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पिछले वर्ष अक्टूबर से भारत-चीन संबंधों में हुआ कुछ सुधार, जयशंकर ने रिश्तों पर कही बड़ी बात

Dainik Jagran - National - March 27, 2025 - 2:24am

 पीटीआई, नई दिल्ली। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार को कहा कि पिछले वर्ष अक्टूबर से भारत और चीन के बीच संबंधों में कुछ सुधार हुआ है। दोनों देश इसके विभिन्न पहलुओं पर काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि 2020 में जो हुआ, वह उन मुद्दों से निपटने का तरीका नहीं था। भविष्य में भी दोनों देशों के बीच मुद्दे उठेंगे, लेकिन संघर्ष के बिना भी उनसे निपटने के तरीके हैं।

द्विपक्षीय संबंधों को फिर कायम करने की कोशिश

बुधवार को एशिया सोसाइटी के क्यूंग-वा कांग के साथ बातचीत में जयशंकर ने कहा कि भारत और चीन 2020 में की गई कार्रवाइयों से हुए नुकसान को कम करने और द्विपक्षीय संबंधों को फिर कायम करने की कोशिश कर रहे हैं।

हमने 1962 में चीन के साथ युद्ध किया था

उन्होंने कहा, ''हमने 1962 में चीन के साथ युद्ध किया था। उसके बाद हमें राजदूत को वापस भेजने में 14 वर्ष लग गए। भारत के प्रधानमंत्री को उस देश का दौरा करने में 12 वर्ष और लगे। 1988 से भारत और चीन के बीच एक समझ बनी जिसके आधार पर संबंधों को फिर बनाया गया। हम सीमा मुद्दों में से अधिकांश को हल नहीं कर सके, लेकिन हमने एक रिश्ता बनाया और उसका प्रबंधन किया।''

जयशंकर ने कहा कि सीमा मुद्दे का समाधान खोजने के लिए बातचीत चल रही थी। अगर हम 1988 को 2020 तक का शुरुआती बिंदु मानें तो सीमावर्ती क्षेत्रों में घटनाएं तो हुईं, लेकिन रक्तपात नहीं हुआ। 2020 से 45 वर्ष पहले आखिरी रक्तपात हुआ था। उन्होंने 2020 में भारत-चीन के बीच सीमा पर गतिरोध को याद किया, जिसमें भारत की ओर से सैन्य कार्रवाई शामिल थी। कहा, यह गतिरोध एलएसी पर पूर्वी लद्दाख में चीन की सैन्य कार्रवाई से शुरू हुआ था।

दोनों देशों के बीच संबंधों में काफी तनाव पैदा किया

इस घटना ने दोनों देशों के बीच संबंधों में काफी तनाव पैदा किया। यह सिर्फ रक्तपात नहीं था। यह लिखित समझौतों की अवहेलना थी क्योंकि यह वह स्याह क्षेत्र नहीं है जिसके बारे में हम बात कर रहे हैं। यानी जिस पर सहमति बन गई थी, उसकी शर्तों से हटना बहुत महत्वपूर्ण था। विदेश मंत्री ने कहा कि यह मुद्दा अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है और यह अवधि (2020 से 2025) भी दोनों देशों में से किसी के हित में नहीं रही।

कैलास मानसरोवर यात्रा बहाली पर आगे बढ़ी बात

भारत और चीन के विदेश मंत्रालयों के बीच बुधवार को बी¨जग में आधिकारिक परामर्श बैठक हुई। इसके बाद विदेश मंत्रालय ने बताया कि भारत-चीन ने 2025 में कैलास मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू करने के तौर-तरीकों पर और प्रगति की है।

विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव (पूर्वी एशिया) गौरांगलाल दास ने चीनी विदेश मंत्रालय के एशियाई मामलों के विभाग के महानिदेशक लियू जिनसोंग के साथ यह बैठक की। इस दौरान दोनों पक्षों ने संबंधों को स्थिर बनाने और पुनर्निर्माण के लिए जनवरी, 2025 में विदेश सचिव और चीनी उप विदेश मंत्री के बीच बैठक में सहमति वाले विशिष्ट कदमों के साथ-साथ रणनीतिक निर्देशों को लागू करने के लिए उठाए गए कदमों की समीक्षा की।

