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जब 120 जवानों ने 4000 पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ा, छोड़ने पड़े थे टैंक-तोप और वाहन ; क्या है लोंगेवाला युद्ध की कहानी?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पाकिस्तान की फितरत हमेशा से ही पीठ पीछे बार करने की रही है। 7 मई को भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान में आतंकवादियों के नौ ठिकाने तबाह किए तो इसके जवाब में पाकिस्तानी सेना ने भारत के सीमावर्ती शहरों में सैन्य ठिकानों और आबादी पर ड्रोन और मिसाइल से हमले किए।
जब भारत ने जवाबी कार्रवाई तो पाकिस्तानी सेना घुटनों पर आ गई। घबराई पाकिस्तानी सरकार ने अमेरिका से सीजफायर की गुहार लगाई। जब दोनों देशों के बीच सीजफायर हुआ तो पाकिस्तानी सेना ने 3 घंटे के भीतर ही इसे तोड़ दिया, उसके बाद भारतीय सेना की कार्रवाई में जब की मुंह की खानी पड़ी, तब जाकर सीमा पर शांति आई।
पाकिस्तान की ओर से ऐसा पहली बार नहीं किया गया है। 1971 में भी ऐसा किया। तब भी पाकिस्तानी फौज की नापाक हरकत के चलते एक ऐसी जंग हुई थी, जिसने दुनिया का नक्शा और नजरिया बदल दिया था। रणनीति को नए आयाम दिए। भारतीय सेना ने पाकिस्तान के टुकड़े कर एक नजीर पेश की थी। यह युद्ध जल, थल और नभ में अनगिनत जगहों और मोर्चों पर लड़ा गया था।
इन्हीं में से एक लोंगेवाला की लड़ाई थी। यह लड़ाई 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान पश्चिमी क्षेत्र में लड़ी गई प्रमुख निर्णायक लड़ाइयों में से एक थी। इस लड़ाई में सिर्फ 120 भारतीय जवानों ने 46 टैंक और तोपखाना लेकर पूरी तैयारी से 'लोंगेवाला में नाश्ता, रामगढ़ में लंच और जोधपुर में डिनर' का सपना लेकर आए 4000 से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिकों को धूल चटाई थी, जिसका दूरगामी असर उसके मनोबल पर तो पड़ा ही था।
क्या है लोंगेवाला सघंर्ष जिसके बाद पाकिस्तानी सेना के कई अफसरों को देना पड़ा था इस्तीफा, आइए हम आपको बताते हैं...
लोंगेवाला में पूरी तैयारी से हमला करने आए पाकिस्तानी सेना के टैंक की फोटो।
लोंगेवाला पर क्यों किया हमला?लोंगेवाला चेक पोस्ट.. राजस्थान में भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर एक छोटी-सी सुरक्षा चौकी है। यह जगह जैसलमेर से 120, रामगढ़ से 55 और अंतरराष्ट्रीय सीमा से 20 किलोमीटर दूर थी। उस वक्त यहां पंजाब रेजीमेंट की 23वीं बटालियन की एक टुकड़ी रेगिस्तान के वीराने में सीमा की निगरानी में तैनात थी।
लोंगेवाला रामगढ़ रोड पर एक समतल जमीन पर एक हेलीपैड बनाया गया था, जिसकी दूरी सुरक्षा चौकी से 700 मीटर थी। लोंगेवाला में दुश्मन के नजर डालने की गुंजाइश ना के बराबर थी। इसलिए यहां सेना की चौकसी तो रहती थी, लेकिन अतिरिक्त तैयारी नहीं।
जवानों के पास दो मीडियम मशीन गन, 81 एमएम के दो मोर्टार, टैंकर से रक्षा के लिए कंधे से चलाए जाने वाले चार रॉकेट लॉन्चर और एक रिकॉइल थी। कुछ बारूदी सुरंगे भी थी, लेकिन उन्हें तब तक बिछाया नहीं गया था।
भारतीय फौज का एक बड़ा हिस्सा पूर्वी सीमा पर उलझा था तो बाकी सेना जम्मू-कश्मीर व अन्य सेनाओं की सुरक्षा में लगी थी। दिसंबर के शुरुआत में थार क्षेत्र में अफवाह थी- 'पाकिस्तानी दावा कर रहे हैं कि वो 4 दिसंबर को जैसलमेर में नाश्ता करेंगे।'
