Feed aggregator

झुग्गी झोपड़ी, ट्रैफिक जाम और प्रदूषण से जूझ रहे शहर; फिर नगर निगम का बजट कहां खर्च हो रहा है?

Dainik Jagran - National - March 24, 2025 - 7:58pm

जागरण टीम, नई दिल्‍ली। नीति आयोग के पूर्व सीईओ और जी-20 शेरपा अमिताभ कांत ने रायसीना डायलाग को संबोधित करते हुए शहरों को आर्थिक विकास और समृद्धि का संवाहक बताया है। भारत को विकसित देश बनाने में शहरों की भूमिका काफी अहम होने वाली है। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई इस बात का जीता जागता उदाहरण है।

मुंबई की जीडीपी 18 राज्यों की जीडीपी से अधिक है। इसी तरह नोएडा की जीडीपी कानपुर की जीडीपी से 12 गुना अधिक है, लेकिन काफी समय से देखा जा रहा है कि भारत में शहरीकरण तेज होने की वजह से शहर आकार में तो बड़े हो रहे है, लेकिन उनका नियोजित विकास नहीं हो रहा है।

भारतीय शहर झुग्गी झोपड़ी, ट्रैफिक जाम और प्रदूषण के लिए जाने जाते हैं। नियोजित विकास न होने से शहरों में रहने वाली एक बड़ी आबादी न सिर्फ न्यूनतम बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रही है, बल्कि लोग स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए निजी क्षेत्र की महंगी सुविधाओं पर निर्भर हैं।

जाहिर है कि ऐसे शहर आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने की क्षमता नहीं रखते हैं। अनियोजित विकास के पर्याय बन चुके शहर तेज शहरीकरण की राह में किस तरह की चुनौतियां पैदा रहे हैं, इसकी पड़ताल ही आज का मुद्दा है?

भारत के शहरीकरण मॉडल में समस्या

मुंबई के घरों में हर व्यक्ति के लिए जगह सिर्फ 30 वर्ग फीट है। वहीं चीन के शहरों में हर प्रति व्यक्ति जगह 120 वर्ग फिट से अधिक है।

देश में कैसी हैं संभावनाएं?

भारत में पिछले कुछ दशकों में तेजी से शहरीकरण हुआ है, लेकिन वैश्विक स्तर के लिहाज से हम अभी बहुत पीछे हैं। इसके अलावा भारत में शहरों का विकास नियोजित नहीं है। इसकी वजह से शहर आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने में प्रभावी योगदान नहीं दे पा रहे हैं।  

वेतन और पेंशन पर सबसे ज्यादा खर्च करते हैं नगर निगम

भारत में दिल्ली और मुंबई नगर निकायों की सबसे अधिक चर्चा होती है। इनके फैसलों और काम से आम लोगों के साथ बहुराष्ट्रीय कंपनियां और देश के प्रभावशाली लोग भी प्रभावित होते हैं। दिल्ली नगर निगम का एरिया मुंबई की तुलना में लगभग तीन गुना है लेकिन दोनों का बजट लगभग बराबर है और दोनों लगभग एक ही तरीके काम करते हैं।

हालांकि, बजट खर्च करने की बात करें तो दोनों नगर निगम बजट का बड़ा हिस्सा नागरिक सुविधाओं के विकास पर नहीं वेतन, मजदूरी और पेंशन पर खर्च करते हैं। ऐसे में इस बात का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि दिल्ली और मुंबई में बुनियादी और नागरिक सुविधाओं की हालत क्यों खराब है।  

आम लोग क्‍या सोचते हैं?निजी हाथों में सौंपा जाए काम 

राजेश कुमार चौहान का कहना है, 'अब समय आ गया है कि सरकारों को शहरीकरण की बाधाओं को दूर करने के लिए शहरों के हर काम को निजी क्षेत्र के हाथों में सौंप देना चाहिए। अक्सर देखा गया है कि निजी क्षेत्र में ऊपर से नीचे तक सभी कर्मचारियों को अपना काम पूरी जिम्मेदारी और सावधानी से करना पड़ता है, क्योंकि इन्हें डर रहता है कि ऐसा न करना इनकी नौकरी पर भारी पड़ सकता है।'

नियोजित शहर बसाने की जरूरत 

प्रमोद कुमार का कहना है कि भारत में शहरों का नियोजित विकास नहीं हो रहा है। इसकी वजह से कि जिम्मेदार संस्थाएं नियमों को परे रख कर काम करती हैं। आबादी पहले बस जाती है और बुनियादी सुविधाओं के लिए उनको दशकों तक इंतजार करना पड़ता है।

ऐसे हालात में रहने वाले नागरिक अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा भी नहीं दिला पाते। देश को अकुशल नागरिक मिलते हैं जो अपने जीवन को बेहतर बनाने में सक्षम नहीं होते हैं।  इस तरह के शहर अर्थव्यवस्था में योगदान देने के बजाय बोझ साबित हो रहे हैं।

