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क्या राष्ट्रपति या राज्यपाल के लिए सुप्रीम कोर्ट कोई समय-सीमा तय कर सकता है; क्या कहता है संविधान?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। विधानसभा से पारित विधेयकों को लेकर राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर केंद्र सरकार के बाद अब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने भी सवाल किए हैं। राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट को 14 सवाल भेजकर राय मांगी है। हालांकि, राष्ट्रपति ने जिन सवालों पर राय मांगी है, उनमें सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र नहीं किया है, लेकिन सभी सवाल फैसले के इर्द गिर्द ही हैं।
दरअसल, यह पूरा मामला तमिलनाडु से जुड़ा हुआ है। वहां के राज्यपाल आर एन कवि के खिलाफ तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करके हस्तक्षेप की मांग की थी। याचिका में राज्य सरकार ने राज्यपाल पर जरूरी विधेयकों को लटकाने का आरोप लगाया था।
मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस जेबी पार्दीवाला और आर महादेवन की पीठ ने राज्यपाल द्वारा विधेयकों को लंबे समय तक रोके जाने के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुना दिया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा राज्य के विधेयकों पर मंजूरी देने/अस्वीकृति करने/पुनर्विचार के लिए भेजने की समय सीमा भी तय कर दी।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर जल्दी ही बहस छिड़ गई। कानूनी के जानकारों ने कहा कि जब संविधान में राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय नहीं है तो क्या सुप्रीम कोर्ट न्यायिक आदेश के जरिये समय सीमा तय कैसे कर सकता है। अब इसी पर राष्ट्रपति ने सवाल भेजकर राय मांगी है।
आइए आपको बताते हैं कि आखिर यह पूरा मामला क्या है, सुप्रीम कोर्ट का वो कौन-सा फैसला है, जिस पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने सुप्रीम कोर्ट 14 सवाल क्यों पूछे हैं, कौन-से 14 सवाल पूछे हैं और क्या राष्ट्रपति की ओर से सवालों पर मांगी गई राय देने के लिए सुप्रीम कोर्ट बाध्य है?
राष्ट्रपति किन 14 सवालों पर मांगी है SC से राय?- जब राज्यपाल के पास अनुच्छेद 200 के तहत कोई विधेयक आता है तो उनके पास क्या-क्या संवैधानिक विकल्प होते हैं?
- क्या राज्यपाल विधेयक पर संविधान के तहत मिले विकल्पों का उपयोग करते समय कैबिनेट द्वारा दी गई सलाह और मदद के लिए बाध्य हैं?
- क्या राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत संवैधानिक विवेक का प्रयोग न्यायोचित है?
- क्या अनुच्छेद 361 राज्यपाल के फैसलों पर न्यायिक समीक्षा पर पूरी तरह पाबंदी लगा सकता है?
- जब संविधान में राज्यपाल लिए अनुच्छेद 200 की शक्तियों के इस्तेमाल को लेकर समय सीमा और तरीके तय नहीं है तो क्या कोर्ट इसे तय कर सकता है?
- क्या राष्ट्रपति के फैसले को अदालत में चुनौती दी जा सकती है?
- जब संविधान में राष्ट्रपति के लिए अनुच्छेद 201 में कार्य करने के लिए प्रक्रिया और समय सीमा तय नहीं है तो क्या अदालत समय सीमा तय कर सकती है?
- क्या राष्ट्रपति को संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से राय लेना अनिवार्य है?
- क्या राष्ट्रपति और राज्यपाल के फैसलों पर कानून लागू होने से पहले अदालत सुनवाई कर सकती है?
- क्या सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 का प्रयोग कर राष्ट्रपति या राज्यपाल के फैसले को बदल सकता है?
- क्या राज्य विधानसभा में पारित कानून, अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की स्वीकृति के बिना लागू किया जा सकता है?
- क्या संविधान की व्याख्या से जुड़े मामलों को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच को भेजना अनिवार्य है?
- क्या सुप्रीम कोर्ट ऐसे निर्देश /आदेश दे सकता है, जो संविधान या वर्तमान कानून से मेल न खाता हो?
- क्या केंद्र और राज्य सरकार के बीच विवाद सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही सुलझा सकता है?
राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु। फाइल फोटो
क्या राष्ट्रपति राय मांग सकती हैं?हां, संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत किसी तथ्य या कानूनी मामले पर राष्ट्रपति लोकहित में सुप्रीम कोर्ट की राय ले सकते हैं। इसके अलावा, केंद्र सरकार और राज्य सरकारों से जुड़े विवादों की सुनवाई के लिए अनुच्छेद 131 में सुप्रीम कोर्ट के पास मूल क्षेत्राधिकार है। इन मामलों में भी अनुच्छेद 143 (2) के तहत सुप्रीम कोर्ट की राय ली जा सकती है।
क्या सुप्रीम कोर्ट सलाह देने के लिए बाध्य है?नहीं, राष्ट्रपति द्वारा 14 सवाल भेजकर मांगी गई राय देने के लिए सुप्रीम कोर्ट बाध्य नहीं है। यह पहली बार नहीं है, इससे पहले भी कई दफा सुप्रीम कोर्ट से राग मांगी गई।
- राम मंदिर विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर विवाद पर नरसिम्हा राव सरकार के संदर्भ कहा था- ऐतिहासिक और पौराणिक तथ्यों के मसलों में राय देना अनुच्छेद 143 के दायरे में नहीं आता है।
- कावेरी जल विवाद: साल 1993 में कावेरी जल विवाद पर भी सुप्रीम कोर्ट ने राय देने से इनकार कर दिया था।
- गुजरात चुनाव: साल 2002 में गुजरात चुनावों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था' अपील या पुनर्विचार याचिका की बजाय रेफरेंस भेजने का विकल्प गलत है।
संविधान के प्रावधान और पिछले कई फैसलों से यह स्पष्ट है कि अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट की राय मानना राष्ट्रपति और केंद्र सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं है।
क्या राष्ट्रपति के पास राय मांगने का अधिकार है?हां, संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत किसी तथ्य या कानूनी मामले पर राष्ट्रपति लोकहित में सुप्रीम कोर्ट की राय ले सकते हैं। इसके अलावा, केंद्र सरकार और राज्य सरकारों से जुड़े विवादों की सुनवाई के लिए अनुच्छेद 131 में सुप्रीम कोर्ट के पास मूल क्षेत्राधिकार है। इन मामलों में भी अनुच्छेद 143 (2) के तहत सुप्रीम कोर्ट की राय ली जा सकती है।
क्या सुप्रीम कोर्ट सलाह देने के लिए बाध्य है?नहीं, राष्ट्रपति द्वारा 14 सवाल भेजकर मांगी गई राय देने के लिए सुप्रीम कोर्ट बाध्य नहीं है। यह पहली बार नहीं है, इससे पहले भी कई दफा सुप्रीम कोर्ट से राग मांगी गई।
- राम मंदिर विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर विवाद पर नरसिम्हा राव सरकार के संदर्भ कहा था- ऐतिहासिक और पौराणिक तथ्यों के मसलों में राय देना अनुच्छेद 143 के दायरे में नहीं आता है।
- कावेरी जल विवाद: साल 1993 में कावेरी जल विवाद पर भी सुप्रीम कोर्ट ने राय देने से इनकार कर दिया था।
- गुजरात चुनाव: साल 2002 में गुजरात चुनावों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था' अपील या पुनर्विचार याचिका की बजाय रेफरेंस भेजने का विकल्प गलत है।
संविधान के प्रावधान और पिछले कई फैसलों से यह स्पष्ट है कि अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट की राय मानना राष्ट्रपति और केंद्र सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं है।
आखिर सुप्रीम कोर्ट ने क्यों तय की समय सीमा?सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि इस मामले की शुरुआत कहां से हुई। दरअसल, तमिलनाडु सरकार ने साल 2023 सुप्रीम कोर्ट में एक मामला उठाया गया था, जिसमें कहा गया था कि 2020 के एक विधेयक समेत 12 विधेयक राज्यपाल के पास लंबित हैं।
- तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने 10 अहम विधेयकों को लंबे समय तक मंजूरी नहीं दी, ना विधेयकों को खारिज किया और न ही राष्ट्रपति को भेजे।
- राज्य सरकार ने 18 नवंबर, 2023 को अनुच्छेद 200 के तहत उन विधेयकों को दोबारा विधानसभा में पारित कराया। फिर राज्यपाल के पास भेजे।