लोंगेवाला में 5 दिसंबर की रात क्या हुआ था?4-5 दिसंबर की रात...चांदनी रात थी। लोंगेवाला के पास हल्की हवा चल रही थी। सुरक्षा चौकी इंचार्ज मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी ने कैप्टन धर्मवीर सिंह के नेतृत्व में कुछ सैनिकों को सीमा की ओर गस्त के लिए भेजा।
धर्मवीर सिंह ने एक इंटरव्यू में बताया था- 4-5 दिसंबर की दरमियानी रात की शांति अचानक टैंकों के इंजन से पैदा हुई हल्की-सी आवाज और उनके आगे बढ़ने की गड़गड़ाहट से भंग हुई। शुरुआत में तो किसी को अंदाजा नहीं हुआ कि ये आवाज आ कहां से रही है। पूरी पलटन ध्यान उस आवाज को सुन रही थी और समझने की कोशिश कर रही थी।
जब आवाज बढ़ती चली गई तो मैंने कंपनी कमांडर मेजर ध्यानचंद से वायरलेस से बात की। कमांडर ध्यानचंद ने पूरी बात सुनने के बाद कहा- हो सकता है कि कोई वाहन बालू में फंस गया हो। इसलिए ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है। जा सो जा।
करीब 12 धर्मवीर को पाकिस्तानी टैंक नजर आए। टैंक बेहद धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे। टैंकों की लाइट बंद थीं। टैंक धीरे-धीरे इसलिए भी आ रहे थे, क्योंकि वे पक्की सड़क से नहीं रेत पर चलकर आगे बढ़ रहे थे। धर्मवीर ने कंपनी कमांडर को आगाह करना चाहा, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया। कुछ देर बाद संपर्क हुआ तो जानकारी दी।
एक बटालियन ने 4000 सैनिकों को पूरी रात रोके रखाडॉ. यूपी थपलियाल ने अपनी किताब 'द 1971 वॉर एन इलस्ट्रेटेड हिस्ट्री' (The 1971 War: An Illustrated History) इसका जिक्र करते हुए लिखा- रात के 12:30 बजे के करीब पाकिस्तानी टैंकों ने गोले बरसाने शुरू कर दिए थे। शुरुआती हमले में सीमा सुरक्षा बल (BSF) के पांच ऊंट मारे गए। पाकिस्तानी सेना के टैंक कंटीले तारों के पास आकर रुक गए थे, क्योंकि उन्हें लगा था कि यहां बारूदी सुरंगें बिछी हुई हैं।
पाकिस्तानी सेना की इस गलतफहमी का फायदा उठाकर हमारे जवानों ने अपनी स्थिति थोड़ी मजबूत की। 5 दिसंबर की सुबह की पहली किरण खिलते ही पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय चौकी पर हमला बोल दिया था। इससे पहले की बात करें तो पाकिस्तानी टैंकों को भारत-पाक सीमा से 16 किलोमीटर की दूरी तय करने में 6 घंटे से ज्यादा का वक्त लग गया था।
राजस्थान पर्यटन पर लोंगेवाला वॉर के हीरो और पाकिस्तानी सैनिकों की तादाद का जिक्र।
मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी रात भर बटालियन मुख्यालय से संपर्क करने की कोशिश करते रहे। सुबह 4 बजे जाकर संपर्क हो पाया। तब मेजर चांदपुरी ने मुख्यालय को सूचित किया कि पाकिस्तानी टैंक भारतीय क्षेत्र में घुस आए हैं और लोंगेवाला की तरफ बढ़ रहे हैं। मेजर चांदपुरी ने फोन पर मदद और हथियार की मांग की।
किसी भी हाल में सुबह से पहले कोई मदद नहीं पहुंच सकती थी। ऐसे में मेजर चांदपुरी के पास दो ऑप्शन थे- पहला बटालियन के साथ आखिरी सांस तक लड़े और दूसरा बटालियन के साथ चेक पोस्ट छोड़ दें। लेकिन मेजर चांदपुरी समेत पूरी बटालियन ने आखिरी सांस तक लड़ना चुना। बटालियन ने पाकिस्तानी सेना के हजारों सैनिकों को रात भर रोककर रखा।
