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अग्निवीर को बचाने के लिए नदी में कूदे सिक्किम स्काउट्स के लेफ्टिनेंट, पानी के तेज बहाव में बहे; 800 मीटर दूर मिला शव

Dainik Jagran - National - May 23, 2025 - 11:26pm

जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी। सिक्किम में एक सैन्य अभियान के दौरान अग्निवीर को बचाने के क्रम में सिक्किम स्काउट्स के लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी बलिदान हो गए। 22 मई की सुबह लगभग 11 बजे यह घटना हुई। उन्होंने अपने सहयोगी सैनिक की जान बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।

23 वर्षीय लेफ्टिनेंट शशांक को सेना में कमीशन प्राप्त हुए अभी छह महीने भी नहीं हुए थे। सेना ने एक बयान जारी कर बताया है कि लेफ्टिनेंट शशांक एक रूट ओपनिंग पेट्रोल टीम का नेतृत्व कर रहे थे। पांच सदस्यीय यह पेट्रोलिंग टीम एक ऑपरेटिंग बेस की ओर बढ़ रही थी। इसको भविष्य में सेना की तैनाती के लिए तैयार किया जा रहा था।

तेज बहाव वाली पहाड़ी नदी में बहे

पेट्रोल टीम के सदस्य अग्निवीर स्टीफन सुब्बा एक लकड़ी के पुल को पार करते समय फिसल गए और तेज बहाव वाली पहाड़ी नदी में बह गए। लेफ्टिनेंट शशांक ने अग्निवीर को बचाने के लिए पानी में छलांग लगा दी। टीम में शामिल एक अन्य सैनिक नायक पुकुर कटेल ने भी तुरंत उनका साथ दिया। दोनों ने मिलकर डूब रहे अग्निवीर को बचा लिया।

मगर इस प्रयास में लेफ्टिनेंट शशांक पानी के तेज बहाव में बह गए। लगभग आधे घंटे बाद उनका शव घटनास्थल से 800 मीटर दूर नदी से बरामद हुआ। वह उत्तर प्रदेश के अयोध्या के रहने वाले थे। सिक्किम पुलिस के अधिकारी कुमार गुरुंग ने बताया है कि बलिदानी अधिकारी के पार्थिव शरीर को वायुसेना ने बागडोगरा स्थित सेना के अस्पताल पहुंचाया गया है।

पुलिस ने घटनास्थल की जांच पूरी कर ली है। चश्मदीदों के बयान दर्ज किए जा चुके हैं। जांच में किसी तरह की साजिश या आपराधिक घटना की पुष्टि नहीं हुई है।

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'सुप्रीम कोर्ट CJI केंद्रित है, इसमें बदलाव की जरूरत'; फेयरवेल स्पीच पर जस्टिस अभय ओका ने दिया बड़ा बयान

Dainik Jagran - National - May 23, 2025 - 11:05pm

 डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट को लेकर समय समय पर बदलाव की बातें होती रही हैं। कई जजों ने सुप्रीम कोर्ट में सुधार की बात की हैं तो कई सुधार भी हुए हैं। वहीं, शुक्रवार को अपने अंतिम कार्य दिवस पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एएस ओका ने बड़ी बात बोली। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट मुख्य न्यायाधीश केंद्रित कोर्ट है और इसमें बदलाव की जरूरत है।

न्यायाधीश एएस ओका का अंतिम कार्य दिवस शुक्रवार को था

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एएस ओका का अंतिम कार्य दिवस शुक्रवार को था, अब वे रिटायर हो गए हैं। न्यायमूर्ति ओका ने यह भी संकेत दिया कि यह बदलाव नए मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई के अधीन आ सकता है, जिन्होंने इस महीने की शुरुआत में कार्यभार संभाला था और नवंबर में अपनी सेवानिवृत्ति तक इस पद पर बने रहेंगे।

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित अपने विदाई समारोह में बोलते हुए न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि उच्च न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय की तुलना में अधिक लोकतांत्रिक तरीके से काम करते हैं।

अपने भाषण में दे गए संकेत

न्यायाधीश एएस ओका ने कहा कि उच्च न्यायालय समितियों के माध्यम से काम करते हैं, जबकि सर्वोच्च न्यायालय भारत के मुख्य न्यायाधीश-केंद्रित है। इसमें बदलाव की जरूरत है। आप नए सीजेआई के साथ यह बदलाव देखेंगे।

