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हीटवेव से शहरों में बन रहे हेल्थ इमरजेंसी जैसे हालात, लगातार दो दिन की हीटवेव से 14.7% बढ़ जाती है दैनिक मृत्युदर
नई दिल्ली, विवेक तिवारी। भारत में जलवायु परिवर्तन के चलते गर्मी बढ़ रही है। बढ़ती गर्मी से हीटवेव (लू) के दिनों में भी बढ़ोतरी हुई है। स्थितियां दिन-प्रति दिन गंभीर होती जा रही हैं। आज देश के कई हिस्सों में अत्यधिक गर्मी से लोगों की सेहत, अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे पर गहरा असर पड़ रहा है। हाल ही में प्रकाशित स्वतंत्र शोध संस्था सस्टेनेबल फ्यूचर कोलेबरेटिव की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की 11 फीसदी शहरी आबादी उन शहरों में रहती है, जहां हीटवेव का खतरा सबसे अधिक है। इन इलाकों में आने वाले समय में हेल्थ इमरजेंसी जैसे हालात बन सकते हैं। इसको ध्यान में रखते हुए तत्काल कदम उठाए जाने की जरूरत है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में हीटवेव के खतरे से निपटने के लिए सरकार और स्थानीय प्रशासन कई तरह की योजनाओं पर काम कर रहे हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन की तीव्र गति को देखते हुए, और अधिक ठोस तथा दीर्घकालिक रणनीति की आवश्यकता है। अगर समय रहते सही कदम उठाए गए, तो लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती है।
भारत सहित दुनिया के कई वैज्ञानिकों की ओर से 'भारत में मृत्यु दर पर हीटवेव का प्रभाव' विषय पर देश के 10 बड़े शहरों के डेटा पर अध्ययन किया गया। इन शहरों में दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद, बैंगलुरू, अहमदाबाद, पुणे, वाराणसी, शिमला और कोलकाता शामिल थे। वैज्ञानिकों ने पाया कि किसी शहर में हीटवेव जैसी स्थितियां एक दिन दर्ज होती हैं तो दैनिक मृत्यु दर में 12.2% की वृद्धि होती। यदि हीटवेव की स्थिति लगातार दो दिन बनी रहती है तो दैनिक मृत्यु दर 14.7% तक बढ़ जाती है। तीन दिन लगातार हीटवेव रहने पर ये 17.8% तक बढ़ जाती है। लगातार पांच दिनों तक अत्यधिक गर्मी की स्थिति दर्ज की जाती है तो मृत्यु दर 33.3% तक बढ़ सकती है।
WHO के मुताबिक हीटवेव के चलते हीटस्ट्रोक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। ये एक चिकित्सा आपातकाल जैसी स्थिति है। इसमें मृत्यु दर बहुत अधिक होती है। दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के कारण भीषण गर्मी के चलते होने वाली मौतों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। 2000-2004 और 2017-2021 के बीच 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के लिए गर्मी से संबंधित मृत्यु दर में लगभग 85% की वृद्धि हुई है । WHO के मुताबिक 2000-2019 के बीच हर साल गर्मी से लगभग 489 000 मौतें हुईं हैं, इनमें से 45% एशिया में और 36% यूरोप में दर्ज की गई हैं। अकेले यूरोप में 2022 में, गर्मी से लगभग 61 672 अतिरिक्त मौतें हुईं।