वायुसेना बनी उम्मीद की किरणमेजर जनरल आरएफ थंबाटा जब लोंगेवाला में पाकिस्तानी सेना के लाव-लश्कर के साथ हमला करने की खबर लगी तो वे हैरान रह गए। उनको स्थिति की गंभीरता का अंदाजा समझते देर नहीं लगी।
वे जानते थे कि सामने खड़े दुश्मन से निपटने के लिए उनके पास बहुत साधन नहीं हैं। ऐसे में वायुसेना ही उनके लिए एकमात्र उम्मीद की किरण थी। रात के 2 बजे उन्होंने जैसलमेर एयरबेस के कमांडर एमएस बावा से वायरलेस रेडियो से संपर्क किया।
जैसलमेर एयरबेस पर हंटर लड़ाकू विमान मौजूद थे, जोकि रात में उड़ान नहीं भर सकते थे। ऐसे में सुबह तक का इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं था। बेस कमांडर ने मेजर आरएफ थंबाटा को भरोसा दिया कि सुबह की पहली किरण के साथ ही हंटर विमान उड़ान भरेंगे और पाकिस्तानी टैंकों को ढूंढ-ढूंढकर देश की पश्चिमी सीमा पर आए खतरे को बेअसर करने की कोशिश करेंगे।
सुबह के करीब 4 बजे कमांडर एमएस बावा ने स्क्वाड्रन लीडर आरएन बाली को घटना की स्थिति से वाकिफ कराया। एयर मार्शल भरत कुमार ने अपनी 'द एपिक बैटल ऑफ लोंगेवाला' में इसका जिक्र किया है।
मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी ने सुबह के 5:15 बजे ब्रिगेडियर रामदौंस से संपर्क किया। उस वक्त पाकिस्तानी सेना का लीड टैंक लोंगेवाला पोस्ट के दक्षिण-पश्चिम में घोटारू सड़क से कोई एक किलोमीटर से भी कम दूर था।
चांदपुरी ने रिकॉइल गन से उस पर फायर किया। निशाना चूक गया। पलटवार में कुछ सेकंड में पाकिस्तानी टैंक ने सुरक्षा चौकी को मलबे में बदल दिया था। फिर ऊंटों के लिए रखे चारे में आग लगा दी। उस वक्त सिर्फ चेक पोस्ट के बगल में खड़ा तनोट माता का मंदिर बच गया था।
सुबह 7 बजे भारतीय जवानों ने किया हमलापाकिस्तानी सेना से रिटायर ब्रिगेडियर जेड ए खान ने 'द वे इट वॉज, इनसाइड द पाकिस्तानी आर्मी' नाम से एक किताब लिखी है, जिसमें लोंगेवाला युद्ध का भी जिक्र किया है। खान ने अपनी किताब में लिखा- लोंगेवाला चेक पोस्ट पर हमले के वक्त मैं जीप पर सबसे आगे चल रहा था। हम लोग सुरक्षा चौकी के दक्षिण रिज तक पहुंच चुके थे। साढ़े सात बजे मुझे लोंगेवाला की तरफ से धमाकों की आवाज सुनाई दी। आसमान धुएं से भरा हुआ था।
वायुसेना को देख पाकिस्तानी सेना ने बदली रणनीतिपाकिस्तानी टैंक लोंगेवाला चौकी पर अगला हमला करने ही वाले थे कि जैसलमेर से उड़ भारतीय लड़ाकू विमान हंटर ऊपर आ गए। उस वक्त पाकिस्तानी लीड टैंक लोंगेवाला चेक पोस्ट से महज 800 मीटर की दूरी पर था। लड़ाकू विमानों को देखते ही पाकिस्तानी टैंक गोलाई में घूमकर धुआं निकालने लगे। हंटर विमान स्क्वाड्रन लीडर डी के दास और फ्लाइट लेफ्टिनेंट रमेश गोसाई उड़ा रहे थे।
स्क्वाड्रन लीडर डी के दास ने बाद में एक टीवी साक्षात्कार में बताया था, '' हंटर लेकर जब हम लोंगेवाला के पास पहुंचे तो नीचे का दृश्य था, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है। जमीन पर दुश्मन के टैंक काली माचिस के डिब्बे की तरह नजर आ रहे थे। कुछ खड़े थे और कुछ चल रहे थे।
दुश्मन ने हंटर को देखते हुए हमारे ऊपर ट्रेसर फायर शुरू कर दिए थे। मैंने रमेश से कहा- विमानभेदी तोपों से बचने के लिए हमें 3500 फुट की ऊंचाई पर जाना चाहिए।