बदहाली के लिए स्‍थानीय निकाय जिम्‍मेदार 

वीरेन्द्र सचदेवा का मानना है कि शहरों की खराब स्थिति के लिए सबसे ज्यादा स्थानीय निकाय जिम्मेदार हैं। नगर निगमों और स्थानीय निकायों के काम करने का तौर तरीका निचले स्तर का है। ये भ्रष्ट्राचार और आर्थिक कुप्रबंधन का अड्डा बन गए हैं। इनकी हालत सुधारे बिना शहरों को व्यवस्थित नहीं किया जा सकता है।

Categories: Hindi News, National News

MPs' Salaries Hiked: सांसदों की बढ़ गई सैलरी, पेंशन और भत्ते में भी इजाफा; जानिए कितना मिलेगा वेतन

Dainik Jagran - National - March 24, 2025 - 7:50pm

एजेंसी, नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सांसदों के वेतन और भत्तों में बढ़ोत्तरी की है। इसके साथ ही पूर्व सांसदों के पेंशन में भी बढ़ोत्तरी हुई है। सबसे खास बात है कि यह बढ़ोत्तरी 1 अप्रैल 2023 से प्रभावी रहेगी। वेतन और भत्तों में इजाफा के बाद सांसदों को अब 1,24,000 रुपये मिलेंगे। इससे पहले सांसदों को 1 लाख रुपये मिलते थे।

वहीं, अब सांसदों का दैनिक भत्ता बढ़ाकर दो हजार से ढाई हजार कर दिया गया है। पूर्व सांसदों की पेंशन को 25 हजार से बढ़ाकर 31 हजार कर दिया गया है।

बता दें कि ये बढ़ोत्तरी सांसद सदस्यों के वेतन, भत्ते और पेशन अधिनियम, 1954 द्वारा प्रदत्त शक्तियों के तहत की गई है। पांच साल बाद सांसदों की सैलरी बढ़ाने का फैसला सरकार ने लिया है।

केंद्र सरकार ने जारी की अधिसूचना
  • संसदीय कार्य मंत्रालय की ओर से सोमवार को जारी राजपत्र अधिसूचना में कहा गया कि पांच साल से अधिक की सेवा के प्रत्येक वर्ष के लिए अतिरिक्त पेंशन को 2,000 रुपये से बढ़ाकर 2,500 रुपये कर दिया गया है। संसद के चल रहे बजट सत्र के बीच सांसदों के वेतन, भत्ते और पेंशन में संशोधन की घोषणा की गई है।
  • मौजूदा और पूर्व सांसदों को दिए जाने वाले वेतन और भत्ते में पहले का संशोधन अप्रैल 2018 में घोषित किया गया था। 2018 में संशोधन में एक सांसद के लिए घोषित आधार वेतन 1,00,000 रुपये प्रति माह था। इस राशि को निर्धारित करने का उद्देश्य उनके वेतन को मुद्रास्फीति की दरों और जीवन यापन की बढ़ती लागत के अनुरूप लाना था।
  • वहीं, 2018 के संशोधन के अनुसार, सांसदों को अपने कार्यालयों को अद्यतन रखने और अपने संबंधित जिलों में मतदाताओं के साथ बातचीत करने की लागत का भुगतान करने के लिए निर्वाचन क्षेत्र भत्ते के रूप में 70,000 रुपये का भत्ता मिलता है।
मिलती हैं ये भी सुविधाएं

जानकारी दें कि सांसदों को कार्यालय भत्ता के रूप में 60,000 रुपये प्रतिमाह और संसदीय सत्रों के दौरान 2,000 रुपये दैनिक भत्ता मिलता है। अब इन भत्तों में भी बढ़ोत्तरी की जानी है। इसके अलावा सांसदों को फोन और इंटरनेट के इस्तेमाल के लिए सालाना भत्ता भी मिलता है। सांसद अपने और परिवार के साथ साल भर में कुल 34 फ्री उड़ान भर सकते हैं। इसके साथ ही व्यक्तिगत उपयोग के लिए किसी भी समय प्रथम श्रेणी की ट्रेन यात्रा कर सकते हैं।

मुफ्त बिजली का भी प्रावधान

इतना ही नहीं सांसदों को सालाना 50,000 यूनिट मुफ्त बिजली और 4,000 किलोलीटर पानी का लाभ भी मिलता है। सरकार उनके आवास और ठहरने की व्यवस्था भी करती है।

अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान सांसदों को नई दिल्ली में किराए-मुक्त आवास प्रदान किया जाता है। उन्हें उनकी वरिष्ठता के आधार पर छात्रावास के कमरे, अपार्टमेंट या बंगले मिल सकते हैं। जो व्यक्ति आधिकारिक आवास का उपयोग नहीं करना चाहते हैं, वे मासिक आवास भत्ता प्राप्त करने के पात्र हैं।

यह भी पढ़ें: मुस्लिम आरक्षण पर रार: डीके शिवकुमार की टिप्पणी पर संसद में बवाल, नड्डा और खरगे के बीच हुई तीखी बहस