हीटवेव लंबे समय तक अत्यधिक गर्मी की स्थिति को बना कर रखती है। यहां तक कि कम और मध्यम तीव्रता वाली हीटवेव भी कमजोर आबादी के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है। इस रिपोर्ट को तैयार करने में शामिल विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण 21वीं सदी में अत्यधिक गर्मी और गर्म हवाओं की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि जारी रहेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दिनों में दिन के साथ ही रात में भी उच्च तापमान बने रहना एक बड़ी मुश्किल बन रही है। इससे हमारे शरीर पर दबाव बढ़ता है। ऐसे में गर्मी से बीमारी और मौत का खतरा बढ़ जाता है।
हीटवेव है जानलेवा
दिल्ली मेडिकल काउंसिल की साइंफिक कमेटी के चेयरमैन डॉक्टर नरेंद्र सैनी के मुताबिक हीट वेव को हल्के में नहीं लेना चाहिए। इससे आपकी जान भी जा सकती है। हमारे शरीर के ज्यादातर अंग 37 डिग्री सेल्सियस पर बेहतर तरीके से काम करते हैं। जैसे जैसे तापमान बढ़ेगा इनके काम करने की क्षमता प्रभावित होगी। बेहद गर्मी में निकलने से शरीर का तापमान बढ़ जाएगा जिससे ऑर्गन फेल होने लगेंगे। शरीर जलने लगेगा, शरीर का तापमान ज्यादा बढ़ने से दिमाग, दिल सहित अन्य अंगों की काम करने की क्षमता कम हो जाएगी। यदि किसी को गर्मी लग गई है तो उसे तुरंत किसी छाया वाले स्थान पर ले जाएं। उसके पूरे शरीर पर ठंडे पानी का कपड़ा रखें। अगर व्यक्ति होश में है तो उसे पानी में इलेक्ट्रॉल या चीनी और नमक मिला कर दें। अगर आसपास अस्तपाल है तो तुरंत उस व्यक्ति को अस्पताल ले जाएं।
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में रामित देबनाथ और उनके सहयोगियों द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, भारत के कुल हिस्से का 90 फीसदी हीटवेव को लेकर बेहद खतरनाक जोन है। वहीं दिल्ली में रहने वाले सभी लोग हीटवेव के इस डेंजर जोन में रह रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले समय में हीटवेव की वजह से देश में लोगों की कार्यक्षमता 15 फीसदी तक घट सकती है। वहीं 480 मिलियन लोगों के जीवन की गुणवत्ता को कम कर सकती है। वहीं 2050 तक हीटवेव से निपटने के लिए सकल घरेलू उत्पाद का 2.8 प्रतिशत खर्च करना पड़ सकता है।
इंटीग्रेटेड रिसर्च एंड एक्शन फॉर डेवलपमेंट और कनाडा की संस्था इंटरनेशनल डेवलपमेंट रिसर्च सेंटर की ओर से दिल्ली और राजकोट के शहरों के लिए हीटवेव दिनों की संख्या में वृद्धि का विश्लेषण किया है। रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में दिल्ली में 49 दिनों तक हीट वेव दर्ज की गई जो 2019 में बढ़ कर 66 दिनों तक पहुंच गई जो एक साल में लगभग 35% की वृद्धि को दर्शाता है। वहीं 2001 से 2010 के आंकड़ों पर नजर डालें तो हीट वेव के दिनों में 51% की वृद्धि दर्ज हुई। वहीं राजकोट की बात करें तो 2001-10 के बीच कुल 39 दिन हीट वेव दर्ज की गई। वहीं ये संख्या 2011 से 21 के बीच बढ़ कर 66 दिनों तक पहुंच गई।
मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक आने वाले अगले पांच सालों में हालात और भी मुश्किल होने की आशंका है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक 80 प्रतिशत संभावना है कि अगले पांच वर्षों में से किसी एक साल औद्योगिक युग की शुरुआत की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा तापमान दर्ज किया जाएगा। वहीं नासा की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक इस साल मई महीने में गर्मी ने पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए। ये अब तक का सबसे गर्म मई का महीना रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक 1.5°C से अधिक तापमान बढ़ने से जलवायु परिवर्तन के कहीं अधिक गंभीर प्रभाव और एक्स्ट्रीम वेदर इवेंट्स जोखिम पैदा होंगे। तापमान में एक डिग्री की बढ़ोतरी से भी मौसम में बड़े बदलाव देखे जा सकते हैं। गौरतलब है कि पेरिस समझौते के तहत, देशों ने दीर्घकालिक वैश्विक औसत सतही तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2°C से नीचे रखने और इस सदी के अंत तक इसे 1.5°C तक सीमित रखने के प्रयासों पर सहमति जताई है।
डब्ल्यूएमओ की इस रिपोर्ट के मुताबिक 2024 और 2028 के बीच हर साल के लिए वैश्विक औसत सतही तापमान 1850-1900 की आधार रेखा से 1.1 डिग्री सेल्सियस और 1.9 डिग्री सेल्सियस तक अधिक होने का अनुमान है। यूनाइटेड नेशन इनवायरमेंट प्रोग्राम के पूर्व निदेशक राजेंद्र माधवराव शेंडे कहते हैं नासा की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि अप्रैल 2023 से मई 2024 के बीच हर महीने औसत अधिकतम तापमान सामान्य से ज्यादा बना रहा। वहीं इस साल मई का महीने अब तक के सबसे गर्म महीने के तौर पर दर्ज किया गया है। ये रिपोट्स बताती हैं कि आने वाले दिनों में हमें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। बाढ़, सूखा, पीने के पानी की किल्लत, चक्रवात और हीटवेव जैसी घटनाओं की संख्या में बढ़ोतरी देखी जा सकती है। ग्लेशियर के तेजी से गलने से एक तरफ जहां बाढ़ जैसी स्थितियां बनेंगी वहीं समुद्र के स्तर में भी वृद्धि देखी जाएगी। इन सब हालातों के बीच सबसे बड़ी चुनौती खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना होगा। क्योंकि मौसम में बदलाव से फसल चक्र पर भी असर होगा। वहीं अचानक तेज बारिश जा सूखे जैसे हालात से भी फसलों को नुकसान होने की संभावना बढ़ेगी।
बढ़ती गर्मी साफ संकेत दे रही है कि आने वाले दिनों में हमारे लिए मुश्किल बढ़ेगी। इन हालातों को देखते हुए हमें अभी से तैयारियां तेज करनी होंगी हमें फसलों के ऐसे बीज तैयार करने होंगे जो गर्मी को बर्दाश्त कर सकें। वहीं हमें ऐसी फसलें विकसित करनी होंगी जो बेहद कम पानी में बेहतर उत्पादन कर सकें। वहीं हमें विकास के मॉडल भी पर्यावरण को ध्यान में रख कर बनाने होंगे। हमें इस तरह के घर बनाने होंगे जिनमें कम गर्मी हो, हमें हरियाली को बढ़ाना होगा, ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर भी लगाम लगाने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे।
एनआरडीसी इंडिया के लीड, क्लाइमेट रेजिलिएंस एंड हेल्थ अभियंत तिवारी कहते हैं कि डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट से साफ हो जाता है कि आने वाले सालों में मुश्किल काफी बढ़ने वाली है। क्लाइमेट चेंज के चलते गर्मी के साथ ही आर्द्रता का स्तर भी बढ़ रहा है। इसके चलते हीट स्ट्रेस की स्थिति तेजी से बढ़ी है। सामान्य तौर पर 35 डिग्री से ज्यादा तापमान और हवा में उच्च आर्द्रता होने पर लोगों को सामान्य से ज्यादा गर्मी महसूस होती है। ऐसी स्थिति