ऊपर से देखा कि एक पाकिस्तानी टैंक कुछ सुरक्षित जगह पर रेत के एक टीले के पास खड़ा था, जबकि दूसरा हेलीपैड की ओर जा रहा था। मैं उन दोनों टैंकों को निशाना बनाने का फैसला लिया। मैंने 3500 फुट से नीचे डाइव लगाते हुए नीचे आया और 900 फुट की ऊंचाई उन पर रॉकेट फायर किए।
इस तरह की डाइव लगाने की दौरान हम नीचे आते चले जाते हैं और विमानभेदी तोपों की जद में आ जाते हैं। तुरंत दिशा बदलकर दोबारा ऊपर चले गए। उधर, जैसे ही मेरे रॉकेट ने हेलीपैड की ओर बढ़ रहे टैंक को हिट तो अचानक सारे टैंकों ने आगे बढ़ना बंद कर दिया।
फ्लाइट लेफ्टिनेंट रमेश गोसाई भी मेरी तरह नीचे आए और एक टैंक तबाह कर दिया। इसके बाद हम दोनों ने दो से तीन बार और टैंकों को हिट किया। ऊपर से होते हमलों से बचने के लिए पाकिस्तानी टैंकों ने जिगजैग चलना शुरू कर दिया। तेजी से धूल उड़ने लगी। ऐसे में हम दोनों के लिए टैंको पर निशाना लगाना मुश्किल हो गया।
लोंगेवाला युद्ध स्मारक में रखा भारतीय सेना का लड़ाकू विमान हंटर। फोटो - जागरण
दोपहर तक दुश्मन के 17 टैंक कर दिए थे तबाहरॉकेट खत्म होने पर स्क्वाड्रन लीडर दास ने '30 एमएम एडम गन' से एक टैंक पर निशाना लगाया और टैंक में आग लग गई। जमीन पर सेना और आसमान में वायुसेना ने मोर्चा संभाल हुआ था। शाम होने तक भारतीय पायलट थोड़ी-थोड़ी देर पाकिस्तानी टैंकों पर हमला कर रहे थे। दोपहर होते-होते भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के 17 टैंक और 23 अन्य वाहन नेस्तनाबूत कर दिए थे।
पाकिस्तानी मेजर ने अपनी किताब में क्या लिखा?किताब 'द वे इट वॉज, इनसाइड द पाकिस्तानी आर्मी' में लिखा है- सुबह 7 बजे से भारतीय वायुसेना के चार हंटर हमारे ऊपर लगातार बम बरसाते रहे। जैसे शाम हुई और अंधेरा छाया तो हवाई हमले रुक गए।
उस वक्त पाकिस्तानी सेना के पास दो ऑप्शन थे- पहला वे अपनी सीमा में लौट जाएं और दूसरा फिर से खुद को तैयार कर अपने मूल मकसद रामगढ़ और जैसलमेर पर दोबारा कब्जा करने की कोशिश करें।
उस रात पाकिस्तानी सैनिक वापस लौट गए, लेकिन लोंगेवाला पर कब्जा करने का ऑप्शन उनके पास था। पाकिस्तानी सेना ने अगली सुबह लोंगेवाला पर हमला करने की योजना बनाई। 28 बलूच रेजीमेंट से भी कहा कि लोंगेवाला जैसलमेर रोड पर आगे बढ़े और घोटारू पर कब्जा कर लें।
उल्टे पांव जान बचाकर भागे थे पाकिस्तानी सैनिकपाकिस्तानी सेना की योजना बेशक शानदार रही हो, लेकिन हमारे सिर्फ 120 जवानों ने उनके मंसूबे कामयाब नहीं होने दिए। 6 दिसंबर की शाम होते-होते लोंगेवाला का युद्ध खत्म हो गया। पाकिस्तानी सैनिकों को टैंक और तोपखाना छोड़ जान बचाकर उल्टे पांव भागने के लिए मजबूर कर दिया।
पाकिस्तानी टैंक पर जीत की खुशी मनाते भारतीय सैनिक। फोटो- राजस्थान पर्यटन वेबसाइट
4000 हजार पाकिस्तानी सैनिक और 46 टैंक, तोपें और भरपूर मात्रा में गोला-बारूद होने के बावजूद हमारे जवानों ने अपनी रणनीति और बहादुरी से दुश्मन को बुरी तरह हरा दिया। इस लड़ाई में पाकिस्तानी 200 से ज्यादा सैनिक मारे गए। 46 में से 36 टैंक और 500 से ज्यादा हथियारबंद वाहन बर्बाद हो गए।
पाकिस्तानी अफसरों को देने पड़े इस्तीफेयह दूसरे विश्व युद्ध के बाद पहली बार किसी एक देश ने एक लड़ाई में इतनी बड़ी संख्या में अपने टैंक गंवाए थे। इस हार से पाकिस्तानी सेना का मनोबल हिल गया। लोंगेवाला लड़ाई में वीरता से दुश्मन को मात देने के लिए मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी को देश का दूसरा सबसे बड़ा सैन्य सम्मान महावीर चक्र दिया गया।