यह भी पढ़ें: 'जो गद्दार है... वो गद्दार है, कुणाल कामरा ने कुछ गलत नहीं कहा', कॉमेडियन के बचाव में उतरे उद्धव ठाकरे

Categories: Hindi News, National News

Bihar: 65 प्रतिशत आरक्षण को लेकर RJD ने नीतीश सरकार के खिलाफ फिर खोला मोर्चा, वाम दलों ने भी कर दी अलग मांग

Dainik Jagran - March 24, 2025 - 5:35pm

राज्य ब्यूरो, पटना। जाति आधारित गणना के बाद आरक्षण की निर्धारित सीमा को बढ़ाकर 65% करने और कोर्ट के आदेश पर इस पर रोक के बाद से प्रदेश में आरक्षण को लेकर विपक्ष सरकार पर हमलावर है।

विधानसभा से लेकर सार्वजनिक मंच से विपक्ष सरकार के खिलाफ है। सोमवार को विधानसभा परिसर में भी आरक्षण में कटौती को लेकर सरकार के खिलाफ विपक्ष ने प्रदर्शन किया।

2 दिन के अवकाश के बाद सोमवार को विधानसभा में एक बार फिर से सरकारी कामकाज प्रारंभ हो रहे हैं।

इससे पहले राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं ने विधानसभा परिसर पोर्टिको में पोस्टर बैनर के साथ सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया।

विपक्ष के सदस्यों ने मांग उठाई की जिसकी जितनी हिस्सेदारी सत्ता में उसकी उतनी भागीदारी होनी चाहिए।

इसके साथ ही विपक्ष के नेताओं ने संशोधित आरक्षण की सीमा को लागू करने आउटसोर्स की नौकरियों में भी आरक्षण के प्रविधान करने की मांग भी की। विपक्ष के ये नेता मुख्यमंत्री खिलाफ भी नारे लगाते दिखे।

वाम दलों की ये है मांग
  • इधर, दूसरी ओर वाम दल के नेताओं ने भी विधानसभा परिसर में प्रदर्शन किया और मांग की कि पड़ोसी राज्य झारखंड की तर्ज पर बिहार में भी लोगों को दो सौ यूनिट मुफ्त बिजली दी जाए।
  • वाम सदस्यों ने अपने प्रदर्शन के दौरान महानंदा नदी पर बांध बनाने, सिकहरना बांध परियोजना पर तत्काल रोक लगाने और दलितों पिछडो पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ भी प्रदर्शन किया।
अगले 10 वर्षों में रोजगार के लिए कोई नहीं जाएगा राज्य से बाहर: सरावगी

उधर, राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री संजय सरावगी ने कहा है कि अगले 10 वर्षों में बिहार का कोई आदमी रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में नहीं जाएगा।

बिहार स्वयं रोजगार देने वाला राज्य बन रहा है। वे सोमवार को मुंबई में बिहार दिवस पर आयोजित समारोह को संबोधित कर रहे थे। इसका आयोजन बिहार फाउंडेशन महाराष्ट्र चैप्टर की ओर से किया गया था।

उन्होंने कहा कि बिहार ने 2005 से पहले के अराजकता के दौर से लेकर वर्तमान में विकास के पथ पर एक लंबा सफर तय किया है।

आज बिहार में 38 सरकारी इंजीनियरिंग कालेज और 38 पालिटेक्निक संस्थान हैं, जबकि 2005 से पहले यह संख्या क्रमशः तीन और 13 थी। राज्य में 21 सरकारी मेडिकल कालेज कार्यरत हैं। 23 निर्माणाधीन हैं।

बिहार का राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग पूरी तरह से डिजिटल हो चुका है। महाराष्ट्र प्रवास के दौरान सरावगी ने मुंबई डाकयार्ड के समीप प्रस्तावित बिहार भवन के निर्माण स्थल का भ्रमण भी किया।

उन्होंने बताया कि बिहार सरकार द्वारा 150 करोड़ रुपये की लागत से लगभग एक एकड़ भूमि क्रय कर बिहार भवन के रूप में बहुमंजिली इमारत का निर्माण किया जा रहा है।

इसमें कैंसर मरीजों को रहने के लिए विशेष सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। सरावगी का बिहार फाउंडेशन के अध्यक्ष कैसर खालिद (एडीजीपी महाराष्ट्र) सहित अन्य पदाधिकारियों ने स्वागत किया।

यह भी पढ़ें-

बिहार में शराबबंदी फेल? RK Singh के बयान पर सियासी बवाल, सपोर्ट में आईं कांग्रेस-राजद

'BJP- JDU की सरकार ने बिहार को बीमार कर दिया', पवन खेड़ा ने CM नीतीश के स्वास्थ्य को लेकर कह दी ये बात

Categories: Bihar News

Pages

Subscribe to Bihar Chamber of Commerce & Industries aggregator

  Udhyog Mitra, Bihar   Trade Mark Registration   Bihar : Facts & Views   Trade Fair  


  Invest Bihar