आगे अहम मु्द्दों पर होगी बातचीत

विदेश मंत्रालय ने बयान में कहा, ''दोनों पक्ष लोगों के बीच आदान-प्रदान को और सुविधाजनक बनाने एवं बढ़ावा देने के प्रयासों को जारी रखने पर सहमत हुए, जिनमें सीधी उड़ानें फिर से शुरू करने, मीडिया व थिंक-टैंकों के बीच बातचीत और राजनयिक संबंधों की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ मनाना शामिल है। दोनों पक्षों ने 2025 में कैलास मानसरोवर यात्रा फिर शुरू करने के तौर-तरीकों पर और प्रगति की है।''

चरणबद्ध तरीके से वार्ता तंत्र को बहाल करने पर चर्चा की

बयान के अनुसार, दोनों पक्षों ने इस वर्ष निर्धारित वार्ता व गतिविधियों का भी जायजा लिया। चरणबद्ध तरीके से वार्ता तंत्र को बहाल करने पर चर्चा की, ताकि एक-दूसरे के हितों व चिंताओं के प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर ध्यान दिया जा सके तथा संबंधों को अधिक स्थिर व पूर्व अनुमानित मार्ग पर ले जाया जा सके। इससे पहले मंगलवार को दोनों देशों ने परामर्श एवं समन्वय के लिए कार्य तंत्र (डब्ल्यूएमसीसी) के तहत बातचीत की थी।

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UGC ने लॉन्च किया अप्रेंटिसशिप एम्बेडेड डिग्री प्रोग्राम, रोजगार क्षमता होगी मजबूत

Dainik Jagran - National - March 27, 2025 - 1:33am

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उच्च शिक्षा संस्थानों (एचईआई) से आग्रह किया है कि वे स्नातक छात्रों के लिए अप्रेंटिसशिप एम्बेडेड डिग्री प्रोग्राम (एईडीपी) लागू करें, ताकि छात्र अपनी पढ़ाई के साथ-साथ व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त कर सकें और रोजगार के अवसर बढ़ा सकें।

यूजीसी के अनुसार, एईडीपी का मुख्य मकसद छात्रों की रोजगार क्षमता को बढ़ाना, परिणाम आधारित शिक्षा पर जोर देना, उच्च शिक्षण संस्थानों और उद्योगों के बीच संबंध मजबूत करना, और उद्योगों में कौशल अंतर को कम करना है।

तीन वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम में छात्रों को कम से कम एक सेमेस्टर और अधिकतम तीन सेमेस्टर तक अप्रेंटिसशिप करनी होगी। चार वर्षीय पाठ्यक्रम में यह अवधि न्यूनतम दो सेमेस्टर और अधिकतम चार सेमेस्टर की होगी।

पात्रता मानदंड

कोई भी उच्च शिक्षा संस्थान एईडीपी कार्यक्रम पेश कर सकता है, यदि वह निम्नलिखित में से किसी एक शर्त को पूरा करता है:

  • राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF) की विश्वविद्यालय श्रेणी में रैंकिंग।
  • राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (NAAC) से वैध ग्रेड या स्कोर।
  • यूजीसी द्वारा निर्दिष्ट मानदंडों का अनुपालन करते हुए NAAC द्वारा वैध बुनियादी प्रत्यायन।
प्रशिक्षुता के लिए सहयोग

उच्च शिक्षा संस्थान प्रशिक्षुता अधिनियम, 1961 और प्रशिक्षुता नियम, 1992 के अनुरूप वजीफे के साथ, प्रशिक्षुता को सुविधाजनक बनाने के लिए कंपनियों के साथ सहयोग कर सकते हैं। वे राष्ट्रीय प्रशिक्षुता प्रशिक्षण योजना (NATS) पोर्टल के माध्यम से भी एईडीपी को लागू कर सकते हैं, जहां वजीफे को प्रशिक्षुता प्रशिक्षण बोर्ड (BOAT) या व्यावहारिक प्रशिक्षण बोर्ड (BOPT) के साथ साझेदारी में सरकार द्वारा वित्त पोषित किया जाएगा।

पूर्व शिक्षा की मान्यता (आरपीएल) दिशानिर्देश

यूजीसी ने पूर्व शिक्षा की मान्यता (आरपीएल) के कार्यान्वयन के लिए दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं, जो व्यक्तियों के मौजूदा ज्ञान, कौशल और अनुभव का मूल्यांकन करने के लिए एक औपचारिक तंत्र है, ताकि उच्च शिक्षा योग्यता के साथ सहज एकीकरण हो सके। इन पहलों का मकसद छात्रों को व्यावहारिक अनुभव प्रदान करना और उन्हें उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप तैयार करना है, जिससे उनकी रोजगार क्षमता में वृद्धि हो सके।