महावीर चक्र सम्मान लेते मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी। फोटो- राजस्थान पर्यटन वेबसाइट
पाकिस्तानी कमांडर मेजर जनरल बीएम मुस्तफा और उनकी बटालियन के कुछ अफसरों को जांच के बाद पद से हटा दिया गया था।
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लोंगेवाला में रखे हैं पाकिस्तानी ट्रैंकलोंगेवाला पोस्ट को अब 'इंडो-पाक पिलर 638' के नाम से जाना जाता है। भारत ने 1971 के भारत और पाकिस्तान युद्ध का जीवंत चित्रण करने के लिए लोंगेवाला में युद्ध स्मारक और जैसलमेर से 10 किमी दूर वॉर म्यूजियम बनाया है।
यहां पाकिस्तानी सेना के टैंक, आरसीएल हंटर विमान और भारतीय जवानों के हथियार प्रदर्शनी में लगाए गए हैं। 15 मिनट की डॉक्यूमेंट्री भी दिखाई जाती है। हर साल हजारों सैलानी यहां जाकर भारतीय जांबाजों की वीर गाथा के साक्षी बन रहे हैं। बता दें कि बॉलीवुड फिल्म इस लड़ाई पर आधारित ही है।
लोंगेवाला युद्ध स्मारक में प्रदर्शनी में रखा पाकिस्तानी सेना का टैंक। फोटो- जागरण
तनोट माता के चमत्कार की चर्चाभारत-पाकिस्तान के इस युद्ध के बाद तनोट माता मंदिर भी खासा चर्चा में आ गया। स्थानीय लोगों का कहना है- यह तनोट माता का ही चमत्कार है कि भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तानी सेना की ओर से फेंके गए सैकड़ों बम नहीं फटे। भारतीय सेना को ये जिंदा बम तनोट मंदिर कैंपस में पड़े मिले। सेना ने कुछ बम आज भी मंदिर में प्रदर्शित कर रखे हैं, जो माता के चमत्कार की गवाही देते हैं।
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Source:
- राजस्थान पर्यटन विभाग की आधिकारिक वेबसाइट- www.tourism.rajasthan.gov.in
- डॉ. यूपी थपलियाल की किताब 'द 1971 वॉर एन इलस्ट्रेटेड हिस्ट्री'।
- पाकिस्तानी सेना से रिटायर ब्रिगेडियर जेड ए खान की किताब 'द वे इट वॉज, इनसाइड द पाकिस्तानी आर्मी'।
- एयर मार्शल भरत कुमार की किताब 'द एपिक बैटल ऑफ लोंगेवाला'।
- लोंगेवाला युद्ध में लड़ने वाले सैनिकों के साक्षात्कार।
- जागरण आर्काइव।
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- West Bengal CM Mamata welcomes release of BSF jawan from Pakistan custody The Hindu
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चीन के बाद तुर्किये के प्रोपेगेंडा पर भारत की कार्रवाई, TRT वर्ल्ड के 'एक्स' अकाउंट पर लगाया बैन
एएनआई, नई दिल्ली। पहलगाम हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान पर कार्रवाई करते हुए कई सरकारी एक्स अकाउंट और वहां के अभिनेता और अभिनेत्रियों के एक्स अकाउंट पर भारत में बैन लगाया था।
The 'X' account of Turkish broadcaster 'TRT World' withheld in India. pic.twitter.com/in72SVkubD
— ANI (@ANI) May 14, 2025इसके बाद भारत सरकार ने चीन के ग्लोबल टाइम्स पर भी रोक लगा दी। अब भारत ने पाकिस्तान के 'दोस्त' तुर्किये पर एक्शन लिया है और तुर्किये के ब्रॉडकास्टर टीआटी वर्ल्ड के एक्स अकाउंट पर भारत में रोक लगा दी है।
चीन के ग्लोबल टाइम्स के एक्स अकाउंट पर क्यों लगी रोक?