में हीट स्ट्रेस की स्थिति बनती है। बढ़ती हीटवेव जैसी स्थिति को ध्यान में रखते हुए सरकार की ओर से अर्ली वॉर्निंग सिस्टम भी तैयार किया गया है। जिसके आधार पर सरकार उचित कदम उठाने के लिए अलर्ट जारी करती है। हमें सुनिश्चित करना होगा कि ये सूचनाएं समय रहने सभी जिम्मेदार व्यक्ति तक पहुंच सकें और वो उचित कदम उठाएं। वहीं दूसरी सबसे बड़ी चिंता क्लाइमेट चेंज के चलते तापमान में आ रहे बदलाव के चलते बढ़ता बीमारियों का खतरा है। उदाहरण के तौर पर पहाड़ों के ठंडे मौसम के चलते वहां पहले मच्छरों से फैलने वाली बीमारियां नहीं होती थीं। लेकिन वहां जलवायु परितर्वन के चलते तापमान बढ़ा और अब ये स्थिति हो रही है कि मच्छरों को पनपने के लिए वहां बेहतर पर्यावरण मिल रहा है। इससे वहां मच्छरों से होने वाली बीमारियां बढ़ी हैं। इस तरह की मुश्किलों को देखते हुए हमें अपने हेल्थ केयर सिस्टम को भी और मजबूत करना होगा। हमें कुछ ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि आपात स्थिति में तत्काल राहत पहुंचाने के लिए कदम उठाए जा सकें।
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आज कर्नाटक क्यों है बंद? क्या खुला रहेगा और किन-किन चीजों पर पड़ेगा असर; जानें पूरी डिटेल
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। 22 मार्च शनिवार को कर्नाटक बंद का एलान किया गया है। यह बंद कुछ कन्नड़ संगठनों द्वारा बुलाया गया है। 'ग्रेटर बेंगलुरु गवर्नेंस बिल' के विरोध में बंद बुलाया गया है।
साथ ही, बेलगावी में हुई एक घटना के खिलाफ भी कुछ कन्नड़ संगठन प्रदर्शन कर रहे हैं। बता दें, बेलगावी में कर्नाटक स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन के एक बस कंडक्टर पर हमला किया गया था, क्योंकि उसने मराठी में बात नहीं की थी।
बंद की वजह से स्कूली बच्चे परेशान
इस बंद की वजह से स्कूल जाने वाले बच्चों के पैरेंट्स, स्टूडेंट्स और टीचर्स सब परेशान हैं। लोगों में इस बात को लेकर कन्फ्यूजन है कि बंद की वजह से स्कूल खुले रहेंगे या बंद। अभी स्कूलों में एग्जाम का समय चल रहा है और सेकेंडरी लीविंग सर्टिफिकेट (SSLC) के एग्जाम 21 मार्च से ही शुरू हुए हैं, लेकिन शनिवार को कोई एग्जाम नहीं है।
हालांकि, कुछ स्कूलों में छोटी क्लास के एग्जाम हैं। 'एसोसिएटेड मैनेजमेंट ऑफ प्राइवेट अनएडेड स्कूल्स इन कर्नाटक' ने ये साफ कर दिया है कि परीक्षा तय समय पर ही होगी। संस्था ने कहा कि एग्जाम आगे बढ़ाने या रद करने से छात्रों पर असर पड़ सकता है और उनका शेड्यूल बिगड़ सकता है।
कुछ संगठनों ने दिया नैतिक समर्थन
डी शशि कुमार ने बताया कि हम बंद में हिस्सा लेना चाहते हैं। लेकिन परीक्षा की वजह से हम सिर्फ नैतिक समर्थन दे सकते हैं। एग्जाम रद कराने या आगे बढ़ाने से बच्चों को परेशानी होगी और हम ऐसा नहीं चाहते हैं।
बेंगलुरु में ट्रांसपोर्ट रहेंगे बंद
कर्नाटक बंद के कारण ट्रांसपोर्ट की समस्या उत्पन्न हो सकती है। ओला उबर ड्राइवर्स एंड ओनर्स एसोसिएषन ने बंद को पूरा समर्थन देने की घोषणा की है। इसका मतलब है कि बंद के दिन कैब नहीं चलेंगी। इसके साथ ही, बेंगलुरु के करीब 2 लाख ऑटो रिक्शा भी नहीं चलेंगे।
KSRTC की बसें चलेंगी या नहीं?