उन्होंने कहा कि मुझे बहुत खुशी है कि मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना (जो 13 मई को सेवानिवृत्त हुए) ने हमें पारदर्शिता के रास्ते पर आगे बढ़ाया। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को विश्वास में लेने के बाद निर्णय लिए। न्यायमूर्ति गवई के खून में लोकतांत्रिक मूल्य हैं।

न्यायपालिका के शीर्ष स्तर पर सुधार की गुंजाइश वाले अन्य क्षेत्रों की ओर इशारा करते हुए न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों ने ट्रायल कोर्ट की अनदेखी की है।

ट्रायल कोर्ट को कभी भी अधीनस्थ न्यायालय न कहें

उन्होंने कहा कि हमें ट्रायल कोर्ट और आम आदमी के बारे में भी सोचना चाहिए। हमारे ट्रायल और जिला न्यायालयों में बहुत सारे मामले लंबित हैं... ट्रायल कोर्ट को कभी भी अधीनस्थ न्यायालय न कहें। यह संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है... 20 साल बाद किसी को सजा देना मुश्किल काम है।

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'परमाणु हथियार की धमकी बर्दाश्त नहीं करेंगे', जयशंकर ने पाकिस्तान को सुनाई खरी-खरी; बोले- गलतफहमी में मत रहना

Dainik Jagran - National - May 23, 2025 - 10:47pm

पीटीआई, नई दिल्ली। भारत आतंकवाद को बिल्कुल भी बर्दाश्त न करने की नीति पर चल रहा है और आगे भी इसी पर चलेगा। विश्व के सामने आतंकवाद वैसी ही बड़ी समस्या है जैसी वातावरण में हो रहा बदलाव और तेजी से बढ़ रही गरीबी है।

भारत परमाणु हथियारों के इस्तेमाल को लेकर ब्लैकमेल की कोशिश को बर्दाश्त नहीं करेगा। इतना ही नहीं भारत पाकिस्तान के साथ अपने मसले द्विपक्षीय ही रखेगा, इसे लेकर किसी को गलतफहमी नहीं होनी चाहिए। यह बात विदेश मंत्री एस जयशंकर ने विदेश मंत्री जयशंकर ने जर्मन समकक्ष जोहान वाडेफुल के साथ बर्लिन में संयुक्त प्रेस कान्फ्रेंस में कही।

पाकिस्तान को दिया कड़ा संदेश

जयशंकर ने कहा, पाकिस्तान भारत की जम्मू-कश्मीर से लगने वाली सीमा का 1947 से लगातार उल्लंघन कर रहा है। यह सिलसिला लगभग आठ दशकों से चल रहा है भले ही पाकिस्तान में सैन्य सरकार रही हो या लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार। पाकिस्तान ने आतंकवाद को भारत के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है।

भारत ने दशकों तक संयम बरतने के बाद ऑपरेशन सिंदूर के जरिये आतंकवाद को मजबूती से जवाब दिया है। यह अभी स्थगित हुआ है, खत्म नहीं हुआ। इससे पहले डेनमार्क के अखबार पोलिटीकेन को दिए इंटरव्यू में जयशंकर ने पाकिस्तान में सैन्य शासन और लोकतंत्र को कमजोर करने का जितना समर्थन पश्चिमी देशों ने किया उतना किसी अन्य ने नहीं किया।

सैन्य तानाशाही का किया जिक्र
  • पश्चिमी देशों का यह रुख लंबे समय तक कायम रहा। विदेश मंत्री ने कहा, पश्चिमी देशों ने पाकिस्तान में लगभग आधे समय रही सैन्य तानाशाही का भी उसी तरह से समर्थन किया जैसे कि वे चुनी हुई सरकार को करते हैं। यह सब यूरोप के लोकतांत्रिक देशों में होता रहा। इससे पाकिस्तान में सेना का प्रभाव बढ़ता गया और वह चुनावों में जीते नेताओं पर भारी पड़ती रही।
  • जयशंकर ने यह बात यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत के रूस के समर्थन के सवाल पर कही। इंटरव्यू में सवाल को रूस से भारत की तेल खरीद को यूक्रेन में रूसी सैन्य कार्रवाई के समर्थन के तौर पर पूछा गया था। विदेश मंत्री इस समय नीदरलैंड्स, डेनमार्क और जर्मनी के दौरे पर हैं।

