कामगार के परिवार की औसत संख्या 3.88 है। इस हिसाब से लाभार्थियों की संख्या 14 करोड़ से ज्यादा है। चूंकि आयुष्मान भारत पैनल में शामिल अस्पतालों को स्वास्थ्य मंत्रालय ने केंद्र सरकार के मानकों के हिसाब से पैनल में सूचीबद्ध किया है, इसलिए ईएसआईसी से इन्हें जोड़ने में कोई दिक्कत नहीं है।
श्रम मंत्रालय के इस फैसले के बाद संगठित क्षेत्र के कामगारों-लाभार्थियों के लिए देश के करीब 31000 सरकारी और निजी अस्पतालों में इलाज का रास्ता खुल जाएगा जिसमें 150 से अधिक ईएसआईसी के अस्पताल तथा 1600 डिस्पेंसरी भी शामिल हैं।
लाभार्थियों के चिकित्सा खर्च की सीमा नहीं होगीश्रम मंत्री ने साफ किया कि ईएसआईसी के तहत आयुष्मान भारत पैनल में शामिल अस्पतालों में इलाज के लिए किसी तरह की कैपिंग नहीं होगी। यानि लाभार्थियों के लिए चिकित्सा खर्च पर कोई सीमा नहीं होगी और सारा खर्च ईएसआइसी वहन करेगा। आयुष्मान भारत के तहत पांच लाख रुपए तक के मुफ्त इलाज की सुविधा है और वर्तमान में करीब 60 करोड़ लोगों को केंद्र सरकार की इस योजना का लाभ मिल रहा है।
UP के इन 15 जिलों के कामगारों को भी मिलेगी सुविधा- ईएसआईसी के तहत स्वास्थ्य सुविधाओं के लाभ से वंचित उत्तरप्रदेश के 15 जिलों के संगठित क्षेत्र के कामगारों को इस दायरे में लाने की श्रम मंत्रालय ने मंगलवार को अधिसूचना जारी कर दी।
- केंद्र सरकार के इस फैसले के साथ ही अब उत्तरप्रदेश के 75 में से 74 जिले ईएसआईसी की स्वासथ्य सुविधाओं के दायरे में आ गए हैं। सूबे का अब केवल एक जिला बांदा अब ईएसआईसी सुविधा के दायरे से बाहर है।
- केंद्रीय श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया ने ईएसआईसी के तहत स्वास्थ्य सुविधाओं का कवरेज बढ़ाने की दिशा में उत्तरप्रदेश के 15 जिलों को दायरे में लाए जाने को अहम करार दिया। उनके अनुसार देश के 689 जिलों में ईएसआइसी योजना पूरी या आंशिक तौर पर अधिसूचित है। जबकि 104 जिलों में अब तक यह योजना लागू नहीं थी।
- उत्तरप्रदेश के 15 जिलों को शामिल किए जाने के बाद अब देश में 89 जिले ईएसआईसी सुविधा के लिए अधिसूचित नहीं हैं और श्रम मंत्रालय अगले दो साल में बाकी बचे इन जिलों में ईएसआईसी कवरेज में लाया जाएगा। उत्तरप्रदेश में अब कुल 74 जिलों में पूर्ण रूप क्रियान्वयन के बाद इसका सूबे में संगठित क्षेत्र के कामागारों तथा उनके परिवारों को स्वास्थ्य सुविधा का फायदा मिलेगा। लाभार्थियों की यह संख्या करीब 1.16 करोड़ है।
- ईएसआईसी कवरेज के लिए अधिसूचित उत्तरप्रदेश के 15 जिलों के नाम: अंबेडकर नगर, औरैया, बहराईच, गोंडा, हमीरपुर, जालौन, कन्नौज, महाराजगंज, महोबा, पीलीभीत, सिद्धार्थनगर, शामली, प्रतापगढ़, कासगंज और श्रावस्ती
ईएसआइसी एक बहुआयामी सामाजिक सुरक्षा योजना है। यह योजना संगठित क्षेत्र में कर्मचारियों को सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा प्रदान करती है। योजना के तहत बीमारी, मातृत्व और विकलांगता की स्थिति में बीमित कर्मचारियों और उनके परिवारों को स्वास्थ्य देखभाल की सुविधा मिलती है। देश भर में ईएसआईसी के 150 से ज्यादा अस्पताल हैं। यहां सामान्य से लेकर गंभीर बीमारियों तक का इलाज होता है।
ईएसआई के लिए कौन पात्र है?ईएसआई के तहत उन कर्मचारियों को कवरेज मिलता है, जिनका मासिक वेतन 21,000 रुपये प्रति माह या इससे कम है। दिव्यांग कर्मचारियों के लिए यह सीमा 25,000 रुपये है। पात्र कर्मचारियों को ईएसआईसी योजना में नामांकित करना नियोक्ता की जिम्मेदारी होती है।
कर्मचारी और नियोक्ता करते हैं योगदान ईएसआई योजना एक स्व वित्त पोषित कार्यक्रम है। इसके लिए नियोक्ता और कर्मचारी दोनों योगदान करते हैं। इसमें कर्मचारी अपने वेतन का 1.75 प्रतिशत और नियोक्ता कर्मचारी के वेतन का 4.75 प्रतिशत के बराबर योगदान करता है।
नौकरी बदलने पर नहीं बदलता बीमा नंबरइस योजना की एक विशेषता यह है कि जब तक कर्मचारी ईएसआई वेतन सीमा के अंदर रहता है, तब तक उसका बीमा नंबर वही रहता है। नौकरी बदलने से कर्मचारी की बीमा स्थिति प्रभावित नहीं होगी और उसका बीमा नंबर वही रहता है।
