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डिस्कॉम के लिए फिर आएगी उदय जैसी स्कीम? जानिए ऊर्जा मंत्रालय की क्यों बढ़ रही चिंता
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। विगत दो वर्षों में देश की बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) पर बकाये की राशि 1.39 लाख करोड़ रुपये से घट कर तकरीबन 25 हजार करोड़ रुपये (दिसबंर, 2024) रह गई है।
इन दो वर्षों में डिस्कॉम को ट्रांसमिशन व वितरण (टीएंडडी-चोरी आदि) से होने वाली हानि का स्तर भी 22 फीसद से घट कर 16 फीसद पर आ गया है, लेकिन इन आंकड़ों के आधार पर इस आकलन पर मत पहुंचिए कि डिस्काम की वित्तीय स्थिति ठीक है।
असलियत में बिजली मंत्रालय इस बात से चिंतित है कि जिस तेजी से देश में बिजली की मांग बढ़ रही है और समूचे बिजली सेक्टर में बदलाव हो रहा है, उस हिसाब से डिस्कॉम की स्थिति नहीं सुधरी है। ऐसे में खतरा है कि देश में पर्याप्त बिजली आपूर्ति सुनिश्चित होने के बावजूद डिस्कॉम की कमजोरी समूचे बिजली सेक्टर में एक कमजोर कड़ी न बन जाए।
फिर उदय जैसी स्कीम लाने पर विचारबिजली वितरण कंपनियों की स्थिति पर गठित राज्यों के मंत्री समूह की बैठक में केंद्र के बिजली राज्य मंत्री श्रीपद यशो नाइक ने एक बार फिर उदय जैसी योजना की वकालत की है। मंत्रियों के समूह की यह तीसरी बैठक थी जो लखनऊ में हुई। इस बैठक में नाइक ने डिस्कॉम पर बकाये कर्ज की राशि को नए सिरे से समाोयजित करने की स्कीम लाने के संकेत दिए। बिजली वितरण कंपनियों पर ब्याज के बोझ को कम करने, इनके स्तर पर बिजली स्टोरेज सिस्टम को विकसित करने पर जोर देते हुए एक उदय (उज्वल डिस्कॉम एसुरेंस योजना) की जरुरत भी बताई।
पहली बार 2015 में लॉन्च की गई थी उदय स्कीमहाल के वर्षों में यह पहला मौका है जब केंद्रीय मंत्री की तरफ से ही उदय स्कीम को नये सिरे से लागू करने की मांग हुई है। मोदी सरकार के पहली बार सत्ता में आने के बाद जब डिस्कॉम पर वित्तीय बोझ बहुत बढ़ गया था तब इन पर बकाये कर्ज के समायोजन के उद्देश्य से वर्ष 2015 में उदय को लॉन्च किया गया था।
बाद में वर्ष 2021-22 के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने उदय 2.0 को लॉन्च की गई थी। अब सरकार इसका तीसरी बार लॉन्च करने को तैयार दिख रही है जो बता रहा है कि डिस्कॉम की मौजूदा स्थिति बहुत संतोषप्रद नहीं है। अप्रैल, 2025 में मंत्री समूह की चौथी बैठक होने वाली है जिसमें इस बारे में अंतिम फैसला होने की उम्मीद है।
बिजली दरें तय करने पर भी किया गया विमर्शबिजली मंत्रालय की तरफ से बताया गया है कि बिजली की दरें तय करने को लेकर नियामक एजेंसियों की भूमिका पर विस्तार से विमर्श हुआ है। बैठक में कुछ राज्यों ने केंद्र से वहां डिस्कॉम के निजीकरण के लिए हो प्रयासों की सफलता के लिए मदद की मांग की है। खास तौर पर रिनीवेबल सेक्टर से पैदा होने वाली बिजली को मौजूदा ट्रांसमिशन लाइन से जोड़ने के लिए अतिरिक्त आर्थिक मदद की मांग की जा रही है।
अधिकांश राज्यों की यह मांग है कि नियामक एजेंसियों को बिजली की दरें तय करने में महंगाई की दरों को ध्यान में रखने की नीति लागू होनी चाहिए। बिजली की दरों को महंगाई से जोड़ दिए जाने से बिजली की बढ़ी हुई लागत का जो बोझ डिस्कॉम पर पड़ता है, उसकी भरपाई करना आसान हो जाएगा।
क्यों नहीं थम रही जंगल की आग, कौन है जिम्मेदार और कितना हुआ नुकसान? संसद में रिपोर्ट पेश
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। देश में एक ओर जहां हरियाली बढ़ाने की मुहिम छिड़ी हुई है, वहीं गर्मी के दिनों में हर साल जंगल में लगने वाली आग एक बड़े हरे-भरे हिस्से को निगल भी जा रही है। वैसे तो इस आग के पीछे का बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन को माना जा रहा है लेकिन इससे निपटने के लिए हमारी तैयारियां भी कम जिम्मेदार नहीं है।
यह बात अलग है कि पिछले सालों में जंगल में आग लगने की अग्रिम चेतावनी ने इस नुकसान को कम किया गया है, पर आग लगने की घटनाओं में ज्यादा कमी नहीं आयी है। इनमें उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ सहित देश के दर्जन भर से अधिक राज्य ऐसे हैं, जहां जंगल की आग परेशान करने वाली है। इनमें उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में जंगल में आग की घटनाओं ने तो सारे रिकार्ड ही तोड़ दिए है।