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SC: 'मातृत्व अवकाश लेना महिलाओं का अधिकार', इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कर डाली तीखी टिप्पणी

Dainik Jagran - National - May 23, 2025 - 10:38pm

पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि मातृत्व अवकाश लेना महिलाओं का अधिकार है। यह मातृत्व का अभिन्न हिस्सा है।

हाईकोर्ट ने कर दिया था इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के निर्णय को खारिज करते हुए कहा कि महिला अपने पहले विवाह से दो बच्चों के बावजूद तीसरे बच्चे के लिए मातृत्व अवकाश की हकदार है। हाईकोर्ट ने तमिलनाडु की सरकारी स्कूल की एक शिक्षिका को मातृत्व अवकाश देने से इनकार कर दिया था।

जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा, पूरी दुनिया में मां बनने के अधिकारों को मान्यता दी गई है, जिसमें मातृत्व लाभ शामिल हैं। मातृत्व अवकाश मातृत्व लाभ का अभिन्न हिस्सा है। अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 21 के व्यापक दायरे पर जोर दिया, जो जीवन के अधिकार की गारंटी देता है।

काफी व्यापक है जीवन के अधिकार का दायरा

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अर्थ जीवन के पूर्ण अर्थ से है। जीवन के अधिकार में स्वास्थ्य का अधिकार, गरिमा के साथ जीने का अधिकार और गोपनीयता का अधिकार भी शामिल है। अदालत ने अनुच्छेद 42 का भी उल्लेख किया, जिसमें कार्य की न्यायपूर्ण और मानवता के अनुकूल परिस्थितियों और मातृत्व राहत के प्रविधान हैं।

यह है मामला

तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले के एक सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में अंग्रेजी की शिक्षिका के पहले विवाह से दो बच्चे हैं। 2017 में तलाक के बाद से बच्चे उनके पूर्व पति की कस्टडी में हैं।

2018 में, उन्होंने पुनर्विवाह किया और 2021 में गर्भवती हुईं। उन्होंने 17 अगस्त 2021 से 13 मई 2022 तक मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन किया।

उनका अनुरोध तमिलनाडु के अधिकारियों ने मौलिक नियम (एफआर) 101(ए) का हवाला देकर अस्वीकार कर दिया। इस नियम के तहत मातृत्व अवकाश उन महिलाओं को मिलता है जिनके दो से कम बच्चे हैं। महिला ने इस फैसले को मद्रास हाई कोर्ट में चुनौती दी।

हाई कोर्ट की खंडपीठ ने इस निर्णय को पलट दिया

हाई कोर्ट की एकल पीठ ने उनके पक्ष में फैसला दिया और शिक्षा विभाग को मातृत्व अवकाश देने का आदेश दिया। हालांकि, राज्य सरकार ने अपील की। हाई कोर्ट की खंडपीठ ने इस निर्णय को पलट दिया, जिसके बाद शिक्षिका ने शीर्ष अदालत का रुख किया।

दो से अधिक बच्चों वाली महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश पर नहीं है रोक

शीर्ष अदालत ने इस तथ्य पर गौर किया कि मातृत्व लाभ संशोधन कानून, 2017 के तहत दो से अधिक बच्चों वाली महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश पर रोक नहीं है। इसके बजाय यह कानून मातृत्व अवकाश की अवधि को सीमित करता है। दो से कम बच्चों वाली महिलाओं के लिए 26 सप्ताह और अधिक बच्चों वाली महिलाओं के लिए 12 सप्ताह का मातृत्व अवकाश मिलता है।

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'कानून की नजर में अपराध, लेकिन लड़की...', सुप्रीम कोर्ट ने माफ कर दी रेप के दोषी की सजा; जानिए पूरा मामला

Dainik Jagran - National - May 23, 2025 - 10:36pm

माला दीक्षित, नई दिल्ली। कई बार कानून धरा रह जाता है और कोर्ट को मामले की परिस्थितियों को देखते हुए कानून से परे जाकर न्याय करना पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक ऐसा ही फैसला सुनाया है। नाबालिग से दुष्कर्म कानून की निगाह में गंभीर अपराध है, लेकिन पीड़िता ऐसा नहीं मानती।