कर्नाटक स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (KSRTC) ने अभी तक यह साफ नहीं किया है कि बसें चलेंगी या नहीं। लेकिन अगर ट्रांसपोर्ट कम होगा, तो स्टूडेंट्स के लिए स्कूल पहुंचना मुश्किल हो सकता है।
एक तरफ फंड की कमी से जूझ रहा 'कर्नाटक', दूसरी ओर सरकार ने मंत्रियों-विधायकों का वेतन किया दोगुना
Bihar Weather: बिहार में मौसम के यूटर्न से बढ़ी मुश्किल, तेज हवाओं के साथ गिरेंगे ओले; अलर्ट जारी
जागरण संवाददाता, पटना। Bihar Weather Today: बिहार के मौसम में लगातार बदलाव जारी है। मौसम विभाग ने आज भी प्रदेश के अधिसंख्य भागों में गरज-तड़क के साथ बूंदाबांदी व झोंके के साथ तेज हवा चलेगी। कुछ जिलों में ओले गिरने की भी संभावना है, जिसे देखते हुए मौसम विभाग ने ऑरेंज अलर्ट जारी किया है। तीन दिनों के दौरान अधिकतम तापमान में विशेष परिवर्तन की संभावना नहीं है।
इन इलाकों में ओले गिरने के आसारखगड़िया, मुंगेर, जमुई, बांका और भागलपुर में ओले गिरने की संभावना है, जिसे देखते हुए मौसम विभाग ने ऑरेंज अलर्ट जारी किया है।
प्रमुख शहरों के मौसम का हाल शहर अधिकतम (तापमान डिग्री सेल्सियस में)न्यूनतम (तापमान डिग्री सेल्सियस में) पटना 30 21 मुजफ्फरपुर 31 20 भागलपुर 30 21 नवादा : मौसम के बदले मिजाज ने कराया ठंड का अहसास
प्रखंड के विभिन्न इलाकों में इन दिनों मौसम में अचानक गिरावट आ गई है, बूंदाबांदी की वजह से मौसम में बदलाव देखने को मिल रहा है। शुकवार की सुबह में भी हल्की बूंदाबांदी हुई है। हल्की वर्षा के साथ ठंडक ने अपनी उपस्थिति दर्ज कर दी है।
हल्की बारिश के साथ तापमान में भी लगातार उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है। सुबह में हल्की बूंदाबांदी भी हुई और चारों तरफ कोहरा नजर आ रहा था। हालत यह रहे कि सुबह में दस बजे तक धूप भी नहीं निकली। फिलहाल आकाश में काले बादल छाए हुए हैं।
किसानों की बढ़ी चिंताकिसानों के अनुसार बूंदाबांदी से आम के मंजर को अधिक नुकसान हुआ है। किसान शांति भूषण कुमार, दूधनाथ महतो, सुरेश राजबंशी समेत अन्य कहते हैं कि आसमान साफ होते ही ठंड बढ़ने की संभावना है।
वहीं अगर मौसम का मिजाज बदला और वर्षा हुई तो रबी फसल को क्षति होगी। बूंदाबांदी होने से सब्जी मंडी जाने वाले मार्ग व मुख्य सड़क में कीचड़ हो गया है।
मौसम में बदलाव के बीच विभागों को किया गया अलर्टमौसम में जारी बदलाव के बीच अगले 2-3 दिनों के बाद तापमान में इजाफा होगा। गर्मी के मौसम को देखते हुए जिलाधिकारी डॉ. चंद्रशेखर सिंह ने विभिन्न विभागों को भीषण गर्मी एवं लू से बचाने के लिए कारगर उपाय करने का आदेश दिया है। मानक संचालन प्रक्रिया के तहत उन्हें जरूरी व्यवस्था करनी है।
स्वास्थ्य, शिक्षा, पीएचईडी, फायर, समाज कल्याण, पशु एवं मत्स्य संसाधन, ग्रामीण विकास समेत अन्य विभागों के लिए जारी आदेश में पेयजल के इंतजाम पर जिलाधिकारी ने विशेष ध्यान देने को कहा है। इसके अलावा मजदूरों की कार्य अवधि भी बदली जा सकती है।
शहरी क्षेत्र में सार्वजनिक स्थानों पर प्याऊ की व्यवस्था, खराब चापाकलों की युद्धस्तर पर मरम्मत, आश्रय स्थलों एवं स्लम के लोगों के लिए इमरजेंसी दवाओं के इंतजाम का निर्देश दिया गया है।
अस्पतालों में पर्याप्त मात्रा में ओआरएस, आइवी फ्लूड, जीवनरक्षक दवाओं के साथ एंबुलेंस एवं आइसोलेशन वार्ड की व्यवस्था करने को कहा गया है।
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