- राज्यपाल ने 28 नवंबर, 2023 को उन विधेयकों को अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति के पास विचारार्थ भेज दिया।
- इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठाए और कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग की। कहा, ‘राज्यपाल संवैधानिक कर्तव्यों का पालन नहीं कर रहे हैं। विधायी प्रक्रिया में जानबूझकर बाधा डाल रहे हैं।’
सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के अधिकार का प्रयोग करते हुए इस पर फैसला दिया था- ''राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के पास विचारार्थ भेजे गए विधेयकों पर राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला लेना होगा। अगर राष्ट्रपति की ओर से तय समय (तीन माह) में फैसला नहीं लिया गया तो इसका कारण रिकॉर्ड किया जाएगा और संबंधित राज्य सरकार को इस बारे में सूचित किया जाएगा।''
सुप्रीम कोर्ट फाइल फोटो।
अनुच्छेद 200 और 201 में क्या प्रावधान हैं?अनुच्छेद 200: राज्यपाल को मिलते हैं 4 विकल्पविधेयक विधानसभा से पारित होने के बाद राज्यपाल के पास भेजा जाता है तो राज्यपाल के पास चार विकल्प (मंजूरी देना, स्वीकृति देना, पुनर्विचार के लिए विधानसभा भेजना और राष्ट्रपति के पास विचारार्थ के लिए भेजना) होते हैं।
अनुच्छेद 201: राज्यपाल के पास होते हैं दो विकल्पअगर राज्यपाल ने कोई विधेयक पुनर्विचार के लिए लौटा दिया है और विधानसभा में वो दोबारा पारित हो जाता है तो राज्यपाल को मंजूरी देनी होती है, उसे रोका नहीं जा सकता है।
इसके अलावा, राज्यपाल अनुच्छेद 201 के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ भेज सकते हैं। इसके बाद राष्ट्रपति के पास तीन विकल्प (मंजूरी देना, अस्वीकृति देना और विधानसभा को पुनर्विचार के लिए लौटाना) होते हैं।
अगर राष्ट्रपति विधेयक विधानसभा को पुनर्विचार के लिए लौटाने का विकल्प चुनते हैं और विधानसभा में दोबारा पारित हो जाता है, तब भी अंतिम निर्णय लेने का अधिकार राष्ट्रपति के पास ही होता है।
बता दें कि अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति के पास असीमित समय होता है। इसके चलते कुछ विधेयक सालों तक लंबित रह सकते हैं, जिससे राज्य की विधायी प्रक्रिया बाधित होती है।
सुप्रीम कोर्ट ने किस अधिकार के तहत बनाया नियम?भारतीय संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को एक विशेषाधिकार देता है, जिससे वह विशेष मामलों में कानून की सीमा से परे जाकर पूर्ण न्याय कर सके।
अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट कोई भी आदेश अथवा निर्देश दे सकता है। इस आदेश/निर्देश को लागू करने के लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकारें और अन्य अधिकारी सभी जरूरी कदम उठाने के लिए बाध्य होते हैं।
सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत मिले विशेषाधिकार का इस्तेमाल तब करता है, जब सामान्य कानून से न्याय नहीं मिल पा रहा हो या फिर कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा हो। तब कोर्ट अपना फैसला इस तरह देते है कि किसी भी पक्ष के साथ अन्याय न हो।
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राष्ट्रपति ने संविधान पर अतिक्रमण करार दियाराष्ट्रपति मुर्मु ने सुप्रीम कोर्ट के राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए तीन महीने की समय सीमा तय करने के फैसले को संवैधानिक मूल्यों और व्यवस्थाओं के विपरीत करार दिया है। मुर्मु ने इस फैसले को संवैधानिक सीमाओं का अतिक्रमण भी बताया है। इसके बाद राष्ट्रपति मुर्मु ने अनुच्छेद 143 (1) के तहत 14 सवालों पर सुप्रीम कोर्ट की राय मांगी है।
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क्या पहले भी इस तरह का मामला हुआ?हां, इससे पहले भी अनुच्छेद 143 के तहत राय लेने के मामले आ चुके हैं।