पीड़िता ने तो उसे बचाने के लिए ऐड़ी चोटी एक कर दी। कर्ज लेकर लाखों रुपये कानूनी लड़ाई में खर्च कर दिए, छोटी बच्ची साथ लिए दर-दर भटकी। पीडि़ता का संघर्ष देख कर सुप्रीम कोर्ट का दिल पसीज गया। कोर्ट ने अभियुक्त को नाबालिग से दुष्कर्म का दोषी तो ठहराया लेकिन उसकी सजा माफ कर दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला

शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 में प्राप्त विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए यह फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि यह मामला सभी की आंखे खोलने वाला है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में राइट टु प्राइवेसी ऑफ एडोल्सेन्ट के नाम से स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई कर रहा था। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि कानून के मुताबिक, उसके पास अभियुक्त को सजा देकर जेल भेजने के सिवाय कोई विकल्प नहीं है लेकिन इस मामले में पीड़ता के परिवार ने, समाज ने और कानूनी तंत्र ने पीड़िता के साथ पहले ही बहुत अन्याय किया है, पीड़िता ने बहुत तनाव और कष्ट झेला है अब उसके पति को जेल भेज कर कोर्ट उसके साथ और अन्याय नहीं कर सकता।

जानिए क्या है पूरा मामला?

पश्चिम बंगाल के इस मामले में 14 वर्षीय पीड़िता से 25 वर्षीय युवक ने दुष्कर्म किया था जिसके लिए निचली अदालत ने पोक्सो कानून में 20 साल की सजा सुनाई थी। लेकिन केस के तथ्यों के मुताबिक पीड़िता युवक से प्यार करती थी और वह स्वयं घर से भागी थी। उसने अभियुक्त से शादी कर ली है और उसकी अब एक छोटी बच्ची भी है और अब उसकी सारी चिंता अपने पति को बचाने और छोटे से परिवार को साथ रखने की है। ये फैसला न्यायमूर्ति अभय एस ओका और उज्जवल भुइयां की पीठ ने कलकत्ता हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दाखिल अपील और स्वत: संज्ञान लेकर की जा रही सुनवाई में दिए।

कलकत्ता हाईकोर्ट ने की थी विवादित टिप्पणी

इस मामले में कलकत्ता हाई कोर्ट ने विवादित टिप्पणी की थी और कहा था कि लड़कियों को अपनी सेक्स इच्छा पर नियंत्रण रखना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के इस टिप्पणी के आदेश को रद कर दिया था। उस आदेश में हाई कोर्ट ने नाबालिग से दुष्कर्म के जुर्म में पोक्सो कानून में निचली अदालत से अभियुक्त को सुनाई गई 20 साल की कैद की सजा रद कर दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 20 अगस्त 2024 को विस्तृत फैसला दिया था और हाई कोर्ट का सजा रद करने का आदेश खारिज कर दिया था और निचली अदालत का सजा का आदेश बहाल कर दिया था लेकिन सजा निलंबित रखी थी और तीन सदस्यीय विशेषज्ञ कमेटी बनाई थी उससे रिपोर्ट मांगी थी।

कोर्ट ने कमेटी की रिपोर्ट देखने और न्यायमित्र के सुझाव देखने के बाद यह फैसला सुनाया है। कोर्ट ने फैसले में कहा कि कमेटी की रिपोर्ट देखने से पता चलता है कि पीड़िता घटना को गंभीर अपराध नहीं मानती जिसके कारण उसे इतना झेलना पड़ा। ये सब इसलिए हुआ क्योंकि पीड़िता को शुरुआत में जानकारी नहीं दी गई। ये हमारे समाज की, हमारे कानूनी तंत्र की, और उसके परिवार की खामियों को उजागर करता है।

पीड़िता के पुनर्वास का कोर्ट ने दिया आदेश

कोर्ट ने कहा कि मामले को देखने के बाद उन्हें लगता है कि अगर अभियुक्त को जेल भेजा गया तो सबसे ज्यादा पीड़िता ही भुगतेगी। 2018 में जब की यह घटना है उससे अब वह बेहतर स्थिति में है और अपने छोटे से परिवार में आराम से है। वह अभियुक्त के साथ अपनी बेटी पर ध्यान दे रही है और उसे अच्छी शिक्षा देना चाहती है। पीड़िता स्कूल जाने लगी है और आगे पढ़ना चाहती है। कोर्ट ने पीड़िता के पुनर्वास का आदेश देते हुए अभियुक्त की आगे की सजा माफ कर दी। हालांकि कोर्ट ने कहा है कि यह केस भविष्य के लिए नजीर नहीं होगा।