भारतीय सेना पर अपुष्ट दावे फैलाने पर केंद्र सरकार ने बुधवार को चीन के सरकारी एक्स हैंडल पर प्रतिबंध लगा दिया।
यह प्रतिबंध ऐसे समय में लगाया गया है जब कुछ दिन पहले चीन में भारतीय दूतावास ने मीडिया आउटलेट को सोशल मीडिया पर पोस्ट करने से पहले तथ्यों की पुष्टि करने की सख्त चेतावनी दी थी।
दूतावास ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, "ग्लोबल टाइम्सन्यूज, हम आपको सलाह देंगे कि इस तरह की गलत सूचना को आगे बढ़ाने से पहले आप अपने तथ्यों को सत्यापित कर लें और अपने स्रोतों की जांच कर लें।"
ग्लोबल टाइम्स का 'एक्स' अकाउंट भारत में ब्लॉक, चीनी प्रोपेगेंडा फैलाने पर लिया एक्शन
Expired food found at railways' caterer
Are you cardiac-arrest prone? Try this non-invasive scan - Onmanorama
- Are you cardiac-arrest prone? Try this non-invasive scan Onmanorama
- CT calcium score: This test can detect a heart attack at its earliest stage India Today
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- New Non-invasive Test Detects A Heart Attack At Its Earliest Stage Times Now
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देश के पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीश, अमरावती की झुग्गी से CJI तक का सफर... जानिए कौन हैं जस्टिस बीआर गवई
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के 52वें चीफ जस्टिस के रूप में जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने शपथ ले ली है और राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में राष्ट्रपति ने उन्हें पद और गोपनियता की शपथ दिलाई।
जस्टिस गवई भारत के पहले बौद्ध CJI हैं और आजादी के बाद देश में दलित समुदाय से वे दूसरे सीजीआई हैं। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में उनका कार्यकाल छह महीने का होगा। जस्टिस बीआर गवई के पिता रामकृष्ण सूर्यभान गवई ने डॉक्टर बीआर अंबेडकर के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था।
जस्टिस बीआर गवई का कार्यकाल 23 नवंबर 2025 को खत्म होगा। सीजेआई बनने के अगले ही दिन जस्टिस गवई वक्फ कानून में हुए संशोधनों को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करेंगे। आईए जानतें हैं कैसी रही जस्टिस गवई की अब तक की यात्रा...
जस्टिस गवई की जिंदगी में डॉक्टर अंबेडकर की भूमिका
संविधान को सर्वोच्च बताने वाले जस्टिस गवई ने कई बार बताया है कि सकारात्मक सोच ने कैसे उनकी पहचान को आकार दिया है।
2024 में उन्होंने एक भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था, यह पूरी तरह से डॉक्टर अंबेडकर के प्रयासों का परिणाम है कि मेरे जैसा कोई व्यक्ति, जो एक झुग्गी के नगरपालिका के स्कूल से पढ़कर इस पद तक पहुंच सका। उन्होंने अपने भाषण को 'जय भीम' के नारे के साथ खत्म किया था।
बता दें, जस्टिस गवई अनुसूचित जाति से आने वाले देश के दूसरे चीफ जस्टिस होंगे। उनसे पहले जस्टिस केजी बालाकृष्णन 2007 में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने थे। उनका कार्यकाल तीन साल का था।
राजनीतिक मामलों में सुनाए अहम फैसले
- सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस गवई ने राजनीति से जुड़े कई मामलों में फैसले सुनाए, इनमें न्यूज वेबसाइट न्यूजक्लिक के संस्थापक संपादक प्रबीर पुरकायस्थ और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से जुड़े मामले शामिल हैं।
- इन मामलों में जस्टिस गवई के नेतृत्व वाले पीठ ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और धन शोधन निवारण अधिनियम जैसे कानूनों में मनमानी गिरफ्तारी पर फैसले सुनाए।