यह भी पढ़ें: ग्रामीण विकास योजनाओं की सुस्त चाल, खर्च न हुआ 34.82 प्रतिशत बजट

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ग्रामीण विकास योजनाओं की सुस्त चाल, खर्च न हुआ 34.82 प्रतिशत बजट

Dainik Jagran - National - March 27, 2025 - 12:39am

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। ग्रामीण विकास योजनाओं के लिए हर वर्ष बजट चाहे भरपूर दिया जा रहा है, लेकिन धरातल पर योजनाएं अपेक्षित गति नहीं पकड़ पा रही हैं। ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज से संबंधित संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि ग्रामीण विकास की केंद्रीय वित्त पोषित योजनाओं के लिए वर्ष 2024-25 में बजट का जो संशोधित अनुमान रखा गया था, उसमें से 34.82 प्रतिशत पैसा खर्च ही नहीं हो सका है।

मंत्रालय के इसके कई कारण बताए हैं, लेकिन समिति ने चिंता जताते हुए सरकार को धरातल पर सक्रिय क्रियान्वयन और सतत निगरानी की नसीहत दी है। संसदीय समिति ने पाया है कि 2024-25 के संशोधित बजट में आवंटित 1,73,804.01 करोड़ रुपये के मुकाबले वास्तविक व्यय केवल 1,13,284.55 करोड़ रुपये रहा, जो संशोधित अनुमान चरण में आवंटित राशि से 34.82 प्रतिशत कम है।

वित्तीय समीक्षा के अनुसार प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) का 15,825.35 करोड़ रुपये, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का 3,545.77 करोड़ रुपये, नेशनल सोशल असिस्टेंस प्रोग्राम का 1,813.34 करोड़ रुपये, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन का 2,583.16 करोड़ रुपये, मनरेगा का 1,627.65 करोड़ और दीनदयाल उपाध्याय- ग्रामीण कौशल्य योजना का 1,313.43 करोड़ रुपया वर्ष 2024-25 में खर्च नहीं हो सक।

इसके साथ ही सिफारिश की गई है कि सभी हितधारकों के परामर्श से त्रैमासिक और मासिक व्यय योजनाएं पहले ही तैयार कर लें और सुनिश्चित कर लिया जाए कि योजना कार्यान्वयन के प्रत्येक चरण में पर्याप्त धन उपलब्ध रहे।समिति ने यह भी कहा है कि वित्त वर्ष 2025-26 के लिए ग्रामीण विकास विभाग के कुल बजटीय आवंटन में 2.27 प्रतिशत की मामूली वृद्धि हुई है, जो कि 1,88,754.53 करोड़ रुपये है, जबकि वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान 1,84,566.19 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे।

यह मामूली वृद्धि ग्रामीण प्रगति की सतत गति के लिए पर्याप्त नहीं है। यह भी देखा गया है कि डीएवाइ-एनआरएलएम को छोड़कर, मनरेगा, पीएमजीएसवाइ, पीएमएवाइ-जी और एनएसएपी जैसी प्रमुख योजनाओं के लिए धन को लगभग स्थिर रखा गया है। ऐसे में सरकार को ध्यान रखना होगा कि ग्रामीण विकास की कोई भी योजना धन की कमी या लक्षित योजनाओं के कार्यान्वयन की धीमी गति के कारण बाधित न हो।

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भारत-अमेरिका में कारोबारी समझौते पर गहन विमर्श, जयशंकर बोले- 'व्यापक होगा असर'

Dainik Jagran - National - March 27, 2025 - 12:33am

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय कारोबारी समझौते (बीटीए) को लेकर वार्ता नई दिल्ली में शुरू हो गई। वार्ता का यह दौर इस सप्ताह शुक्रवार तक चलने वाली है और बहुत संभव है कि दो अप्रैल, 2025 से पहले दोनों देशों के बीच उक्त कारोबारी समझौते को लेकर सहमति बन जाए। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दो अप्रैल से ही भारत पर पारस्परिक टैक्स लगाने की धमकी दी हुई है।

दोनों देशों के बीच शुरू हुई वार्ता को लेकर आधिकारिक तौर पर कोई बयान अभी नहीं आया है, लेकिन विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को कहा कि अमेरिका के साथ बीटीए पर काफी गहन विमर्श हो रहा है। अमेरिका के अलावा भारत ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के साथ मुक्त कारोबारी समझौता (एफटीए) करने के लिए बात कर रहा है। इन तीनों समझौतों का काफी व्यापक आर्थिक असर होगा।