ईएसआइ के फायदे?बीमित कर्मचारी और उसके परिवार को पूरी चिकित्सा देखभाल की सुविधा मिलती है-बीमित कर्मचारी या उसके परिवार के इलाज पर खर्च की कोई सीमा नहीं है।
- 120 रुपये मासिक प्रीमियम पर रिटायर कर्मचारी और जीवनसाथी को भी मिलती है इलाज की सुविधा।
- हर वर्ष अधिकतम 90 दिनों की बीमारी की अवधि के दौरान वेतन का 70 प्रतिशत नकद मुआवजा मिलता है।
- महिलाओं को प्रसव/ गर्भावस्था के दौरान 26 सप्ताह के लिए मातृत्व अवकाश मिलता है।
- वेतन के 90 प्रतिशत की दर से अस्थाई विकलांगता का लाभ मिलता है।
- कर्मचारी की काम के दौरान मौत होने पर आश्रितों को वेतन के 90 प्रतिशत की दर से मिलता है मासिक भुगतान।
- 4.81 करोड़ है ईएसआइ लाभों के लिए बीमित कर्मचारियों की संख्या।
- 22.93 लाख संस्थान पंजीकृत हैं ईएसआईसी के तहत 165 है ईएसआई अस्पतालों की संख्या।
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कैसी है Sonu Sood की पत्नी की हालत? अस्पताल ने दिया बड़ा अपडेट; कार एक्सीडेंट में घायल हुई थीं एक्टर की पत्नी
एएनआई, मुंबई। सोनू सूद की पत्नी, सोनाली सूद मुंबई-नागपुर हाईवे पर एक सड़क हादसे में गंभीर रूप से घायल हो गईं। 24 मार्च को सानाली का एक्सीडेंट हुआ था। कार में सोनाली सूद, उनकी बहन का बेटा और एक महिला थी। सेनाली की कार एक ट्रक से टकरा गई। इसके बाद सोनाली सूद को नागपुर अस्पताल में भर्ती कराया गया।
#UPDATE | Sonu Sood's wife, Sonali Sood, her sister and nephew were brought to the Emergency Department of Max Hospital, Nagpur at approximately 10:30 PM last night. All three patients were conscious upon arrival and had stable vital signs. They had sustained multiple abrasions… https://t.co/Fv7zZdBJUs
— ANI (@ANI) March 25, 2025 खतरे से बाहर हैं सोनाली सूदमंगलवार रात को अस्पताल की ओर से जानकारी दी गई कि सोनाली सूद को इमरजेंसी डिपार्टमेंट से बाहर निकाला गया। वहीं, उनके भतीजे को प्राथमिक उपचार के बाद छुट्टी दे दी गई। सोनू सूद की पत्नी सोनाली सूद और उनकी बहन निगरानी में हैं और उनकी हालत में सुधार हो रहा है। उनकी हालत स्थिर है। दोनों की हालत स्थिर है। सोनू सूद और सोनाली ने 25 सितंबर 1996 में शादी की थी।
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US says it brokered safe shipping in Black Sea
CNG को लेकर मोदी सरकार का मास्टर प्लान तैयार, PNG के लिए बनाई ये रणनीति; जानिए किसे मिलेगा फायदा
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। पूरे देश खास तौर पर दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले लोगों को साफ-स्वच्छ ईंधन देने की सरकार की मुहिम आने वाले दिनों में और तेज होने वाली है। यह मुहिम है देश के ज्यादातर रसोई को पाइपलाइन वाली नेचुरल गैस (पीएनजी) से जोड़ने की और देश के अधिकांश इलाके में सीएनजी चालित वाहनों के लिए उपयुक्त ईंधन उपलब्ध कराने की। अभी देश के सिर्फ 1.4 करोड़ घरों को ही पीएनजी से जोड़ा गया है।
पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने वर्ष 2030 तक 12 करोड़ घरों को पीएनजी से जोड़ने की रणनीति बनाई है। कोशिश यह होगी कि वर्ष 2035 तक कम से कम 15 करोड़ घरों में एलपीजी सिलेंडर लाने या उन्हें रिफिल करने की झंझट खत्म हो जाए। इसका एक बड़ा हिस्सा दूसरी व तीसरी श्रेणी के शहरों या इन शहरों के आस-पास स्थित ग्रामीण इलाके भी लाभान्वित होंगे।
कब तक शहर के बाहर तक मिल सकेगा पीएनजी कनेक्शनपेट्रोलियम मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि वर्ष 2027-28 से महानगरों व बड़े शहरों से बाहर पीएनजी कनेक्शन देने का काम बहुत ही तेजी से विस्तार होगा। दूसरी तरफ, सीएनजी को लेकर सरकार की यह योजना है कि वर्ष 2034 तक सीएनजी स्टेशनों की संख्या मौजूदा 7,525 से बढ़ा कर 18,336 की जाए। उक्त जानकारी पिछले हफ्ते पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने लोकसभा में दी है।