- सबसे पहला मामला दिल्ली लॉज एक्ट-1951 में आया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राय दी थी।
- इसके बाद केरल शैक्षणिक बिल 1957 पर सर्वोच्च न्यायालय न सिर्फ रेफरेंस की व्याख्या की थी, बल्कि राय भी दी थी।
- 2006 इंदौर नगर निगम मामले में तीन जजों की बेंच ने फैसला दिया था- नीतिगत मामलों में संसद और केंद्र के निर्णयों पर न्यायिक दखल नहीं होना चाहिए।
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'आतंकवाद पर फंड का इस्तेमाल करेगा पाकिस्तान', राजनाथ सिंह बोले; फिर से विचार करे IMF
पीटीआई, नई दिल्ली। शुक्रवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह गुजरात के भुज एअरबेस पहुंचे। यहां पर उन्होंने जवानों से मुलाकात की। इसके बाद उन्होंने राष्ट्र को भी संबोधित किया। अपने संबोधन के दौरान राजनाथ सिंह ने भारतीय सेना के जवानों की सराहना की।
अपने संबोधन के दौरान रक्षा मंत्री ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से पाकिस्तान को दिए जाने वाले पैसे पर फिर से विचार करने की अपील की। उन्होंने इस दौरान कहा कि पाकिस्तान आईएमएफ से मिले पैसों को अपने देश में आतंकवादी बुनियादी ढांचे पर खर्च करेगा।
पाकिस्तान को IMF ने दिया है भारी कर्जजानकारी दें कि हाल के दिनों में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने पाकिस्तान को एक अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का लोन मंजूर किया है। आज भुज एअरफोर्स स्टेशन पर जवानो को संबोधित करते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि मेरा मानना है कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से प्राप्त धन का बड़ा हिस्सा अपने देश में आतंकवादी ढांचे पर खर्च करेगा, भारत चाहता है कि आईएमएफ पाकिस्तान को दिए जाने वाले धन पर पुनर्विचार करे।
राजनाथ सिंह ने की जवानों की सराहनाजवानों की सराहना करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि आपने जो पराक्रम दिखाया, उसकी चर्चा पूरी दुनिया में हो रही है। आज भारत को वैश्विक मंच पर, जो सम्मान मिल रहा है, उसकी बुनियाद में आपका यही पराक्रम है। यही कारण है कि भारत का बच्चा-बच्चा आपको, अपना मानता है।
आगे उन्होंने कहा कि आपने पूरे देश को यकीन दिलाया कि नया भारत अब सहन नहीं करता, बल्कि वह पलटकर जवाब देता है। मैं चाहे जितना कुछ भी बोलूं, लेकिन मेरे शब्द आपके कार्यों को मापने में असमर्थ होंगे।
भारत की युद्ध नीति और तकनीक बदल गई है: राजनाथ सिंहअपने संबोधन में राजनाथ सिंह ने कहा कि पूरी दुनिया ने देखा है कि कैसे आपने नौ आतंकवादी शिविरों को नष्ट कर दिया। बाद में की गई कार्रवाई में उनके कई हवाई ठिकाने नष्ट कर दिए गए। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय वायुसेना ने न केवल अपनी ताकत दिखाई, बल्कि दुनिया को यह भी साबित कर दिया कि अब भारत की युद्ध नीति और तकनीक बदल गई है।
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Weather Update: दिल्ली-यूपी समेत इन राज्यों में गर्मी से राहत, तेज आंधी के साथ गिरी बारिश की बूंदें
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दिल्ली एनसीआर में शुक्रवार शाम को अचानक मौसम में बदलाव देखने को मिला है। इस समय आसमान में काले बादल छाए हैं और तेज बारिश हो रही है। इसके साथ ही तेज हवाएं चल रही हैं। मौसम विभाग ने कुछ देर पहले बताया था कि दिल्ली समेत कई राज्यों में मौसम बदलेगा और हल्की बारिश हो सकती है।
दिल्ली में बदला मौसम का मिजाजदिल्ली एनसीआर में शुक्रवार शाम अचानक मौसम बदल गया है। आसमान में काले बादल छाए हैं और दिल्ली के कई हिस्सों में झमाझम बारिश हो रही है। वहीं, इसके साथ तेज हवाएं भी चल रही हैं। अचानक मौसम बदलने के कारण लोगों को गर्मी से राहत मिली है।
VIDEO | Rain lashes parts of Delhi-NCR. Visuals from Sansad Marg.