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पटना वालों के लिए अच्छी खबर, दीघा के दूधिया मालदह आम को मिलेगा जीआइ टैग

Dainik Jagran - May 23, 2025 - 10:30pm

नीरज कुमार, पटना। राजधानीवासियों के लिए अच्छी खबर है कि दीघा के दूधिया मालदह आम को जीआइ टैग प्रदान किया जाएगाा। इसके लिए बिहार कृषि विश्वविद्यालय के मीठापुर कृषि अनुसंधान संस्थान के विज्ञानियों ने प्रस्ताव तैयार किया है। दीघा का दूधिया मालदह राजधानी की पहचान रहा है, इसके संरक्षण के लिए भी आवश्यक कदम उठाये जाएंगे। साथ ही इसको बढ़ावा देने के लिए सरकार विशेष योजना तैयार की जा रही है। 

दूधिया मालदह का मीठास अन्य आमों से अलग

मीठापुर कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक डा. शिवनाथ दास का कहना है कि दीघा के दूधिया मालदह आम की मीठास अन्य आमों से एकदम अलग है। यहां की मिट्टी की बनावट भी विशेष प्रकार की है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता है कि जिस मिट्टी पर दूधिया मालदह आम की खेती होती है, वह मिट्टी गंगा एवं सोन के पानी से सिंचित होती रही है। पूर्व में यहां पर गंगा एवं सोन का संगम हुआ करता था। वर्तमान में गंगा एवं सोन का संगम के मनेर के पास है। परंतु पूर्व के वर्षों में वेटेनरी कालेज, दीघा एवं चिड़ियाघर से सोन बहा करता था। 

कुर्जी से लेकर मनेर तक अच्छी मिट्टी

दीघा के दुधिया मालदह आम के लिए कुर्जी मोड़ से लेकर मनेर तक की मिट्टी काफी अच्छी है। वर्तमान में राजधानी में बिहार विद्यापीठ, लोयाला हाईस्कूल, संत माइकल हाईस्कूल, संत जेवियर कालेज, आत्मदर्शन सहित कई संस्थानों में दीघा दूधिया मालदह के आमों के पेड़ मौजूद हैं। मनेर के कई किसानों ने भी मालदह आम के पौधे लगाये हैं। 

1907 के गजेटियर में है दीघा मालदह का वर्णन

1907 में प्रकाशित गजेटियर में दीघा मालदह आम का वर्णन है। इससे पता चलता है कि पटना शहर के आसपास दीघा मालदह आम की खेती होती थी। वर्तमान में पटना जिले में लगभग 190 हेक्टेयर में दुधिया मालदह की खेती की जा रही है। अब तक मीठापुर कृषि अनुसंधान संस्थान की ओर से राजधानी के आसपास 1500 पेड़ों की पहचान की गई है। फिलहाल दीघा के दूधिया मालदह दो हजार मीट्रिक टन उत्पादन हो रहा है।

मीठापुर में होगा पांच हजार मालदह आम के पौधे का वितरण

दीघा के दूधिया मालदह आम को बढ़ावा देने के लिए मीठापुर कृषि अनुसंधान संस्थान की ओर से अगले माह पांच हजार पौधे का वितरण किया जाएगा। इसके अलावा यहां पर गुलाबखास, दशहरी, आम्रपाली सहित अन्य आमों के पौधों का वितरण किसानों के बीच किया जाएगा।

लीची एवं नींबू के पौधे भी मिलेंगे

मीठापुर कृषि अनुसंधान संस्थान में इस वर्ष राजधानीवासियों एवं किसानों को नींबू, अमरूद, लीची एवं कटहल के पौधे मुहैया कराये जाएंगे। संस्थान की ओर से पौधे तैयार कर लिये गए हैं। वर्षा का इंतजार किया जा रहा है। जैसे ही मानसून की वर्षा शुरू होगी पौधे का वितरण प्रारंभ कर दिया जाएगा।

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