एशिया सोसाइटी की तरफ से आयोजित एक कार्यक्रम में जयशंकर ने कहा कि भारत पहली बार तीन बड़ी आर्थिक शक्तियों के साथ कारोबारी समझौता करने के लिए बातचीत कर रहा है। अभी तक भारत ने अपने भौगोलिक क्षेत्र के पूर्वी हिस्से में स्थित देशों (जापान, दक्षिण कोरिया, आसियान व आस्ट्रेलिया) के साथ ही मोटे तौर पर कारोबारी समझौता किया है।

पहले जिन देशों (जापान, दक्षिण कोरिया व आसियान) के साथ एफटीए किए गए, वे भारत के लिए प्रतिस्प‌र्द्धी भी रहे हैं और इन समझौतों का अनुभव भारत के लिए बहुत फायदे का नहीं रहा। लेकिन, अब जिन तीन देशों के साथ ट्रेड समझौते के लिए विमर्श शुरू हुआ है, वहां ज्यादा संभावनाएं हैं। इन देशों के साथ होने वाले समझौतों का ना सिर्फ बड़ा आर्थिक असर होगा, बल्कि दूसरे क्षेत्रों पर भी प्रभाव पड़ेगा।

ट्रंप के पहले कार्यकाल के अंत में भी भारत व अमेरिका के बीच एक सीमित दायरे वाले कारोबारी समझौते पर बातचीत काफी आगे बढ़ गई थी। अमेरिकी राष्ट्रपति की तरफ से भारत पर पारस्परिक कर लगाने की बार-बार धमकी देने के बावजूद जयशंकर मानते हैं कि ट्रंप सरकार की नीतियां कई तरह से भारत के लिए लाभकारी होंगी।

पहला, राष्ट्रपति ट्रंप पूर्व की सरकारों से ज्यादा रक्षा प्रौद्योगिकी में भारत के साथ सहयोग करने को तैयार हैं। इससे दोनों देशों के बीच बेहतर गुणवत्ता वाले रक्षा संबंध स्थापित होंगे।

दूसरा, नई अमेरिकी सरकार की ऊर्जा नीतियां भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए काफी सकारात्मक हैं। ट्रंप की नीतियां वैश्विक ऊर्जा बाजार को स्थिर बनाती हैं।

तीसरा, बड़ी प्रौद्योगिकी क्षेत्र पर अमेरिका का बढ़ता फोकस भी भारत के लिए सही साबित होगा। बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियां मोबलिटी व सप्लाई चेन की संवेदनशीलता को पहचानती हैं।--

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संसद: बैंक अकाउंट में चार नॉमिनी वाला विधेयक राज्यसभा में भी पारित, ध्वनिमत से मिली मंजूरी

Dainik Jagran - National - March 27, 2025 - 12:16am

 पीटीआई, नई दिल्ली। संसद ने बुधवार को बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 पारित कर दिया। इसके तहत बैंक खाताधारकों को अधिकतम चार नामित व्यक्ति (नॉमिनी) रखने की अनुमति होगी। इसे राज्यसभा ने ध्वनिमत से मंजूरी दे दी। लोकसभा ने दिसंबर 2024 में ही इस विधेयक को पारित कर दिया था।

ये किया गया बदलाव

इस विधेयक में एक और बदलाव बैंक में किसी व्यक्ति के 'पर्याप्त हित' शब्द को फिर से परिभाषित करने से संबंधित है। सीमा को मौजूदा पांच लाख रुपये से बढ़ाकर दो करोड़ रुपये करने की मांग की गई है, जो लगभग छह दशक पहले तय की गई थी।

इस विधेयक में सहकारी बैंकों में निदेशकों (अध्यक्ष और पूर्णकालिक निदेशक को छोड़कर) के कार्यकाल को आठ वर्ष से बढ़ाकर 10 वर्ष करने का भी प्रविधान है, ताकि इसे संविधान (97वां संशोधन) अधिनियम, 2011 के अनुरूप बनाया जा सके।

इस संशोधन के लागू होने के बाद केंद्रीय सहकारी बैंक के निदेशक को राज्य सहकारी बैंक के बोर्ड में सेवा करने की अनुमति मिल जाएगी। इसमें वैधानिक लेखा परीक्षकों को दिए जाने वाले पारिश्रमिक का निर्णय लेने में बैंकों को अधिक स्वतंत्रता देने का भी प्रविधान है।