संसद में पेश की गई रिपोर्टवन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने जंगल में आग की घटनाओं को लेकर संसद में सौंपी एक रिपोर्ट में बताया है कि गर्मी शुरू होते ही सैटेलाइट के जरिए जंगल में आग लगने वाले संभावित क्षेत्रों पर पैनी नजर रखी जाती है। इस दौरान ऐसे संभावित क्षेत्रों को लेकर सात दिन पहले एक अलर्ट जारी किया जाता है।
गर्मी आने से पहले दिए जाते हैं कई निर्देशइसके साथ ही गर्मी की दस्तक देने से पहले राज्यों को वन क्षेत्र को आग से बचाने के लिए फायर लाइन (वनक्षेत्र के बीच गलियारा ) तैयार करने, घास की कटाई, सूखे पत्तों की सफाई करने और मानवीय हस्तक्षेप को कम करने जैसे उपाय करने, जंगल पर निगरानी बढ़ाने के पर्याप्त प्रशिक्षित अमले की तैनाती देने के निर्देश दिए जाते है। जो राज्य इसका ठीक ढंग से पालन करते हैं, वहां आग की घटनाएं में कमी या नुकसान कम देखने को मिलता है।
गल में आग लगने की कुल घटनाएं 2.12 लाख रिपोर्टरिपोर्ट में देश के दस प्रतिशत वनक्षेत्र को आग लगने वाले अति संवेदनशील क्षेत्र के रूप में चिह्नित किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक जंगल में आग लगने की घटनाओं का आकलन नवंबर से जून महीने तक किया जाता है। इस दौरान नवंबर 2022 से जून 2023 के बीच देश में जंगल में आग लगने की कुल घटनाएं 2.12 लाख रिपोर्ट हुई थी, जबकि नवंबर 2023 से जून 2024 के बीच यह संख्या 2.03 लाख रिपोर्ट हुई थी। यानी इनमें कमी आयी है।
साथ ही समय पर आग लगने की सूचना मिलने से इनके नुकसान का दायरा भी घटा है। वर्ष 2022-23 में जहां इससे पांच सौ करोड़ का नुकसान हुआ था, वहीं 2023-24 में तीन सौ करोड़ के नुकसान का अनुमान है।
प्रशिक्षित की गई एनडीआरएफ की तीन कंपनियांजंगल की तेज होती आग से निपटने के लिए सरकार ने अलर्ट सिस्टम के साथ ही एनडीआरएफ की तीन कंपनियों को भी इससे निपटने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित किया है। जो राज्यों की मांग पर मुहैया कराई जाएगी। तीनों कंपनियों में कुल 150 जवान शामिल है। इन्हें यह प्रशिक्षण राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण(एनडीएमए) व राष्ट्रीय आपदा कार्रवाई बल(एनडीआरएफ) ने संयुक्त रूप से दिया है।
शीर्ष के दस राज्य, जहां सबसे अधिक आग की घटनाएं रिपोर्ट हुई
राज्य वर्ष 2022-23 वर्ष 2023-24 उत्तराखंड 5351 21033 ओडिशा 33461 20973 छत्तीसगढ़ 20306 18950 आंध्र प्रदेश 19367 18174 महाराष्ट्र 16119 16008 मध्य प्रदेश 17142 15878 हिमाचल प्रदेश 704 10136 असम 98307639
झारखंड 11923 7526 मिजोरम 5798 6627 जम्मू कश्मीर 131 3829यह भी पढ़ें: वन्यजीव संरक्षण के लिए बड़ी सफलता, नवेगांव नागजीरा टाइगर रिजर्व में दिखीं 50 विशाल उड़ने वाली गिलहरियां
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वन्यजीव संरक्षण के लिए बड़ी सफलता, नवेगांव नागजीरा टाइगर रिजर्व में दिखीं 50 विशाल उड़ने वाली गिलहरियां
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। गोंदिया के नवेगांव नागजीरा टाइगर रिजर्व (NNTR) में हाल ही में किए गए एक सर्वे में करीब 50 भारतीय विशाल उड़ने वाली गिलहरियों की उपस्थिति दर्ज की गई है। यह खोज वन्यजीव संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह गिलहरी अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की 'सबसे कम चिंताजनक' श्रेणी में आती है। लेकिन आवास की हानि, जंगलों का क्षरण और शिकार जैसे कारणों से इसकी संख्या प्रभावित हो रही है।
सर्वे की अहमियतएनएनटीआर के उप निदेशक पवन जेफ ने बताया कि फरवरी में चरण IV की निगरानी के दौरान वैज्ञानिकों ने इन गिलहरियों की मौजूदगी को दर्ज किया। उन्होंने कहा, "ऐसे सर्वेक्षण से हमें इनके संरक्षण और सुरक्षा के लिए बेहतर रणनीति बनाने में मदद मिलेगी।"
इस गिलहरी के बारे में अब तक क्या है मालूमभारतीय विशाल उड़ने वाली गिलहरी कृंतक (Rodent) परिवार का सदस्य है और यह भारत, चीन, लाओस, म्यांमार, श्रीलंका, ताइवान, थाईलैंड और वियतनाम में पाई जाती है। इन गिलहरियों की खासियत यह है कि ये लंबी छलांग लगाकर एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक "उड़ने" में सक्षम होती हैं। यह खोज वन्यजीव प्रेमियों और संरक्षणवादियों के लिए उत्साहजनक है और इससे इन दुर्लभ गिलहरियों के संरक्षण की दिशा में आगे बढ़ने में मदद मिलेगी।
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