साथ ही पेट्रोलियम व नेचुरल गैस विनियामक बोर्ड (पीएनजीआरबी) की तरफ से गठित उच्चस्तरीय समिति की 21 फरवरी, 2025 को जारी एक रिपोर्ट में भी दी गई है। उक्त समिति ने देश के प्राकृतिक गैस सेक्टर में ढांचागत सुविधाओं का विस्तार करने, देश में प्राकृतिक गैस के उपभोग को बढ़ाने और इस क्षेत्र में देशी-निवेश बढ़ाने के लिए पीएनजीआरबी नियम, 2008 में कई तरह से संशोधन के भी सुझाव दिए हैं।
समिति की रिपोर्ट में मिले कई संकेत- सरकार के जवाब और उक्त समिति की रिपोर्ट से यह भी संकेत मिलता है कि देश में सीएनजी व पीएनजी के विस्तार की अभी तक की जो रफ्तार है उसमें काफी तेजी लानी होगी। अगर पीएनजी की बात करें तो एक दशक से भी ज्यादा समय में अभी डेढ़ करोड़ घरों में भी इसकी पहुंच नहीं हो पाई है। पीएनजीआरबी ने देश को 307 भौगोलिक हिस्सों में बांटा है जहां प्राकृतिक गैस नेटवर्क का विस्तार किया जाना है।
- पेट्रोलियम मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश की 70 फीसदी आबादी को प्राकृतिक गैस की सुविधा देने के लिए 407 जिलों में गैस नेटवर्क लगाना होगा। इसके लिए कुल 1.20 लाख करोड़ रुपये निवेश करने की जरूरत होगी।
- पीएम नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2030 तक देश की इकोनमी में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी मौजूदा 6-7 फीसद से बढ़ा कर वर्ष 2030 तक 15 फीसद करने का लक्ष्य रखा है। इसे तभी हासिल किया जा सकेगा कि जब देश के दूर-दराज के इलाकों में तेजी से सीएनजी व पीएनजी पाइपलाइन का नेटवर्क पहुंऐ।
- सरकारी डाटा के मुताबिक पीएनजीआरबी ने उक्त लक्ष्य के लिए देश में 33,475 किलोमीटर लंबे नेटवर्क लगाने का ठेका दिया है। इसमें से 24,945 किलोमीटर का काम पूरा हो चुका है और शेष हिस्से पर काम जारी है। एक बार काम पूरा हो जाने के बाद तेजी से कनेक्शन दिए जा सकेंगे।
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One Nation One Election पर बनी समिति का कार्यकाल बढ़ा, 2029 तक एक साथ चुनाव कराने पर सरकार का जोर
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के चुनावों को साथ-साथ कराने पर विचार करने के लिए बनाई गई संयुक्त संसदीय समिति के कार्यकाल को विस्तार दे दिया गया है। अब संबंधित विधेयक पर समिति अपना प्रतिवेदन मानसून सत्र के अंतिम सप्ताह तक सौंप सकती है।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भाजपा सांसद एवं पूर्व विधि राज्यमंत्री पीपी चौधरी के नेतृत्व में 39 सदस्यीय समिति का गठन किया है। इसके तहत देशभर में वर्ष 2029 तक एक साथ चुनाव कराने का रास्ता तैयार करने का सरकार का लक्ष्य है। सरकार का मानना है कि एक साथ चुनाव कराने से समय और संसाधन दोनों की बचत होगी।
लोकसभा में मंगलवार को प्रश्नकाल के बाद संबंधित प्रस्ताव को पीपी चौधरी ने रखा, जिसे ध्वनिमत से पास कर दिया गया।
समिति को एक देश-एक चुनाव से जुड़े दो विधेयकों 'संविधान (129वां संशोधन)' एवं 'संघ-राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन)' पर विचार करना है। इनमें पहला संविधान संशोधन विधेयक है तथा दूसरा संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक है।
रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी समिति ने तैयार किया है रिपोर्टइनका मकसद चुनावी प्रक्रिया में समय और संसाधनों की बर्बादी से बचाव करना है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित उच्चस्तरीय समिति की रिपोर्ट के आधार पर समिति ने इन दोनों प्रस्तावों को तैयार किया है। को¨वद समिति ने भी अपने प्रतिविदेन में एक राष्ट्र-एक चुनाव के सिद्धांत का समर्थन किया है।
विधेयक के पारित होने पर चुनावी प्रक्रिया में बड़े बदलाव हो सकते हैं। आजादी के बाद 1951 से 1967 तक लोकसभा एवं विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ ही कराए जाते थे, लेकिन उसके बाद इसमें विचलन हो गया, जो अभी तक चला आ रहा है।
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