इस संशोधन का उद्देश्य बैंकों के लिए विनियामक अनुपालन के लिए रिपोर्टिंग तिथियों को दूसरे और चौथे शुक्रवार के बजाय हर महीने की 15वीं और आखिरी तारीख को पुनर्परिभाषित करना भी है।

अनूठा होगा बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक : वित्त मंत्री

राज्यसभा में विधेयक पर बहस का जवाब देते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि संशोधन पांच अलग-अलग अधिनियमों को प्रभावित करेंगे, जिससे यह अनूठा होगा।

उन्होंने कहा, ''यह इसलिए भी अनूठा है क्योंकि आठ टीमों ने संशोधनों पर काम किया, जिससे बजट भाषण के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सभी आवश्यक बदलाव सुनिश्चित हुए।'' उन्होंने कहा कि भले ही एनपीए में भारी कमी आई है, लेकिन सरकार जानबूझकर कर्ज न चुकाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध है।

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गैर-NEP राज्यों का फंड रोकने पर संसदीय समिति ने बताया अनुचित, तमिलनाडु, केरल और बंगाल के आवंटन पर रोक

Dainik Jagran - National - March 26, 2025 - 10:25pm

पीटीआई, नई दिल्ली। एक संसदीय समिति ने कहा है कि पीएम-श्री स्कूल योजना लागू करने पर सहमति नहीं जताने वाले राज्यों का पैसा रोकना न्यायोचित नहीं है। समिति ने यह टिप्पणी 2,100 करोड़ से अधिक राशि रोकने को लेकर केंद्र और तमिलनाडु के बीच जारी वाकयुद्ध के बीच की है। तमिलनाडु ने त्रि-भाषा फार्मूले पर आपत्ति जताते हुए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) लागू करने से इनकार कर दिया था।

शिक्षा, महिलाओं, बच्चों, युवा व खेल मामलों पर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की अध्यक्षता वाली संसदीय स्थायी समिति ने सिफारिश की है कि शिक्षा मंत्रालय को सर्वशिक्षा अभियान (एसएसए) के धन आवंटन का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि एनईपी-2020 या पीएम-श्री योजना स्वीकार नहीं करने वाले किसी भी राज्य को नुकसान न हो।

एमओयू पर हस्ताक्षर नहीं करने वाले कुछ राज्यों पर सीमित ने लिया संज्ञान

बुधवार को राज्यसभा में प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया है, पीएम-श्री योजना लागू करने के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर नहीं करने वाले कुछ राज्यों को एसएसए की धनराशि नहीं जारी करने पर समिति ने गंभीरता से संज्ञान लिया है। इस योजना के तहत बंगाल के लिए 1,000 करोड़ रुपये से अधिक, केरल के लिए 859.63 करोड़ और तमिलनाडु के लिए 2,152 करोड़ रुपये की धनराशि लंबित है।

समिति ने इस बात पर भी संज्ञान लिया है कि 36 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में से 33 ने पीएम-श्री के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं और योजना को क्रियान्वित व एनईपी आदर्श विद्यालय विकसित कर रहे हैं ताकि राष्ट्रीय स्तर पर मूल्यांकन व पाठ्यक्रम में समानता लाई जा सके। समिति ने सिफारिश की है कि विभाग संबंधित राज्यों के साथ आम सहमति से मुद्दे का समाधान करे और लंबित धनराशि को प्राथमिकता के आधार पर जारी करे।

समिति ने क्या कहा?

विभाग ने भी समिति को सूचित किया है कि पीएम-श्री एनईपी के तहत मॉडल स्कूल योजना है और एसएसए एनईपी के लक्ष्यों को हासिल करने का कार्यक्रम है। पीएम-श्री के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर नहीं करने वाले राज्यों को एसएसए की धनराशि रोकने के पीछे यही कारण लगता है। लेकिन समिति ने कहा कि यह कारण तथ्यात्मक एवं न्यायोचित नहीं है।

समिति ने कहा कि केरल, तमिलनाडु व बंगाल जैसे राज्यों ने राष्ट्रीय औसत से अधिक सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) के साथ मजबूत शैक्षणिक परिणाम प्रदर्शित किया है। लेकिन धनराशि रोकने एवं एसएसए की धनराशि के ट्रांसफर में देरी ने उनकी स्कूली ढांचे, अध्यापकों के प्रशिक्षण व छात्रों की मदद में आगे की प्रगति में बाधा पैदा की है। लिहाजा इन राज्यों को अध्यापकों व अन्य कर्मियों को अपने पास से वेतन देने पर मजबूर होना पड़ा है।

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