(Full video available on PTI Videos - https://t.co/n147TvqRQz) pic.twitter.com/dxuRgB7fO9
बता दें कि राजधानी दिल्ली समेत आसपास के क्षेत्रों में आज तापमान में काफी बढ़ोतरी देखने को मिली। सुबह से ही खिली तीखी धूप के कारण लोगों को भीषण गर्मी का सामना करना पड़ा है।
VIDEO | Rainfall lashes parts of Delhi-NCR. Visuals from North Block.
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जानिए पिछले 24 घंटों के मौसम का हालगत 24 घंटों के मौसम की बात करें तो छत्तीसगढ़, सौराष्ट्र और कच्छ, झारखंड, मध्य प्रदेश में अलग-अलग स्थानों पर 60-80 किमी प्रति घंटे की गति से तूफानी हवाएं चलीं। इसके अलावा महाराष्ट्र, मराठवाड़ा, पश्चिम बंगाल के गंगा के मैदानी इलाकों में तूफानी हवाएं चलीं। कुछ जगहों पर बूंदाबादी भी देखने को मिली।
मौसम विभाग ने बताया कि अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, उप-हिमालयी पश्चिम बंगाल, पश्चिमी मध्य प्रदेश, कोंकण समेत अन्य तटीय इलाकों में भारी बारिश देखने को मिली। वहीं, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल के गंगा के मैदानी इलाकों, झारखंड और पश्चिमी मध्य प्रदेश में अलग-अलग स्थानों पर ओलावृष्टि देखने को मिली।
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इन राज्यों में लू की चेतावनीभारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, 16 और 17 मई को दक्षिण-पश्चिम उत्तर प्रदेश, 16 से 22 मई तक पश्चिमी राजस्थान, 18 और 19 मई को उत्तरी मध्य प्रदेश में लू चलने की संभावना है। इसके अलावा 16 और 17 मई को बिहार और ओडिशा में गर्म और आर्द्र मौसम रहने की संभावना है।
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हरे कृष्ण मंदिर पर बेंगलुरु की इस्कॉन सोसाइटी को मिला अधिकार, सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला
आईएएनएस, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने स्वामी प्रभुपाद जी की संस्था इस्कॉन के आपसी संपत्ति विवाद का पटाक्षेप करते हुए यह स्पष्ट किया कि बेंगलुरु का इस्कॉन मंदिर असल में इस्कॉन सोसाइटी मुंबई का नहीं है, बल्कि यह इस्कॉन सोसाइटी बेंगलुरु का है, जो कर्नाटक समाज अधिनियम के तहत पंजीकृत है।
जस्टिस अभय एस. ओका और ए.जी. मसीह की खंडपीठ ने शुक्रवार को कर्नाटक हाई कोर्ट के पहले के निर्णय को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि बेंगलुरु का इस्कॉन मंदिर, असल में इस्कान सोसाइटी मुंबई नामक संस्था का है।
शीर्ष अदालत में लगाई थी याचिकाइस्कॉन, बेंगलुरु ने 2 जून, 2011 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें हाई कोर्ट के 23 मई, 2011 के निर्णय को चुनौती दी गई थी। याचिका में इस्कॉन, बेंगलुरु के पदाधिकारी कोडंडरामा दास ने हाई कोर्ट के उस निर्णय का विरोध किया, जिसने बेंगलुरु की एक स्थानीय अदालत के 2009 के आदेश को पलट दिया था।
स्थानीय अदालत ने पहले इस्कॉन, बेंगलुरु के पक्ष में निर्णय दिया था। इसमें इसके कानूनी अधिकार को मान्यता दी गई थी और इस्कॉन, मुंबई के खिलाफ स्थायी निषेधाज्ञा जारी की गई थी।