- जस्टिस गवई उस पीठ के प्रमुख थे, जिसने नवंबर 2024 में यह माना था कि उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना लोगों की संपत्तियों पर बुलडोजर चलाना रूल ऑफ लॉ के खिलाफ है।
- जस्टिस गवई सात जजों के उस संविधान पीठ में भी शामिल थे, जिसने अनुसूचित जातियों के आरक्षण में आरक्षण देने की वकालत की थी।
- कांग्रेस नेता राहुल गांधी को आपराधिक मानहानी के एक मामले में सजा को स्थगित करने वाले बेंच में भी जस्टिस गवई शामिल थे।
महाराष्ट्र के दिग्गज नेता था जस्टिस गवई के पिता
- जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। वह अपने तीन भाइयों में सबसे बड़े हैं। उनके पिता रामकृष्ण सूर्यभान गवई महाराष्ट्र के दिग्गज नेताओं में से एक थे और वे 1964 से लेकर 1994 तक महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य रहे।
- उनके पिता विधान परिषद के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और विपक्ष के नेता के पद पर भी चुने गए थे। वे 1998 में अमरावती से 12वीं लोकसभा के लिए भी चुने गए थे। इसके साथ ही अप्रैल 2000 से लेकर अप्रैल 2006 तक जस्टिस गवई के पिता महाराष्ट्र से राज्य सभा के लिए भी चुने गए थे।
- मनमोहन सिंह की सरकार ने जून 2006 में उन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया था। बिहार के अलावा वे सिक्किम और केरल के भी राज्यपाल रहे। अंबेडकरवादी राजनीति करने वाले रामकृष्ण सूर्यभान गवई ने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई) की स्थापनी भी की थी।
घर के कामों में की मां की मदद
जस्टिस बीआर गवई को बचपन में लोग भूषण कहकर पुकारते थे और पिता के राजनीति में होने के कारण उन्हें राजनीतिक गतिविधियों के लिए अक्सर घर से बाहर रहना पड़ता था। ऐसे में उनका पालन-पोषण मां कमलाताई की देखरेख में ही हुआ।
अपने भाइयों में वे सबसे बड़े थे, जिस वजह से उन्हें जिम्मेदारी भी ज्यादा उठानी पड़ी। इतना ही नहीं, जस्टिस गवई बचपन में घर के कामकाज में अपनी मां की मदद भी किया करते थे। उनके अंदर समाज सेवा का हुनर बचपन से ही था।
जस्टिस गवई का बचपन अमरावती की एक झुग्गी बस्ती फ्रेजरपुरा में ही बीता और वहीं के नगरपालिका के स्कूल से उन्होंने पढ़ाई की। मराठी माध्यम के स्कूल में जमीन पर बैठकर उन्होंने कक्षा सात तक की पढ़ाई की। इसके आगे की पढ़ाई उन्होंने मुंबई, नागपुर और अमरावती में की।
जस्टिस गवई की यात्रा
- जस्टिस गवई ने बीकॉम के बाद कानून की पढ़ाई अमरावती विश्वविद्यालय से की।
- लॉ की डिग्री लेने के बाद 25 साल की उम्र में उन्होंने वकालत शुरू की।
- इस दौरान वो मुंबई और अमरावती की अदालतों में पेश होते रहे।
- इसके बाद उन्होंने बांबे हाई कोर्ट के नागपुर बेंच का रुख किया और वहां वह सरकारी वकील भी रहे।
- भूषण रामकृष्ण गवई को 2001 में जज बनाने का प्रस्ताव दिया गया था।
- उन्हें 2003 में बांबे हाई कोर्ट का एडिशनल जज और 2005 में स्थायी जज बनाया गया।
राहुल गांधी को जस्टिस गवई के फैसले से मिली थी राहत
जस्टिस गवई का करियर काफी लंबा रहा है और इस दौरान उन्होंने अपने परिवार की राजनीति पृष्ठभूमि को कभी नहीं छिपाया। ताजा मामला राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता खत्म करने वाले आपराधिक मानहानी मामले में सुनाई गई सजा से जुड़ा था।
जुलाई 2023 में राहुल गांधी के मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस गवई ने अपने परिवार का कांग्रेस से लगाव होने की वजह से मामले की सुनवाई से हटने का प्रस्ताव भी दिया था।
कैसे राहुल गांधी की सदस्यता हुई बहाल?
उन्होंने कहा था, "मेरे पिता कांग्रेस से जुड़े रहे हैं, हालांक वह पार्टी के सदस्य नहीं थे लेकिन उसके साथ जुड़े थे। मिस्टर सिंघवी (अभिषेक मनु सिंघवी) आप भी कांग्रेस से 40 सालों से जुड़े हैं और मेरा भाई अभी भी राजनीति में है और कांग्रेस से जुड़ा है। कृपया आपलोग बताएं कि क्या मुझे इस केस की सुनवाई करनी चाहिए?"
हालांकि, उनके यह कहने पर दोनों पक्षों ने उनके द्वारा सुनवाई करने को लेकर कोई आपत्ति नहीं जताई थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को सुनाई गई सजा पर रोक लगा दी थी। इससे राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता बहाल हो गई थी।
Video: देश के 52वें चीफ जस्टिस बने बीआर गवई, शपथ लेते ही छुए मां के पैर
India-UK FTA a good deal, but for whom?
ग्लोबल टाइम्स का 'एक्स' अकाउंट भारत में ब्लॉक, चीनी प्रोपेगेंडा फैलाने पर लिया एक्शन
एएनआई, नई दिल्ली। भारतीय सेना पर अपुष्ट दावे फैलाने पर केंद्र सरकार ने बुधवार को चीन के सरकारी एक्स हैंडल पर प्रतिबंध लगा दिया।
यह प्रतिबंध ऐसे समय में लगाया गया है जब कुछ दिन पहले चीन में भारतीय दूतावास ने मीडिया आउटलेट को सोशल मीडिया पर पोस्ट करने से पहले तथ्यों की पुष्टि करने की सख्त चेतावनी दी थी।
दूतावास ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, "ग्लोबल टाइम्सन्यूज, हम आपको सलाह देंगे कि इस तरह की गलत सूचना को आगे बढ़ाने से पहले आप अपने तथ्यों को सत्यापित कर लें और अपने स्रोतों की जांच कर लें।
दूतावास ने बताई सच्चाई
इसके बाद दूतावास ने पोस्ट में कहा, "कई पाकिस्तान समर्थक हैंडल #ऑपरेशन सिंदूर के संदर्भ में गलत दावे फैला रहे हैं, जिससे जनता को गुमराह करने की कोशिश की जा रही है। जब मीडिया आउटलेट स्रोतों की पुष्टि किए बिना ऐसी जानकारी साझा करते हैं, तो यह जिम्मेदारी और पत्रकारिता नैतिकता में गंभीर चूक को दर्शाता है।"
(1/n) Dear @globaltimesnews , we would recommend you verify your facts and cross-examine your sources before pushing out this kind of dis-information. https://t.co/xMvN6hmrhe
— India in China (@EOIBeijing) May 7, 2025दूतावास की यह टिप्पणी पाकिस्तानी अकाउंट्स और कुछ मीडिया द्वारा वायरल पोस्ट के बाद आई थी, जिसमें कहा गया था कि बहावलपुर के पास एक भारतीय राफेल जेट को मार गिराया गया है।
PIB ने किया फैक्ट चेक
हालांकि, पीआईबी फैक्ट चेक टीम ने ऐसी ही एक वायरल तस्वीर को भ्रामक बताते हुए कहा कि यह तस्वीर 2021 में पंजाब के मोगा जिले में हुए मिग-21 क्रैश की है। पीआईबी ने अपने पोस्ट में चेतावनी दी, "वर्तमान संदर्भ में पाकिस्तान समर्थक हैंडल द्वारा शेयर की गई पुरानी तस्वीरों से सावधान रहें।"
अरुणाचल में स्थानों का नाम बदलने पर विदेश मंत्रालय ने चीन को दिया जवाब
इससे पहले विदेश मंत्रालय ने भी अरुणाचल प्रदेश पर चीन के दावे का खंडन किया और राज्य में स्थानों का नाम बदलने के उसके प्रयास पर कड़ी आपत्ति जताई।
विदेश मंत्रालय ने एक आधिकारिक बयान में दोहराया कि चीन के 'नामकरण' से इस निर्विवाद वास्तविकता में कोई बदलाव नहीं आएगा कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा है और हमेशा रहेगा।
विदेश मंत्रालय ने कहा, "हमने देखा है कि चीन भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश में स्थानों के नामकरण के अपने व्यर्थ और निरर्थक प्रयासों में लगा हुआ है। हम इस तरह के प्रयासों को स्पष्ट रूप से अस्वीकार करते हैं।"
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