स्थानीय अदालत ने सुनाया था फैसला- स्थानीय अदालत ने यह घोषित किया था कि इस्कॉन सोसाइटी बेंगलुरु, जो जुलाई 1978 में कर्नाटक समाज पंजीकरण अधिनियम के तहत पंजीकृत है, हरे कृष्ण हिल्स स्थित मंदिर संपत्ति का पूर्ण मालिक है और इस्कॉन सोसाइटी मुंबई को इसके मामलों में हस्तक्षेप करने से रोका गया था।
- इस्कॉन सोसाइटी बेंगलुरु ने यह घोषणा करने की मांग की थी कि इस्कॉन सोसाइटी मुंबई के पास उसके पदाधिकारियों को हटाने या उसकी संपत्तियों या प्रशासन पर नियंत्रण करने का कोई अधिकार नहीं है। दूसरी ओर, इस्कॉन सोसाइटी मुंबई का कहना था कि बेंगलुरु केंद्र ने कभी भी स्वतंत्र कानूनी इकाई के रूप में कार्य नहीं किया और इस्कॉन बेंगलुरु के नाम पर या उसकी अधिग्रहित सभी संपत्तियां वास्तव में इस्कान सोसाइटी मुंबई की हैं।
- कर्नाटक हाई कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि बेंगलुरु के हरे कृष्ण हिल्स मंदिर परिसर का स्वामित्व व अधिकार इस्कान सोसाइटी मुंबई के पास है, और इसने स्थानीय अदालत द्वारा पारित निर्णय को पलट दिया।
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भारत का स्वदेशी 'आयरन डोम', जिसने पाक के हर ड्रोन का किया काम तमाम; जानिए क्यों खास है 'आकाशतीर'
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय सेना के ऑपरेशन सिंदूर की गूंज दुनियाभर में सुनाई दे रही है। पाक के आतंकी अड्डों पर इस हमले के बाद भारत-पाक में संघर्ष तक छिड़ गया। हालांकि, यहां भी पाक सेना को मुंह की खानी पड़ी। उनके ड्रोन हमारे 'आकाशतीर' के सामने कहीं नहीं टिक पाए।
इस आकाशतीर को स्वदेशी 'आयरन डोम' भी कहा जाता है। पाकिस्तान की सीमा से आए हर ड्रोन को पूरी तरह फेल करने का काम भी इसी आकाशतीर ने किया था।
जब पाकिस्तान की सेना ने ड्रोन और मिसाइल से हमला बोला तो उसे भारत की 'आकाशतीर' जैसी स्वदेशी अभेद्य आत्मरक्षा दीवार का सामना करना पड़ा। जिसके सामने उसके ड्रोन फुस साबित हुए। आइए, जानते हैं आखिर आकाशतीर क्या है और ये क्यों खास है...
पीएम मोदी ने भी जिसकी तारीफ की- 13 मई को पीएम मोदी पंजाब के आदमपुर एअरबेस पर गए और उन्होंने सैनिकों से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने कहा कि पाक ने हमारे एअरबेस, स्कूल और अस्पतालों को निशाना बनाने की कोशिश की, लेकिन सब हमारे एअर डिफेंस सिस्टम के आगे फेल रहे।
- पीएम मोदी ने जिस एअर डिफेंस सिस्टम की बात की वो और कोई नहीं, बल्की भारत का स्वदेशी आकाशतीर कमांड एंड कंट्रोल डिफेंस सिस्टम है।
आकाशतीर एक स्वदेशी निर्मित कमांड एंड कंट्रोल डिफेंस सिस्टम है। इसे डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO), भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) और इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) ने मिलकर बनाया है।
इसका मुख्य काम जमीन के आसपास के क्षेत्र में एअर डिफेंस करना है। इसी के साथ ये ग्राउंड पर लगे डिफेंस वेपन को भी कंट्रोल करता है। ये रडार, सेंसर और कम्युनिकेशन सिस्टम को इंटिग्रेट करके काम करता है।
कैसे काम करता है आकाशतीर?- आकाशतीर ने सभी पाकिस्तानी ड्रोन, मिसाइलों, माइक्रो यूएवी (मानव रहित हवाई वाहन) को नष्ट कर दिया था। दरअसल, आकाशतीर कई फीड से डेटा इकट्ठा करता है और मौसम, इलाके और रडार इंटरसेप्टर से रियल टाइम डेटा लेता है। ये दुश्मन की ओर से आ रहे किसी भी खतरे की एक दम साफ इमेज प्रोवाइड करता है और उसे हवा में ही मार गिराता है।
- यही नहीं, ये इंटर ऑपरेटेबिलिटी का काम भी करता है। इसका मतलब है कि ये एक साथ कई मशीनों के साथ काम कर सकता है। ये सरफेस टू एअर मिसाइल, रडार सिस्टम और स्पाइडर सिस्टम से कनेक्ट करके पूरा डाटा दे सकता है।
- ये प्लेटफॉर्म रडार सिस्टम, सेंसर और संचार तकनीकों को एक ही परिचालन ढांचे में एकीकृत करता है।
आकाशतीर इसलिए भी कमाल की है, क्योंकि ज्यादातर एअर डिफेंस के पारंपरिक मॉडल ग्राउंड-आधारित रडार, मानव-निगरानी प्रणालियों और कमांड चेन द्वारा ट्रिगर की गई सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल बैटरियों पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं।
वहीं, आकाशतीर तकनीक युद्ध क्षेत्रों में निचले स्तर के हवाई क्षेत्र की निगरानी और जमीन-आधारित एअर डिफेंस हथियार प्रणालियों पर नियंत्रण करता है।
आकाशतीर ने यह दिखाया है कि यह दुनिया में मौजूद किसी भी डिफेंस सिस्टम से ज्यादा कारगर है, डाटा लेता है और हमला करता है। यह व्हीकल माउंटेड सिस्टम है, जो इसे कहीं भी ले जाने में आसान बनाता है।
Source:
- PIB (प्रेस इंफर्मेशन ब्यूरो)
- https://www.pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1911937
जस्टिस बेला त्रिवेदी को फेयरवेल न देने पर CJI बीआर गवई ने जताई नाराजगी, कहा- यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण
नई दिल्ली, पीटीआई। जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की रिटायरमेंट पर उन्हें फेयरवेल पार्टी नहीं दी गई। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने इस पर आपत्ति जताई की है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के बार एसोसिएशन (SCBA) से नाराजगी जाहिर की है।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने सेरेमोनियल बेंच की बैठक के दौरान कहा कि मैं सबसे सामने आपत्ति जता रहा हूं क्योंकि मैं सीधे बात करने में विश्वास रखता हूं।
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CJI का बयानदरअसल सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन की ओर से जजों की रिटायरमेंट पर फेयरवेल आयोजित किए जाते हैं। हालांकि जस्टिस बेला त्रिवेदी की रिटायरमेंट पर कोई भी औपचारिक फेयरवेल नहीं रखा गया। जस्टिस गवई का कहना है कि ऐसा कोई आयोजन न करना दुर्भाग्यपूर्ण है।
यह गलत है: CJIबता दें कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कपिल सिब्बल हैं और रचना श्रीवास्तव उपाध्यक्ष हैं। जस्टिस गवई ने दोनों की तारीफ करते हुए कहा, "मैं कपिल सिब्बल और रचना श्रीवास्तव की सराहना करता हूं, लेकिन SCBA ने जो स्टैंड लिया है वो सही नहीं है। मैं खुलकर बात रखने वाला व्यक्ति हूं, इसलिए कह रहा हूं कि यह गलत है।"
जस्टिस गवई ने कहा-
जस्टिस कई तरह के होते हैं, लेकिन जस्टिस बेला त्रिवेदी ने अपने पूरे करियर में स्पष्टता के साथ बात रखी है। वो काफी मेहनती थीं और बिना किसी डर के फैसला सुनाती थीं।
जस्टिस मसीह ने भी CJI का किया समर्थनसीजेआई गवई के अलावा जस्टिस मसीह ने भी अपने भाषण में कहा, "जस्टिस त्रिवेदी को बार एसोसिएशन की तरफ से विदाई देनी चाहिए थी।"
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